देश की 10 बड़ी सुरक्षा एजेंसियों को देशभर के कंप्यूटरों पर नजर रखने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. गृह मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी कर इन एजेंसियों को कंप्यूटर डाटा की जांच का अधिकार दिया था. गृह मंत्रालय के इस नोटिफिकेशन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. याचिका में कहा गया है कि 20 दिसंबर का ये आदेश गैरकानूनी, मौलिक अधिकारों के खिलाफ और संविधान के विपरित है. गृहमंत्रालय इस तरह का ब्लैंकेट सर्विलांस का आदेश जारी नहीं कर सकता और इसे निजता के अधिकार की कसौटी पर तौला जाना चाहिए.
वकील मनोहर लाल शर्मा की ओर से दाखिल की गई याचिका में नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग की गई है. साथ ही याचिका में कहा गया है, 'केंद्र ने यह आदेश जारी कर आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर विपक्ष, सत्ता के खिलाफ बोलने वाले व सोचने वालों को चुप कराने की कोशिश की है. ये अघोषित इमरजेंसी है और आजाद भारत में नागरिकों को गुलाम बनाने जैसा है. सरकार को किसी भी ऐसे मामले में किसी नागरिक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से रोका जाए, जिसमें उम्रकैद तक की सजा और दो लाख रुपए के जुर्माने तक का प्रावधान है.'
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क्या है पूरा मामला
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देश की 10 बड़ी सुरक्षा एजेंसियों को देश के सभी कंप्यूटरों में नजर रखने की इजाजत दी है. इन एजेंसियों के पास अधिकार होगा कि ये आपके कंप्यूटर डाटा की जांच कर सके और उस पर नजर रख सकें. केंद्र सरकार ने सरकारी आदेश जारी करते हुए इन 10 एजेंसियों के नाम भी जाहिर किए हैं, जिन्हें ये अधिकार दिया गया है. इनमें सीबीआई, आईबी, एनआईए जैसी बड़ी सुरक्षा एजेंसियां भी शामिल हैं. गृह मंत्रालय के आदेश के मुताबिक ये एजेंसियां आपके कंप्यूटर पर नजर रख सकती हैं.
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केंद्र सरकार ने प्रमुख 10 सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को किसी भी व्यक्ति या संस्थान के कंप्यूटर के डेटा को जांचने का अधिकार दिया है. ऐसा करने के पीछे की वजह देश की सुरक्षा बताई जा रही है. गृह मंत्रालय की ओर से जारी आदेश के मुताबिक, देश की ये प्रमुख सुरक्षा एजेंसियां किसी भी व्यक्ति के कंप्यूटर में जेनरेट, ट्रांसमिट, रिसीव और स्टोर किए गए किसी दस्तावेज को भी देख सकती हैं. खुफिया एजेंसियों को यह अधिकार सूचना और प्रौद्योगिकी (आईटी) एक्ट की धारा-69 के तहत दिया गया है.
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