नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को सुनवाई करेगा. CJI एसए बोबडे, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर की बेंच सुनवाई करेगी. CAA को लेकर कुल याचिकाओं की संख्या 144 हो चुकी है. इनमें से एक-दो या कुछेक को छोड़कर सब उसके खिलाफ हैं. हम कह सकते हैं कि नागरिकता कानून के खिलाफ 140 से ज्यादा याचिकाएं हैं. हालांकि ज्यादातर याचिकाओं में कानून को असंवैधानिक करार देकर रद्द करने की मांग की गई है. याचिकाओं में कहा गया है कि CAA संविधान के मूल ढांचे के साथ छेड़छाड़ करता है. ये कानून मनमाना और समानता के अधिकार के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है. धर्म के आधार पर किसी को नागरिकता देने से इनकार नहीं किया जा सकता है.
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सुप्रीम कोर्ट ने पहले इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. NPR और CAA के खिलाफ दाखिल एक जनहित याचिका पर भी सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. इसमें भी केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया गया है. याचिका इसरारुल हक मंडल ने दाखिल की है. याचिका में गृह मंत्रालय द्वारा 31 जुलाई 2019 की अधिसूचना के अनुसार एनपीआर अप्रैल से शुरू होने वाला है.
लगातार विरोध के बीच सुप्रीम कोर्ट में विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 130 याचिकाओं पर सुनवाई होगी. मुख्य याचिकाकर्ता जयराम रमेश, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जमीयत उलेमा हिंद, असदुद्दीन ओवैसी, असम से कई संगठन हैं, जिसमें ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन, कमल हसन की पार्टी, डीएमके और महुआ मोइत्रा शामिल हैं. याचिकाओं में कानून पर रोक लगाने की मांग भी की है.
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अनुच्छेद 370 मामले में भी सुनवाई-
वहीं, सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 370 की संवैधानिक वैधता परखने के लिए जस्टिस एनवी रमनाकी अध्यक्षता में पांच जजों का संविधान पीठ मामले की सुनवाई बुधवार जारी रखेगी. केंद्र की ओर से पेश AG के के वेणुगोपाल ने इस मामले को पांच से अधिक जजों की संविधान पीठ में ना भेजे जाने की वकालत की. हस्तक्षेपकर्ताओं ने आज कहा था कि अदालत को 5 से अधिक न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को मामला भेजने के लिए कहा जाए लेकिन दूसरे वकीलों और अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल द्वारा इस पर आपत्ति जताई गई थी,
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सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जे को रद्द करने की अधिसूचना जारी करने की कोई शक्ति नहीं है. 370 एक सुरंग है जिसके माध्यम से केंद्र और राज्य के बीच संबंध बनाए रखा गया और शासित किया गया. राज्य केवल 370 की मदद से ही भारत संघ का हिस्सा बनता है. यहां तक कि जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को संविधान के निर्माताओं द्वारा स्वीकार किया गया था और माना था कि राज्य स्वतंत्र रहेगा. जम्मू-कश्मीर संविधान बनने के बाद भारतीय संविधान काम करना बंद कर देता है. जम्मू-कश्मीर के संविधान में संशोधन करने की शक्ति रखता है. भारत का संविधान नहीं. "जियो और जीने दो" के सिद्धांत के साथ काम करना चाहिए.
बेंच के चार अन्य जजों में जस्टिस एसके कौल, जस्टिसआर सुभाष रेड्डी, जस्टिसबीआर गवई और जस्टिससूर्यकांत शामिल हैं.
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