जाति या धर्म के नाम पर बनी पार्टियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे चुनाव आयोग : गोविंदाचार्य

जाति या धर्म के नाम पर बनी पार्टियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे चुनाव आयोग : गोविंदाचार्य

गोविंदाचार्य (फाइल फोटो)

नई दिल्‍ली:

चुनाव आयोग से जाति या धर्म के नाम पर बने राजनीतिक दलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए जाने माने चिंतक के एन गोविंदाचार्य ने कहा कि जाति या धर्म के नाम पर बने राजनीतिक दलों का नाम और चुनाव चिह्न बदलने को परामर्श जारी करने के साथ आगे से जाति, धर्म, वर्ण, भाषा इत्यादि के आधार पर किसी भी नए राजनीतिक दल का पंजीकरण नहीं किया जाना चाहिये. गोविंदाचार्य ने कहा कि हमने भारतीय चुनाव आयोग से तीन मांग की हैं जिसमें पहली मांग है... धर्म और जाति के नाम पर बने सभी राजनीतिक दलों को 30 दिन के भीतर अपना नाम और चुनाव चिह्न बदलने के लिए चुनाव आयोग द्वारा परामर्श या परिपत्र जारी किया जाए.

उन्होंने कहा कि इसके अलावा हमारी मांग है कि धर्म और जाति के नाम पर बने सभी राजनीतिक दल जो पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी खड़े कर रहे हैं, वे एक सप्ताह के भीतर अपने नाम व चुनाव चिह्न में बदलाव करें. अथवा वे अपनी वेबसाइट तथा घोषणापत्र में यह बात स्पष्ट रूप से लिखें कि वे किसी जाति या धर्म तक सीमित नहीं हैं तथा भारतीय संविधान पर उनकी पूरी आस्था है.

गोविंदाचार्य ने कहा कि हमारी यह भी मांग है कि इसके बाद से जाति, धर्म, वर्ण, भाषा इत्यादि के आधार पर किसी भी नए राजनीतिक दल का पंजीकरण नहीं किया जाए. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को विधिक प्रतिवेदन देकर मैंने उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुरूप जाति और धर्म के नाम पर बने राजनीतिक दलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है. उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने 2 जनवरी 2017 को पारित आदेश से जाति या धर्म के नाम पर चुनावों में वोट मांगने पर रोक लगा दी है.

गोविंदाचार्य ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता विराग गुप्ता के माध्यम से चुनाव आयोग को 20 जनवरी को दिए गए विधिक प्रतिवेदन में मैंने 60 राजनीतिक दलों का विवरण दिया है जो जाति, धर्म, समुदाय या भाषा के नाम पर बनाए गए हैं और जिनका नाम बदला जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने आकाशवाणी पर उन गानों पर भी रोक लगा दी है जिसमें दलों के चुनाव चिन्हों का नाम आता है. यदि जाति या धर्म के नाम पर कोई राजनीतिक दल बना है तो उसके नाम का इस्तेमाल भी उच्चतम न्यायालय के आदेश का उल्लंघन माना जाएगा. चुनाव आयोग द्वारा 11 जनवरी को जारी आदेश के पैरा 10-ई के अनुसार चुनावी प्रचार में अदालती आदेश की अवमानना नहीं की जा सकती है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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