
अपनी ही पार्टी के खिलाफ मामले में सचिन पायलट और 18 अन्य विधायकों ने विधानसभा सदस्यता से अयोग्य घोषित करने की गहलोत सरकार की कोशिशों को रद्द करने की मांग की है. राजस्थान हाइकोर्ट ने आज सचिन पायलट और 18 विधायकों के खिलाफ किसी भी कार्रवाई पर रोक लगा दी. हालांकि कोर्ट ने यह संकेत नहीं दिया है कि वह मामले की सुनवाई कब करेगा. कांग्रेस ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट को अपनी याचिका पर विचार करने के लिए कहा है. पार्टी का कहना है कि स्पीकर द्वारा निर्णय लेने से पहले कोई भी अदालत मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. इस मामले में, कांग्रेस का तर्क है, स्पीकर ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि वह टीम पायलट को अयोग्य ठहराने के लिए कदम उठाएंगे या नहीं. उन्होंने केवल उन्हें यह बताने के लिए कहा है कि उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में बैठक में भाग लेने के पार्टी के आदेशों की अवहेलना क्यों की ? जो हाल ही में पायलट के भी नेता थे.
1.कांग्रेस का कहना है कि पायलट ने दलबदल विरोधी कानूनों का उल्लंघन किया है. लेकिन क्या विधानसभा के बाहर अगर कोई विधायक असहमति जाहिर करता है या कोई मत रखता है तो इसका मतलब है कि उसने पार्टी बदल ली है?
2. क्या हॉर्स ट्रेडिंग पर अंकुश लगाने के लिए मौजूदा दलबदल-विरोधी कानून, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अतिक्रमण करता है?
3. स्पीकर द्वारा पायलट को भेजा गया नोटिस क्या सत्ता पक्ष द्वारा विरोधी सुर को दबाना नहीं है ? साथ ही क्या यह लोकतंत्र की अनिवार्यता को खत्म कर देने जैसा नहीं है?
4. क्या मुख्यमंत्री की आलोचना करना पार्टी छोड़ देने जैसा है ?
5. क्या 1992 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्पीकर को ये अधिकार भी देता है कि वह पार्टी के भीतर असहमति पर भी फैसला दे ? क्या सुप्रीम कोर्ट के सालों पुराने फैसले के बावजूद हाइकोर्ट इन मामलों को देख सकता है ?