बिहार में बीजेपी ने एक एक कर नीतीश से लेकर चिराग को कैसे उनकी हैसियत दिखाई

बिहार के CM नीतीश कुमार , लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग़ पासवान और वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष और अभी हाल में नीतीश मंत्रिमंडल से बर्खास्त मुकेश मल्लाह में क्या समानता हैं ?? यहां जानिए-

पटना:

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) , लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग़ पासवान और वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष और अभी हाल में नीतीश मंत्रिमंडल से बर्खास्त मुकेश मल्लाह में क्या समानता हैं ?? इस सवाल का जवाब एक ही हैं कि बिहार की राजनीति में ये तीनों बीजेपी के अहम सहयोगी रहे. लेकिन इन तीनों को मलाल इस बात का है कि भाजपा ने दिल्ली से पटना तक उनको जमकर अपमानित किया और उनके वर्तमान राजनीतिक हालात के लिए विरोधियों से कहीं अधिक सहयोगी के रूप में बीजेपी ही जिम्मेदार है.

इस कड़ी में फ़िलहाल सबसे ताज़ा बारह जनपथ के बंगले से निकाले गये लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग़ पासवान का है. चिराग के अनुसार पिछले डेढ़ साल के दौरान पहले मेरे परिवार को तोड़ा गया फिर उन्हें अपनी पार्टी से निकाला गया और फिर घर से सामान फेंका गया . उनका कहना है कि सम्मान तो नहीं मिला अपमान मिला, सम्मान से समझौता कोई नहीं कर सकता. चिराग़ खुल कर बोलते हैं कि उन्हें भाजपा के तरफ़ से  धोखा ज़रूर मिला.

जिस तरह से घर से सामान निकाला गया चिराग़ के अनुसार जो तरीक़ा था उससे हम लोगों को ज़रूर ऐतराज था. बक़ौल चिराग़ धोखा मेरे साथ हुआ हैं , इस तरह से अपमानित करना ये उचित नहीं था. भविष्य में भाजपा के साथ तालमेल करेंगे इस सम्बंध में पीछे जाने पर चिराग़ का कहना हैं कि जो पब्लिक डोमेन में हैं उसको सब जानते हैं गठबंधन में सम्मान नहीं तो तालमेल कैसा.

चिराग़ अकेले नहीं बल्कि पिछले हफ़्ते ही भाजपा के निशाने पर पिछले कुछ हफ़्ते से आये वीआईपी पार्टी के मुकेश साहनी के पहले सभी विधायकों को भाजपा ने अपने पार्टी में शामिल कराया और फिर नीतीश कुमार को लिखित में दिया कि उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाये. जिसके बाद नीतीश ने उसी आधार पर मुकेश साहनी को बर्खास्त भी किया. साहनी के ऊपर दबाव था. जिसे खुद बिहार भाजपा के अध्यक्ष डॉक्टर संजय जायसवाल ने माना कि वो अपने पार्टी का विलय भाजपा में करे और बोचहा विधान सभा क्षेत्र जहां उप चुनाव हो रहा हैं अपना प्रत्याशी ना दें.

मुकेश ने उनकी दोनो बातें अनसुनी कर दी और अब उनका कहना हैं कि उनके साथ धोखा हुआ . हालांकि उन्हें अपने साथ इस कार्रवाई का अंदाज़ पिछले साल उस समय हो गया था जब विधान परिषद के उप चुनाव में उन्हें उस सीट से उम्मीदवार बनाया गया था. जिसका कार्यकाल मात्र डेढ़ साल बचा था. हालांकि साहनी के बारे में कहा जाता हैं कि उन्होंने अपनी राजनीतिक क्षमता को बहुत अधिक आंक लिया और उन्हें कदम फूंक फूंक कर रखना चाहिए था. लेकिन भाजपा ने अर्श से फ़र्श तक लाने में बहुत सक्रिय भूमिका दिखाई. जबकि चिराग़ के मामले में नीतीश अधिक सक्रिय रहे क्योंकि उनको विधान सभा चुनाव में अपने पार्टी को तीसरे नम्बर पर पहुंचाने का बदला लेना था.

बिहार के सीएम नीतीश भी जानते हैं कि विधान सभा चुनाव में अगर चिराग़ ने अलग लड़ने के बाबजूद अगर केवल उनके ख़िलाफ़ प्रत्याशी दिये तो वो भी असल भाजपा की एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा थी . नीतीश की परेशानी हैं कि मुख्य मंत्री की कुर्सी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की कृपा से मिल तो गयी हैं लेकिन भाजपा धीरे धीरे उनको बिहार की राजनीति में हासिये पर ला दिया हैं. विरोधी से अधिक भाजपा के मंत्री और विधायक उनके ख़िलाफ़ हमलावर रहते हैं. एक और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय देने की मांग ख़ारिज कर उनको उनकी हैसियत बता दी. 

विशेष राज्य का दर्जा हो या जातिगत जनगणना की मांग उनके अपने मंत्रिमंडल के सहयोगी इसका सार्वजनिक रूप से विरोध कर नीतीश कुमार की सार्वजनिक किरकिरी कर देते हैं . नौबत ये आ गयी हैं कि नीतीश विधान सभा अध्यक्ष से अपनी नाराज़गी सदन के अंदर दिखाते हैं और बाद में उन्हें मनाने के लिए उनके इच्छाअनुसार सारी माँगो को मान लेते हैं. जो नीतीश एक मंत्री पद मिलने पर दिल्ली से उल्टे पाँव लौट कर आ गये थे बाद में भाजपा के कहने पर एक मंत्री पद से भी संतोष किया जिससे जनता में उनकी छवि धूमिल हुई.

हद तो तब हो गई जब अरुणाचल में नीतीश के पार्टी के सभी विधायकों को भाजपा में शामिल कर लिया गया और नीतीश देखते रह गये. नीतीश चाहे झारखंड हो या उत्तर प्रदेश सब जगह भाजपा से विधान सभा चुनावों के दौरान सीटों की गुहार लगाते रहे लेकिन आख़िरकार उन्हें चुनाव मैदान में अकेले जाना पड़ा. वहीं भाजपा के नेताओं का कहना हैं कि ये एक संयोग हैं कि बिहार में सहयोगियों से सम्बंध भले मधुर ना हों लेकिन भाजपा ने सबको सम्मान दिया. नीतीश को तीस से अधिक सीटों का फ़ासला होने के बाद भी मुख्य मंत्री का ताज दिया.

एक और बात अलग हैं कि उनकी अपने नीतियों के कारण धाक नहीं रही तो विधायक भी जनता के दबाव के कारण अब मुखर होके बोलते हैं. लेकिन विधान सभा चुनाव में नीतीश के ख़िलाफ़ इतना अधिक लोगों में नाराज़गी थी कि अगर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का साथ नहीं होता तो उनकी पार्टी दस से अधिक सीटें नहीं जीत सकती थी. वैसे ही स्वर्गीय रामविलास पासवान का उनके जीवन काल में पूरा ख़्याल रखा गया लेकिन पार्टी चिराग़ को बहुत अधिक भाव नहीं देना चाहती. जहां तक मुकेश साहनी का सवाल हैं वो किसी भी गठबंधन में रहेंगे उनके साथ दूर तक चलना आसान इसलिए नहीं कि वो बहुत जल्दबाज़ी में रहते हैं.

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राजनीतिक जानकारो के अनुसार निश्चित रूप से भाजपा के आक्रामक रवैए के कारण उनके सहयोगी कभी भी आराम से नहीं वह पाते क्योंकि भाजपा जातिगत आधार पर बनी पार्टियों को ख़त्म कर अपना एकाधिकार का राजनीतिक भविष्य देखती हैं और उसके निशाने पर विरोधियों से कहीं अधिक अपने सहयोगियों का वोट बैंक होता हैं. जिसे सहयोगी दल को ख़त्म कर वो अपने और लाना चाहती हैं .
 

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