देश में चल रहे तमाम NGO को विदेशों से मिलने वाली फंडिंग को लेकर केंद्र सरकार की 2020 में लागू नीति पर आपत्ति वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि पैसे का दुरुपयोग न हो. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विदेशी फंड प्राप्त करने वाले गैर सरकारी संगठनों द्वारा धन का दुरुपयोग नहीं किया जाए. फंड का उपयोग केवल उसी उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए जिसके लिए उन्हें प्राप्त किया गया है, अन्यथा FCRA (विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम) का उद्देश्य हल नहीं होगा.
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इससे पहले केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दलील पेश करते हुए कहा कि अगर विदेशी योगदान अनियंत्रित हुआ तो राष्ट्र की संप्रभुता के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं. विदेशी फंड को रेगुलेट करने की जरूरत है, नक्सली गतिविधि या देश को अस्थिर करने के लिए पैसा आ सकता है. IB के इनपुट भी होते हैं. विकास कार्यों के लिए आने वाले पैसे का इस्तेमाल नक्सलियों को प्रशिक्षित करने के लिए किया जाता है.
उधर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह नहीं माना जा सकता कि हर कोई अपराधी है और देश की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ है. देश में कोविड के दौरान आधा प्रशासन गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से हुआ है. दरअसल जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने मामले में सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से कहा कि संशोधन केवल विदेशी फंड के प्रवाह और बहिर्वाह के बेहतर नियमन और निगरानी के लिए किए गए हैं. इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा कि किसी भी NGO को विदेश से धन प्राप्त करने का मौलिक अधिकार नहीं है. गैर-सरकारी संगठनों को विदेशी धन के चेन-ट्रांसफर बिजनेस बनाने से रोकने के लिए FCRA (विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम ) प्रावधान बनाए गए हैं. केंद्र ने अदालत में दाखिल हलफनामे में कहा है कि संशोधित कानून केवल भारत में अन्य व्यक्तियों/गैर सरकारी संगठनों को मिले विदेशी योगदान के ट्रांसफर को प्रतिबंधित करता है.
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केंद्र ने कहा कि NGO को इस फंड का उपयोग उन उद्देश्यों के लिए करना होगा जिसके लिए उसे पंजीकरण का प्रमाण पत्र या सरकार द्वारा पूर्व अनुमति दी गई है. किसी भी विदेशी दाताओं से विदेशी योगदान प्राप्त करने में किसी भी NGO के खिलाफ कोई भेदभाव नहीं किया गया है. संसद ने विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम बनाकर देश में कुछ गतिविधियों के लिए विदेशी योगदान पर सख्त नियंत्रण की एक स्पष्ट विधायी नीति निर्धारित की है. संसद द्वारा डिजाइन किए गए और कार्यपालिका द्वारा लागू किए गए ढांचे के बाहर किसी भी विदेशी योगदान को प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है.
केंद्र ने यह भी कहा कि FCRA, 2010 के लागू करने के दौरान, यह नोट किया गया था कि कुछ गैर सरकारी संगठन मुख्य रूप से केवल विदेशी योगदान के मार्ग में शामिल थे. दूसरे शब्दों में, "प्राप्त करने" और "उपयोग करने" के बजाय, जैसा कि अधिनियम का इरादा है, NGO केवल विदेशी योगदान प्राप्त कर रहे थे और इसे अन्य गैर सरकारी संगठनों को ट्रांसफर कर रहे थे. केंद्र ने कहा कि FCRA के तहत पंजीकृत करीब 50,000 लोगों में से 23000 से कम व्यक्तियों के पंजीकरण प्रमाण पत्र सक्रिय हैं. 20,600 से अधिक गैर-अनुपालन करने वाले व्यक्तियों का पंजीकरण पहले ही रद्द कर दिया गया है. मौजूदा प्रक्रिया के आधार पर एसबीआई, नई दिल्ली की मुख्य शाखा में 19,000 से अधिक खाते पहले ही खोले जा चुके हैं.
बता दें कि केंद्र ने कई NGO की याचिकाओं पर ये जवाब दाखिल किया है जिसमें कहा गया है कि FCRA में किए गए नए प्रावधान उनके धन को प्रभावित करेंगे और इसके परिणामस्वरूप उनके सामाजिक कार्य में बाधा डालेंगे. दो याचिकाओं में इन संशोधनों की वैधता को चुनौती दी गई है और एक याचिका में संशोधनों को सख्ती से लागू करने की मांग की गई है. नोएल हार्पर और जीवन ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा दायर याचिकाओं में संशोधनों को यह कहते हुए चुनौती दी गई है कि संशोधन ने विदेशी धन के उपयोग में गैर सरकारी संगठनों पर कठोर और अत्यधिक प्रतिबंध लगाए हैं. जबकि विनय विनायक जोशी द्वारा दायर अन्य याचिका में FCRA की नई शर्तों का पालन करने के लिए MHA द्वारा गैर सरकारी संगठनों को दिए गए समय के विस्तार को चुनौती दी गई है.
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