समलैंगिकता को अपराध बताने वाली आईपीसी की धारा 377 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्यूरेटिव याचिका का निस्तारण कर सुनवाई बंद कर दी. पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि इस संबंध में 2018 में नवतेज सिंह जौहर केस में फैसला आ चुका है, लिहाजा यह याचिका निष्प्रभावी हो गई है.
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ गुरुवार को समलैंगिकता को अपराध बताने वाली आईपीसी की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने से संबंधित याचिकाओं पर आए फैसले पर दाखिल क्यूरेटिव याचिका पर विचार कर रही थी.
नाज फाउंडेशन ने यह अर्जी दाखिल की थी. हालांकि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर चुकी है, ऐसे में इस सुनवाई के ज्यादा मायने नहीं रह जाते हैं.
समलैंगिकता पर 6 सितंबर 2018 को एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट (SC) ने कहा था कि सहमति से वयस्क समलैंगिक संबंधों को अपराध नहीं माना जाएगा. कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिकता स्वाभाविक है और लोगों का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है. देश की शीर्ष अदालत की संविधान पीठ के इस फैसले ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की ब्रिटिश काल की धारा 377 को खत्म किया था. इससे पहले तक समलैंगिक यौन संबंधों को दंडनीय अपराध माना जाता था.
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