किसानों ने हाल ही में दिल्ली में आंदोलन किया (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:
दिल्ली में किसानों के आंदोलन से सरकार चिंतित हो गई है. किसानों के आंदोलन के दो दिन भी पूरे नहीं हुए कि कृषि मामलों की संसदीय समिति ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का मूल्यांकन शुरू कर दिया है.
दिल्ली में देश के कोने-कोने से आए हजारों किसान अलग-अलग भाषा में अपनी तकलीफ बताकर लौट गए हैं. किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर भी सवाल उठाए थे. अब कृषि मामलों की संसदीय समिति ने सोमवार को कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से इस पर सवाल-जवाब किया.
स्थायी समिति के सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों की खराब हुई फसल का भुगतान देर से हो रहा है और इसके लिए बीमा कंपनियों की जवाबदेही तय होनी चाहिए.
यह भी पढ़ें : 4 महीने की कठिन मेहनत और 750 किलो प्याज के मिले महज 1064 रुपये, नाराज किसान ने पैसा पीएम राहत कोष को दान किया
एनडीटीवी से बातचीत में नीति आयोग की लैंड कमेटी के चेयरमैन टी हक ने माना कि पीएम फसल बीमा योजना के तहत किसानों को कुछ राज्यों में रकम का सही भुगतान नहीं हो पा रहा है. टी हक ने एनडीटीवी से कहा, "अमल करने के मुद्दे हैं...कई बार समय पर भुगतान नहीं हो पा रहा है. कंपनियां कहती हैं कि बिना नुकसान के आकलन के भुगतान नहीं कर सकती हैं."
VIDEO : रामलीला मैदान से संसद तक किसानों का मार्च
अब संसदीय समिति ने 18 दिसंबर तक कृषि मंत्रालय से कहा है कि वह सांसदों की तरफ से उठाए गए सवालों के जवाब दें.
दिल्ली में देश के कोने-कोने से आए हजारों किसान अलग-अलग भाषा में अपनी तकलीफ बताकर लौट गए हैं. किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर भी सवाल उठाए थे. अब कृषि मामलों की संसदीय समिति ने सोमवार को कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से इस पर सवाल-जवाब किया.
स्थायी समिति के सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों की खराब हुई फसल का भुगतान देर से हो रहा है और इसके लिए बीमा कंपनियों की जवाबदेही तय होनी चाहिए.
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एनडीटीवी से बातचीत में नीति आयोग की लैंड कमेटी के चेयरमैन टी हक ने माना कि पीएम फसल बीमा योजना के तहत किसानों को कुछ राज्यों में रकम का सही भुगतान नहीं हो पा रहा है. टी हक ने एनडीटीवी से कहा, "अमल करने के मुद्दे हैं...कई बार समय पर भुगतान नहीं हो पा रहा है. कंपनियां कहती हैं कि बिना नुकसान के आकलन के भुगतान नहीं कर सकती हैं."
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अब संसदीय समिति ने 18 दिसंबर तक कृषि मंत्रालय से कहा है कि वह सांसदों की तरफ से उठाए गए सवालों के जवाब दें.
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