नई दिल्ली:
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को हरियाणा में कांग्रेस की सरकार के कार्यकाल के दौरान ज़मीन सौदों के लिए नियम बदलकर फायदा पहुंचाया गया था या नहीं, इस मामले की जांच कर रहे जस्टिस एसएन ढींगरा ने हरियाणा सरकार से रिपोर्ट के लिए और समय मांगा है।
सूत्रों के मुताबिक, जस्टिस ढींगरा ने जांच के लिए और मोहलत मांगते हुए मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर को सूचित किया कि उन्हें कुछ नई जानकारियां मिली हैं, जो कि इस जमीन सौदे में शामिल सरकारी अधिकारियों की पहचान में मददगार साबित हो सकती हैं।
कांग्रेस की भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार के शासनकाल के दौरान रॉबर्ट वाड्रा और अन्य डेवलपरों द्वारा किए गए जमीन सौदों की जांच के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की मनोहरलाल खट्टर सरकार ने लगभग एक साल पहले रिटायर्ड जस्टिस ढींगरा को नियुक्त किया था।
जांच के दौरान इस बात पर भी विवाद हुए कि दिल्ली हाईकोर्ट में जज रह चुके 67-वर्षीय जस्टिस ढींगरा ने रॉबर्ट वाड्रा या उनकी रियल एस्टेट कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी के किसी प्रतिनिधि या इस सौदे में कथित गड़बड़ियों को उजागर करने वाले वरिष्ठ अफसर अशोक खेमका को भी पूछताछ के लिए नहीं बुलाया।
हालांकि NDTV से बातचीत में जस्टिस ढींगरा ने कहा कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि वह सिर्फ सरकारी अफसरों से आमने-सामने मुलाकात करना चाहते थे, और "प्राइवेट पार्टियों को अलग से सवाल भेज दिए गए थे, जिनके जवाब उन्होंने दाखिल कर दिए हैं..."
रॉबर्ट वाड्रा ने गुरुवार को फेसबुक पर एक पोस्ट में लिखा, "सरकार द्वारा लगभग एक दशक से मुझ पर लगाए जा रहे झूठे और आधारहीन आरोप... मुझे हमेशा राजनैतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, मैं जानता हूं... लेकिन मैं हमेशा अपना सिर ऊंचा उठाकर चलूंगा..."
वर्ष 2011 में सेवानिवृत्त हो चुके जस्टिस ढींगरा ने कहा कि वह अपनी जांच के बारे में इससे ज़्यादा कुछ भी नहीं बता सकते, जब तक मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर उनकी रिपोर्ट की समीक्षा नहीं कर लेते।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले रॉबर्ट वाड्रा के कथित रूप से गलत भूमि सौदों की तह तक पहुंचने का वादा किया था, और फिर उसी साल हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान भी उन्होंने अपना वादा दोहराया था।
दरअसल, रॉबर्ट वाड्रा से जुड़ा विवाद गुड़गांव के एक 3.5 एकड़ के प्लॉट के सौदे पर आधारित है, जिसे उन्होंने वर्ष 2008 में 7.5 करोड़ रुपये में खरीदा, और कुछ ही महीने बाद उसे देश के सबसे बड़े रियल एस्टेट डेवलपर डीएलएफ को 58 करोड़ रुपये में बेच दिया।
रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ सौदे में कुछ भी गलत तरीके से किया गया होने से इंकार करते रहे हैं। कांग्रेस, सोनिया गांधी और रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका भी 'फायदा पहुंचाए जाने के लिए किया गया सौदा' होने की बात का खंडन कर चुके हैं, और उन्होंने जांच को 'राजनैतिक बदले की कार्रवाई' करार दिया था। बीजेपी का कहना है कि राज्य में सत्तासीन होने का फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने नियमों में मनचाहे बदलाव किए, जिनसे न सिर्फ रॉबर्ट वाड्रा को ज़मीन सस्ते दामों पर बेची गई, बल्कि उस ज़मीन के कमर्शियल इस्तेमाल के लिए मंजूरी भी बेहद जल्द दे दी गई, जिसकी वजह से बेचने तक उसकी कीमतें बहुत बढ़ गई। उस ज़मीन सौदे को वरिष्ठ नौकरशाह अशोक खेमका ने रद्द कर दिया था, जिनका सिर्फ तीन ही दिन बाद तबादला कर दिया गया।
जस्टिस ढींगरा गुड़गांव के चार गांवों से जुड़े ज़मीन सौदों की जांच कर रहे हैं, जिनमें रॉबर्ट वाड्रा वाला सौदा भी शामिल है। उनका कहना है कि जब सोनिया गांधी की सास इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं, उन्होंने सैन्य वाहनों को खरीद-बिक्री के लिए फिट घोषित किए जाने के बदले रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेने की बात खत लिखकर उन्हें बताई थी।
उन्होंने NDTV से कहा, "मेरे साथ दिक्कत यह थी कि मैं हर हिस्से की क्वालिटी जांचा करता था... मैंने समझ लिया था कि इस विभाग में मैं कतई अनफिट हूं, क्योंकि अधिकतर लोग कमीशन लिया करते हैं, और मैं नहीं लेता था... मैंने इस बारे में अपने विभाग प्रमुख और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी लिखा था..."
जस्टिस ढींगरा ने बताया कि उस वक्त वह 22 वर्ष के थे, और रक्षा मंत्रालय के व्हीकल इंस्पेक्टर के रूप में शुरुआती कार्यकाल के दौरान उन्हें अच्छा भी महसूस होता था, और उन्होंने अहमदनगर में रूसी युद्धक टैंक भी टेस्ट-ड्राइव किया था, लेकिन व्यापक भ्रष्टाचार की वजह से उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया।
उन्होंने बताया, "हमें हर चीज़ के लिए संघर्ष करना पड़ता था... श्रमिक होने के बावजूद मेरे पिता शिक्षा का मूल्य समझते थे, सो, उन्होंन काम करते-करते मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की, जिसकी मदद से वह आयुध डिपो में स्टोरमैन बन पाए... वह चाहते थे कि उनके चारों बच्चे पढ़ें-लिखें, और इस पर वह पूरा ध्यान भी देते थे..."
दिल्ली के एक गरीब परिवार से आने वाले कॉलेज विद्यार्थी के रूप में जस्टिस ढींगरा ने खुद भी रेडियो और टीवी सुधारना सीखा। जो भी 30-40 रुपये वह कमाते थे, उनसे वह अपनी किताबें और घर की ज़रूरत का सामान खरीदा करते थे।
जस्टिस ढींगरा ने अपनी वकालत की डिग्री 1975 में हासिल की और सिटी जज के रूप में काम करने से पहले वकील के रूप में भी काम किया। बाद में वह दिल्ली हाईकोर्ट में पांच साल तक जज रहे।
सूत्रों के मुताबिक, जस्टिस ढींगरा ने जांच के लिए और मोहलत मांगते हुए मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर को सूचित किया कि उन्हें कुछ नई जानकारियां मिली हैं, जो कि इस जमीन सौदे में शामिल सरकारी अधिकारियों की पहचान में मददगार साबित हो सकती हैं।
कांग्रेस की भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार के शासनकाल के दौरान रॉबर्ट वाड्रा और अन्य डेवलपरों द्वारा किए गए जमीन सौदों की जांच के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की मनोहरलाल खट्टर सरकार ने लगभग एक साल पहले रिटायर्ड जस्टिस ढींगरा को नियुक्त किया था।
जांच के दौरान इस बात पर भी विवाद हुए कि दिल्ली हाईकोर्ट में जज रह चुके 67-वर्षीय जस्टिस ढींगरा ने रॉबर्ट वाड्रा या उनकी रियल एस्टेट कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी के किसी प्रतिनिधि या इस सौदे में कथित गड़बड़ियों को उजागर करने वाले वरिष्ठ अफसर अशोक खेमका को भी पूछताछ के लिए नहीं बुलाया।
हालांकि NDTV से बातचीत में जस्टिस ढींगरा ने कहा कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि वह सिर्फ सरकारी अफसरों से आमने-सामने मुलाकात करना चाहते थे, और "प्राइवेट पार्टियों को अलग से सवाल भेज दिए गए थे, जिनके जवाब उन्होंने दाखिल कर दिए हैं..."
रॉबर्ट वाड्रा ने गुरुवार को फेसबुक पर एक पोस्ट में लिखा, "सरकार द्वारा लगभग एक दशक से मुझ पर लगाए जा रहे झूठे और आधारहीन आरोप... मुझे हमेशा राजनैतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, मैं जानता हूं... लेकिन मैं हमेशा अपना सिर ऊंचा उठाकर चलूंगा..."
वर्ष 2011 में सेवानिवृत्त हो चुके जस्टिस ढींगरा ने कहा कि वह अपनी जांच के बारे में इससे ज़्यादा कुछ भी नहीं बता सकते, जब तक मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर उनकी रिपोर्ट की समीक्षा नहीं कर लेते।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले रॉबर्ट वाड्रा के कथित रूप से गलत भूमि सौदों की तह तक पहुंचने का वादा किया था, और फिर उसी साल हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान भी उन्होंने अपना वादा दोहराया था।
दरअसल, रॉबर्ट वाड्रा से जुड़ा विवाद गुड़गांव के एक 3.5 एकड़ के प्लॉट के सौदे पर आधारित है, जिसे उन्होंने वर्ष 2008 में 7.5 करोड़ रुपये में खरीदा, और कुछ ही महीने बाद उसे देश के सबसे बड़े रियल एस्टेट डेवलपर डीएलएफ को 58 करोड़ रुपये में बेच दिया।
रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ सौदे में कुछ भी गलत तरीके से किया गया होने से इंकार करते रहे हैं। कांग्रेस, सोनिया गांधी और रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका भी 'फायदा पहुंचाए जाने के लिए किया गया सौदा' होने की बात का खंडन कर चुके हैं, और उन्होंने जांच को 'राजनैतिक बदले की कार्रवाई' करार दिया था। बीजेपी का कहना है कि राज्य में सत्तासीन होने का फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने नियमों में मनचाहे बदलाव किए, जिनसे न सिर्फ रॉबर्ट वाड्रा को ज़मीन सस्ते दामों पर बेची गई, बल्कि उस ज़मीन के कमर्शियल इस्तेमाल के लिए मंजूरी भी बेहद जल्द दे दी गई, जिसकी वजह से बेचने तक उसकी कीमतें बहुत बढ़ गई। उस ज़मीन सौदे को वरिष्ठ नौकरशाह अशोक खेमका ने रद्द कर दिया था, जिनका सिर्फ तीन ही दिन बाद तबादला कर दिया गया।
जस्टिस ढींगरा गुड़गांव के चार गांवों से जुड़े ज़मीन सौदों की जांच कर रहे हैं, जिनमें रॉबर्ट वाड्रा वाला सौदा भी शामिल है। उनका कहना है कि जब सोनिया गांधी की सास इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं, उन्होंने सैन्य वाहनों को खरीद-बिक्री के लिए फिट घोषित किए जाने के बदले रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेने की बात खत लिखकर उन्हें बताई थी।
उन्होंने NDTV से कहा, "मेरे साथ दिक्कत यह थी कि मैं हर हिस्से की क्वालिटी जांचा करता था... मैंने समझ लिया था कि इस विभाग में मैं कतई अनफिट हूं, क्योंकि अधिकतर लोग कमीशन लिया करते हैं, और मैं नहीं लेता था... मैंने इस बारे में अपने विभाग प्रमुख और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी लिखा था..."
जस्टिस ढींगरा ने बताया कि उस वक्त वह 22 वर्ष के थे, और रक्षा मंत्रालय के व्हीकल इंस्पेक्टर के रूप में शुरुआती कार्यकाल के दौरान उन्हें अच्छा भी महसूस होता था, और उन्होंने अहमदनगर में रूसी युद्धक टैंक भी टेस्ट-ड्राइव किया था, लेकिन व्यापक भ्रष्टाचार की वजह से उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया।
उन्होंने बताया, "हमें हर चीज़ के लिए संघर्ष करना पड़ता था... श्रमिक होने के बावजूद मेरे पिता शिक्षा का मूल्य समझते थे, सो, उन्होंन काम करते-करते मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की, जिसकी मदद से वह आयुध डिपो में स्टोरमैन बन पाए... वह चाहते थे कि उनके चारों बच्चे पढ़ें-लिखें, और इस पर वह पूरा ध्यान भी देते थे..."
दिल्ली के एक गरीब परिवार से आने वाले कॉलेज विद्यार्थी के रूप में जस्टिस ढींगरा ने खुद भी रेडियो और टीवी सुधारना सीखा। जो भी 30-40 रुपये वह कमाते थे, उनसे वह अपनी किताबें और घर की ज़रूरत का सामान खरीदा करते थे।
जस्टिस ढींगरा ने अपनी वकालत की डिग्री 1975 में हासिल की और सिटी जज के रूप में काम करने से पहले वकील के रूप में भी काम किया। बाद में वह दिल्ली हाईकोर्ट में पांच साल तक जज रहे।
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