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This Article is From Dec 01, 2014

आईएस के लिए लड़ने गए अरीब ने बताया, जिहादी की जगह मुझे मजदूर बना दिया गया

आईएस के लिए लड़ने गए अरीब ने बताया, जिहादी की जगह मुझे मजदूर बना दिया गया
फाइल फोटो
मुंबई:

आतंकी संगठन आईएस यानी इस्लामिक स्टेट के लिए लड़ने इराक गए अरीब माजिद से एनआईए की पूछताछ में काफी अहम जानकारियां सामने आई हैं।

कल्याण का अरीब मजीद जो कहानी बता रहा है वह मुल्क में उस बढ़ते खतरे की ओर इशारा कर रही है, जहां आतंकवाद के तार इंटरनेट की दुनिया से नौजवानों के घर तक पहुंच रहे हैं। अरीब मजीद उस ग्रुप की अगुवाई कर रहा था जो इराक सेना के खिलाफ आईएस का साथ देने गए थे। उनका इरादा तो लड़ाका बनने का था, लेकिन आईएस ने उन्हें मज़दूर बना दिया।

एनआईए की पूछताछ में अरीब ने जो कहानी बताई है वह आतंकी संगठनों के कई राज खोल रही है। उसने बताया कि वह इजराइल और फिलीस्तीन के बीच जारी जंग को जानने के लिए इंटरनेट की कई साइटें खंगाला करता था। उसी दौरान कई मौलवियों की तकरीरे इंटरनेट पर देखी और सुनी, जिसका उस पर गहरा असर पड़ा। इस सब के चलते उसका इंजीनियरिंग की पढ़ाई में मन लगना बंद हो गया और वह शरियत पर चलने वाले इस्लामिक राज्य के बारे में सोचने लगा।


एनआईए सूत्रों के मुताबिक, अरीब ने बताया कि उसका दोस्त फहद भी यही सब सोच रहा था और उसी ने उसे बताया कि कल्याण के बाजार पेठ इलाके में ही रहने वाले शाहीन टंकी और अमन तांडेल भी कुछ ऐसे ही विचार रखते हैं।


अरीब के मुताबिक, उसी दौरान फेसबुक पर ताहिरा भट्ट नाम की एक महिला संपर्क में आई, जो दुनिया भर के लोगों को आईएस में शामिल करवाने का काम करती है। उसने ही उन्हें सीरिया जाने का रास्ता बताया और अबू फजल और अबू फातिमा के फोन नंबर दिए। बाद में फातिमा ने इराक के एक शख्स का फोन नंबर दिया और इराक पंहुचने के बाद उसे फोन करने को कहा।

जियारत के लिए वीजा मिलते ही 22 मई को अरीब घर से ये कहकर निकला कि दोस्त के घर पढ़ाई करने जा रहा है और दो दिन वहीं रहेगा। बाद में सभी अपने टिकट और वीज़ा लेकर अबु धाबी पहुंच गए और वहां से बगदाद का रास्ता तय किया। बगदाद पहुंचने पर 6 दिन जियारत की वहां से बगदाद वाला फोन मिलाया। लेकिन जब संपर्क नहीं हो पाया तो अबू फतिमा ने टैक्सी से मसूल आने को कहा।

अरीब के मुताबिक इसके बाद उन्हें शिसानी नाम के अफसर से मिलवाया गया, जो कि आईएस का बड़ा अफसर था और उसने उन्हें भर्ती कर लिया। सभी को रेगिस्तान में 10 दिन रखा गया, जहां उनके नाम बदल दिए गे और फिर वहां से 25 दिन की शरीयत की ट्रेनिंग में भेज दिया गया। उनके साथ दूसरे देशों के 50 और लोग थे। आखिरी 3 दिन उन्हें एके47 चलाना सिखाया गया।

उसने बताया कि भर्ती से पहले उनकी लिखित और मौखिक परीक्षा भी ली गई। लेकिन उसके बाद उन्हें जंग में शामिल ना कर दूसरे काम दे दिया।

अरीब के मुताबिक, उसे सिविल इंजीनियरिंग, फहद को कार रिपेयरिंग, शाहीन को अकाउंट का तो अमन को इलेक्ट्रानिक्स विभाग में शामिल किया। वहां दस दिन काम करने के बाद उसे रक्का के सीमा पर एक गांव की इमारत में बुलेटप्रूफ शीशे की खिड़की बनाने का जिम्मा दिया गया।

अरीब के मुताबिक, एक दिन वहीं काम करने के दौरान गोलियां चलने लगीं और वह उसमें घायल हो गया। 4−5 घंटे बेहोश रहने के बाद जब उसे होश आया तो किसी तरह चलकर अस्पताल पहुंचा। 8 दिन तक इलाज कराने के बाद वापस रक्का आकर दोस्तों से मिला तो पता चला कि शाहीन ने उसके घर पर फोन कर उसके मारे जाने की खबर दे दी है।

उसके मुताबिक, इस घटना के बाद उसे मोसूल यूनिवसिर्टी बनाने का काम दिया गया। लेकिन वहां उसकी तबियत खराब रहने लगी। इस वजह से उसने इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट से निकलने की इजाजत मांगी। वह लोग मान गए और दो हजार डॉलर देकर उसे तुर्की तक छोड़ दिया, जिसके बाद वह इस्तांबूल में भारतीय दूतावास पंहुचा और वहां से भारत।

गौरतलब है कि मुंबई के पास कल्याण का रहने वाला अरीब आईएस की लड़ाई में शामिल होने के लिए छह महीने पहले फरार हो गया था। इसके बाद शुक्रवार को उसके भारत लौटते ही उसे एनआईए ने हिरासत में ले लिया।

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