कोरोनावायरस की दूसरी लहर में देश ने ऐसे-ऐसे मंजर देखे हैं जो लोगों को दशकों तक नहीं भूलेंगे. एक दिन में हजारों मौतों से लेकर इलाज-ऑक्सीजन के लिए तड़पते लोगों की तस्वीरें ने तो व्यवस्था की चिंदिया उधेड़ी ही थीं, जब देश की पवित्र नदियों में शव उतराने लगे तो सदमा सा लग गया. उत्तर प्रदेश और बिहार के कई जिलों में नदियों के किनारे सैकड़ों की संख्या में लावारिस शव तैरते हुए मिले. इसके बाद संगम नगरी प्रयाराज सहित कई अन्य जिलों में एक साथ रेत में दफनाई गईं कई लावारिस लाशें सामने आईं. प्रयागराज में तो गंगा नदी के किनारे बालू के उड़ जाने से दर्जनों शव नजर आने लगे, स्थिति इतनी भयावह थी. इन शवों के नदियों में उतराने और रेतों से कफन के झांकने के बाद सामने आईं और भी क्रूर सच्चाईयां.
NDTV की टीम ने इसकी पड़ताल करने की कोशिश की कि आखिर कैसे और क्यों नदियों में इतनी बड़ी संख्या में शव मिलने लगे. सबसे पहले शव बिहार के बक्सर जिले के महादेवा घाट में उतराकर सामने आए थे. टीम ने हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, उन्नाव, प्रयागराज, गाजीपुर और बलिया में इस मामले पर पड़ताल की और इससे कई पहलु सामने आए.
दिन-रात जल रहे थे शव, लकड़ी का पड़ा अकाल
उत्तराखंड के हरिद्वार में दूसरी लहर के शुरुआत से पहले कुंभ हो रहा था. मेले को जारी रहना था, लेकिन दूसरी लहर के आ जाने के बाद इसे बीच में ही रोक दिया गया. यहां के शवदाहगृहों में शवों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही थी. यहां बहुत से लोग कई जिलों से, यहां तक कि दूसरे राज्यों से भी अपने मृत परिजनों के शवदाह के लिए आते हैं. चंडीधाम में एक पुजारी ने बताया कि लाशें इतनी थीं कि कई लोगों को शवदाह के लिए मना कर दिया गया, हालांकि, शवों को लावारिस छोड़े जाने का कोई मामला सामने नहीं आया था.
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर में 15-20 दिन पहले दिन-रात शव जल रहे थे. यहां गढ़गंगा घाट पर पैर जगह नहीं बच गई थी, इतने शव आ रहे थे. यहां शव जलाने वाली लकड़ियों का अकाल पड़ गया था. यहां नाव चलाने वाले रामकृष्ण केवट ने बताया कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में ऐसा मंजर नहीं देखा था. आधा किलोमीटर तक शव जलते रहते थे.
लकड़ी की कमी या रिवाज?
यहां ऐसे कई लोग थे जो अपने साथ लकड़ी लेकर आ रहे थे. उनका कहना था कि उनके यहां अपने गांव से लकड़ी से शव जलाने का रिवाज है. हालांकि, वहां पता चला कि लकड़ी की कमी के चलते लकड़ी मंहगी हो गई थी और प्रशासन को कीमतें तय करनी पड़ी थीं. गढ़मुक्तेश्वर में नदियों में उतराते शव नहीं दिखे थे, लेकिन पता चला कि यहां अस्पतालों के कुछ एंबुलेंस ने लावारिस शव नदी में डाला था. लेकिन प्रशासन ने उनको निकलवाकर उनका दाहसंस्कार करवा दिया था.
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उन्नाव और प्रयागराज में सामने आए छिछले गड्ढों में दफन शव
यूपी के उन्नाव और प्रयागराज में नदियों के किनारे रेत में बड़ी संख्या में दफन शव सामने आए थे. उन्नाव के रौतापुर गांव वालों ने जहां कोविड मरीजों के शव होने से इनकार किया और यह बताया कि यहां पहले से शव आ रहे थे. वहीं प्रयागराज के दृश्य ने सबको हिला कर रख दिया. यहां गंगा नदी के किनारे बड़ी संख्या में शव दफन थे. उन्नाव में लकड़ी के लिए सरकार की ओर से शव जलाने की लकड़ी के लिए 500 रुपए मदद की घोषणा की थी, लेकिन ये मदद कैसे मिलेगी, इसपर भी बहुत सी दिक्कतें दिखीं. सरकारी अफसरों की मुहर के साथ चिट्ठी के बिना लकड़ी नहीं मिली और बहुत से लोग लेने भी नहीं आए. यहां कुछ ने कहा कि मीडिया ने इस मुद्दे को ज्यादा खींचा शवों की संख्या ज्यादा बताई.
परंपराओं और मजबूरी का घालमेल
पूर्वी यूपी में कई जगह अधिकारियों और गांववालों ने बताया कि यहां कई समुदायों और स्थितियों में शवों को दफन करने या बहाने का रिवाज है. हालांकि, ये स्पष्ट नहीं है कि ये सारे शव रिवाज के तौर पर नदियों में फेंके गए या फिर कोविड के चलते बढ़ी मौतों के बीच उचित अंतिम संस्कार भी मयस्सर न हो पाने के चलते. प्रयागराज में कई लोगों ने बताया कि लकड़ी की कमी और मंहगी हो जाने के चलते बहुत से लोग अपने मृत परिजनों को दफनाकर चले जा रहे हैं. कहीं-कहीं पर 4,000 की लकड़ी मिल रही थी. यहां पुजारियों तक ने कहा कि उन्होंने ऐसा दृश्य कभी नहीं देखा है.
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जानवर तक नहीं पी रहे गंगा का पानी
रामपुर के आसपास के इलाकों में कई अधजले शव मिले, जो बताते हैं कि लोग लकड़ी न मिल पाने के चलते शव को उचित अंतिम संस्कार नहीं दे पाए. गाजीपुर में भी गंगा नदी में बड़ी संख्या में शव मिले थे. यहां घाटों पर बदबू फैली हुई थी और हालत ऐसी हो गई थी कि जानवर भी नदी का पानी नहीं पी रहे थे.
मौत में भी सम्मान नहीं
कोविड से मौतों का सरकारी आंकड़ा जो भी हो, यूपी के कई जिलों में दर्दनाक तरीके से सामने आ रहे लावारिस शवों की संख्या बताती है कि सच्चाई क्या है. आखिर ऐसा क्यों हुआ कि महामारी में मरने वालों को सम्मानजनक अंतिम संस्कार भी नहीं मिल सका? आखिर क्यों अचानक से नदियों में शव उतराने लगे और नए-नए दफन शव सामने आने लगे? क्या इसके पीछे के कारण को लकड़ी की कमी या फिर रिवाज माना जा सकता है? क्या हमें कभी भी इस महामारी की असली तस्वीर देखने को मिल पाएगी? इतना जरूर है कि देश में हजारों परिवारों के साथ उनकी मजबूर, दर्दनाक कहानी हमेशा उनके साथ रहेगी.
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