''डॉ. अंबेडकर ने तो 50 साल पहले ही पर्दा प्रथा की..'': Hijab विवाद में कर्नाटक HC ने फैसले में किया कुछ किताबों का जिक्र

हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने अपने फैसले में लिखा है कि हमारे संविधान के निर्माताओं में प्रमुख डॉक्टर अंबेडकर ने तो पचास साल पहले ही पर्दा प्रथा की खामियां और नुकसान बताए जो हिजाब, घूंघट और नकाब पर भी बराबर तौर से लागू होते हैं.

''डॉ. अंबेडकर ने तो 50 साल पहले ही पर्दा प्रथा की..'': Hijab विवाद में कर्नाटक HC ने फैसले में किया कुछ किताबों का जिक्र

हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने अहम फैसला दिया है

बेंगलुरु:

Hijab Row: हिजाब मामले में 129 पेज के फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) की पूर्ण पीठ ने कुछ किताबों के जरिये अपने फैसले को आधार दिया है. फैसले की शुरुआत में पीठ ने अमेरिकी लेखिका सारा स्लिनिंगर की पुस्तक में छपे लेख veiled women: hijab, religion and cultural practice -2013 यानी 'पर्दा: हिजाब, मजहब और तहजीब( सांस्कृतिक परंपरा) ' को उद्धृत करते हुए लिखा है 'हिजाब का इतिहास बहुत पेचीदा है क्योंकि इसमें समय-समय पर मजहब और तहजीब का भी असर है. इसमें कोई शक नहीं कि कई महिलाएं समाज की ओर से डाले गए नैतिक दबाव की वजह से पर्दानशीं रहती हैं जबकि कई इसलिए खुद को परदे में रहती है क्योंकि कई अन्य वजह से वो इसे अपनी पसंद मान लेती हैं. कई बार जीवन साथी, परिवार और रिश्तेदारों की सोच का असर भी होता है. कई बार तो वो परदे में रहना इसलिए भी स्वीकार करती है क्योंकि उनका समाज इसी आधार पर उस महिला के प्रति अपनी राय बनाता है.लिहाजा इस मामले में कुछ भी राय बनाना बेहद पेचीदा है '

इसके बाद पीठ ने लिखा है कि इस सिलसिले में डॉ बी आर अम्बेडकर के विचार भी इसी तरह के हैं. बाबा साहब ने अपनी मशहूर किताब ' पाकिस्तान ओर द पार्टिशन ऑफ इंडिया (1945) के दसवें अध्याय में पहला हिस्सा लिखते समय सोशल स्टैगनेशन शीर्षक के तहत लिखा है, 'एक मुस्लिम महिला सिर्फ अपने बेटे, भाई, पिता, चाचा ताऊ और शौहर को देख सकती है या फिर अपने वैसे रिश्तेदारों को जिन पर विश्वास किया जा सकता है.वो मस्जिद में नमाज अदा करने भी नहीं जा सकती.बिना बुर्का पहने वो घर से बाहर भी नहीं निकल सकती. तभी तो भारत के गली कूचों सड़कों पर आती जाती बुर्कानशीं मुस्लिम औरतों का दिखना आम बात है.मुसलमानों में भी हिंदुओं की तरह और कई जगह तो उनसे भी ज्यादा  सामाजिक बुराइयां हैं.अनिवार्य पर्दा प्रथा भी उनमें से ही एक है .उनका मानना है कि उससे उनका शरीर पूरी तरह ढंका होता है. लिहाजा शरीर और सौंदर्यके प्रति सोचने के बजाय वो पारिवारिक झंझटों और रिश्तों की  उलझनें सुलझाने में ही उलझी रहती हैं क्योंकि उनका बाहरी दुनिया से संपर्क कटा रहता है.वो बाहरी सामाजिक कार्यकलाप में हिस्सा नहीं लेती लिहाजा उनकी गुलामों जैसी मानसिकता हो जाती है. वो हीन भावना से ग्रस्त कुंठित और लाचार किस्म की हो जाती हैं. कोई भी भारत में मुस्लिम औरतों में पर्दा प्रथा से उपजी समस्या के गंभीर असर और परिणामों के बारे में जान सकता है.' 

हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने अपने फैसले में लिखा है कि हमारे संविधान के निर्माताओं में प्रमुख डॉक्टर अंबेडकर ने तो पचास साल पहले ही पर्दा प्रथा की खामियां और नुकसान बताए जो हिजाब, घूंघट और नकाब पर भी बराबर तौर से लागू होते हैं. ये परदा प्रथा किसी भी समाज और धर्म की आड़ में हो हमारे संविधान के आधारभूत समता और सबको समान अवसर मिलने के सिद्धांत के सर्वथा खिलाफ है.स्कूलों के ड्रेसकोड से अलग हिजाब, भगवा पटके, हेडगियर या अंगवस्त्र सहित धार्मिक प्रतीक चिह्न पहनना कतई उचित नहीं है. ये अनुशासन के भी खिलाफ है

हिजाब मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा कि हिजाब मुद्दे के पीछे “ छिपे हुए हाथ” हो सकते हैं.  साथ ही उम्मीद जताई कि जल्द ही मामले की जांच पूरी होगी. हाईकोर्ट ने फैसले में कहा है कि ड्रेस कोड को लेकर 2004 से सब ठीक था. हम भी प्रभावित हैं कि मुसलमान 'अष्ट मठ संप्रदाय', (उडुपी वह स्थान है जहां आठमठ स्थित हैं) के त्योहारों में भाग लेते हैं.  हम इस बात से निराश हैं कि कैसे, वो भी अचानक, अकादमिक कार्यकाल के बीच में हिजाब का मुद्दा पैदा हुआ और जरूरत से ज्यादा हवा दी गई.  जिस तरह से, हिजाब का जटिल मुद्दा सामने आया, उससे गुंजाइश बनती है कि इसके पीछे  कुछ ' छिपे हुए हाथ' काम कर रहे हैं.  जिस तरह सामाजिक अशांति और  द्वेष फैलाने की कोशिश की गई, उसमें बहुत कुछ बताने की जरूरत नहीं है.  हम चल रहे मामले पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं ताकि  पुलिस जांच प्रभावित ना हो.  हमने सीलबंद लिफाफे में दिए गए पुलिस कागजात देखे हैं. हम तुरंत और प्रभावी जांच की उम्मीद करते हैं ताकि बिना देरी बर्दाश्त ना करते हुए मामले की जांच कर दोषियों को गिरफ्तार किया जा सके.

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