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This Article is From Sep 06, 2017

समलैंगिक संबंध सही या गलत? सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की पीठ करेगी सुनवाई

ये पहला मौका होगा जब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ की ओर से दिए निजता के अधिकार के फैसले के बाद इस मामले की सुनवाई होगी.

समलैंगिक संबंध सही या गलत? सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की पीठ करेगी सुनवाई
आईपीसी की धारा 377 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में फिर से होगी सुनवाई.
नई दिल्ली: समलैंगिक संबंधों पर आईपीसी की धारा 377 को चुनौती देने वाली क्यूरेटिव याचिका पर शुक्रवार आठ सितंबर को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ सुनवाई करेगी. ये पहला मौका होगा जब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ की ओर से दिए निजता के अधिकार के फैसले के बाद इस मामले की सुनवाई होगी. नाज फाउंडेशन की क्यूरेटिव याचिका में कहा गया है कि ये कानून लोगों के मूल अधिकारों का हनन करता है और इसे रद्द किया जाना चाहिए.

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याचिका में ये भी कहा गया है कि ये वो गे, लेस्बियन हैं और ये कानून संविधान की ओर से दिए के जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है, जिसके तहत सभी को अपना पार्टनर चुनने और अपने तरीके से जीवन जीने का अधिकार दिया गया है.

दरअसल, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 में बदलाव करने से मना कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून में बदलाव करना संसद का काम है.

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इसके खिलाफ दायर संशोधन याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. समलैंगिक अधिकारों के लिए काम करने वाले एनजीओ नाज़ फाउंडेशन ने क्यूरेटिव पेटिशन दाखिल की थी.

दो फरवरी 2016 को कोर्ट में कपिल सिब्बल ने वयस्कों के बीच बंद कमरे में सहमति से बने संबंधों को संवैधानिक अधिकार बताया. कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही नहीं था. हालांकि अदालत में मौजूद चर्च के वकील और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील ने याचिका का विरोध किया था. तत्कालीन CJI टीएस ठाकुर ने मामले को पांच जजों के संविधान पीठ में भेज दिया था.

पिछले साल डांसर एनएस जौहर, शेफ रितू डालमिया, होटल मालिक अमन नाथ समेत कई लोगों ने भी इसी तरह की याचिका दायर की थी.

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निजता के अधिकार के फैसले में है जिक्र: निजता के अधिकार के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने नाज फाउंडेशन के जजमेंट का जिक्र करते हुए कहा एलजीबीटी के अधिकार को तथाकथित नहीं कहा जा सकता. चीफ जस्टिस सहित चार जजों ने अपने जजमेंट में नाज फाउंडेशन से संबंधित जजमेंट का जिक्र किया और कहा कि सेक्सुअल ओऱिएंटेशन (अनुकूलन) निजता का महत्वपूर्ण अंग है. नाज फाउंडेशन मामले में दिए फैसले में हाई कोर्ट ने धारा-377 को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए धारा-377 यानी होमो सेक्सुअलिटी को अपराध करार दिया था.

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इस मामले में अदालत ने जो कारण बताया वह सही नहीं था कि वह निजता को अनुच्छेद-21 का पार्ट क्यों नहीं मान रहे. निजता का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है. इसे इस आधार पर मना नहीं किया जा सकता कि समाज के छोटे हिस्से एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर) की ये बात है. सेक्सुअल ओरिएंटेशन निजता का महत्वपूर्ण अंग है.

किसी के साथ भी सेक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर भेदभाव करना उसके गरिमा के प्रति अपराध है. किसी का भी सेक्सुअल ओरिएंटेशन समाज में संरक्षित होना चाहिए. अनुच्छेद-14, 15 और 21 के मूल में निजता का अधिकार है और सेक्सुअल ओरिएंटेशन उसमें बसा हुआ है.

एलजीबीटी के अधिकार को तथाकथित अधिकार कहा गया था जो नहीं कहा जाना चाहिए था. उनका अधिकार भी असली अधिकार है. जीवन के अधिकार से उनको निजता का अधिकार मिला हुआ है. समाज के हर वर्ग को संरक्षण मिला हुआ है. उसमें भेदभाव नहीं हो सकता. चूंकि धारा-377 का मामला लार्जर बेंच में लंबित है ऐसे में इस मसले पर वही फैसला लेंगे.

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