यह ख़बर 21 फ़रवरी, 2014 को प्रकाशित हुई थी

साल 2012 में सेना की कथित दिल्ली कूच मामले में नया विवाद

नई दिल्ली:

दो साल पुराने सेना के कथित दिल्ली कूच मामले में एक नया खुलासा हुआ है, तब के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल एके चौधरी ने एक अखबार को दिए साक्षात्कार में इस बात की पुष्टि की है कि सेना की दो टुकड़ियों के दिल्ली की तरफ बढ़ने से सत्ता में शीर्ष स्तर पर घबराहट पैदा हो गई थी।

यह मामला तब के आर्मी चीफ जनरव वीके सिंह और सरकार के बीच चल रही खींचतान के चलते गर्म था। रिटायर हो चुके लेफ्टिनेंट जनरल चौधरी ने हालांकि माना है कि यह महज रूटीन अभ्यास था, लेकिन इस पर रक्षा सचिव ने रात को उन्हें बुलाकर इस पर सफाई मांगी थी। चौधरी के मुताबिक 16 जनवरी, 2012 को सेना की टुकड़ी जब हिसार से दिल्ली की ओर रवाना हुई, तो रात करीब 11 बजे रक्षा सचिव ने फोन करके उन्हें बुलाया।

चौधरी ने कहा कि सेना प्रमुख को सूचना देने के बाद वह रक्षा सचिव से मिलने गए। पूर्व डीजीएमओ के मुताबिक रक्षा सचिव ने उनसे कहा कि वह शीर्ष नेतृत्व से मिलकर आ रहे हैं और वे बेहद चिंतित हैं। चौधरी ने जब रक्षा सचिव को बताया कि यह रूटीन अभ्यास है, तो उन्होंने कहा कि टुकड़ी को जल्द वापस जाने को कहा जाए।

तत्कालीन डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल एके चौधरी ने कहा है कि ऐसा हो सकता है कि इस मामले पर सेना और सरकार के बीच 'अविश्वास' था, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) ने आज इस बात को खारिज कर दिया। चौधरी के हवाले से एक साक्षात्कार में कहा गया था कि तत्कालीन रक्षा सचिव शशिकांत शर्मा ने उनसे सैन्य बलों को वापस भेजने को कहा था, क्योंकि सरकार का शीर्ष नेतृत्व इस बारे में 'चिंतित' था।

रक्षामंत्री एके एंटनी ने एक बार फिर इसका खंडन किया है। एंटनी के मुताबिक रक्षा सचिव ने संसदीय स्थायी समिति के सामने भी कहा था कि यह रूटीन अभ्यास था।

इस बारे में पूछे जाने पर एनएसए शिवशंकर मेनन ने कहा कि सेना और सरकार के बीच किसी प्रकार के अविश्वास की स्थिति नहीं थी। उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता कि अविश्वास था। मैं ऐसी चीज पर टिप्पणी कैसे कर सकता हूं, जो मुझे नजर नहीं आती। मैं एक असैन्य अधिकारी हूं, मैं प्रतिदिन सेना के साथ बहुत निकटता से काम करता हूं। मुझे ऐसा नहीं लगता।

चौधरी ने कहा कि सैन्य बलों की गतिविधि एक 'सामान्य' अभ्यास थी और जब उन्होंने सरकार को इस बारे में समझाया, तो वह तत्काल यह बात समझ गई। लेकिन इससे पहले या तो गलतफहमी थी... या अविश्वास हो सकता है। जब संवाददाताओं ने उनसे पूछा कि क्या सेना की गतिविधि को लेकर उस समय सरकार में किसी प्रकार का भ्रम था, उन्होंने पलट कर कहा, आप उनसे (सरकार) पूछें।

यह पूछे जाने पर कि क्या इस मामले पर सरकार के भीतर खतरे की घंटी बज गई थी, उन्होंने कहा, मैं नहीं कहूंगा कि वे चिंतित थे या नहीं थे। चौधरी ने कहा कि सरकार और सैन्य मुख्यालय के बीच प्रतिदिन बातचीत होती है और यदि उस समय किसी प्रकार का भ्रम था, तो उस पर ऐसी बैठकों में स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार 'थोड़ा उत्तेजित' हो गई थी, जो अनावश्यक था।

चौधरी ने कहा, मैं केवल यह सोच रहा था कि उन्होंने (सरकार) जो सोचा, यदि इस प्रकार की सूचनाएं थीं, तो उन्हें हमसे बात करनी चाहिए थी और स्पष्टीकरण मांगना चाहिए था। यह मामला उसी समय समाप्त हो जाता।

(इनपुट भाषा से भी)


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