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This Article is From Dec 24, 2018

बीते एक साल में आए इन बदलावों के दम पर क्या राहुल गांधी 2019 में बन पाएंगे भारत के प्रधानमंत्री

क्या बीते एक साल में राहुल गांधी के अंदर आए इन बदलावों से कांग्रेस लोकसभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला कर पाएगी.

बीते एक साल में आए इन बदलावों के दम पर क्या राहुल गांधी 2019 में बन पाएंगे भारत के प्रधानमंत्री
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

तीन राज्यों में चुनाव जीतने के बाद अब कांग्रेस का आत्मविश्वास लौट आया है. कांग्रेस नेता अब 2019 के लोकसभा चुनाव में अब पीएम मोदी को हराने की रणनीति पर काम कर रहे हैं और उनको लगता है कि अब राहुल गांधी की अगुवाई में केंद्र में कांग्रेस की सरकर बन सकती है. लेकिन सवाल अभी वहीं कि क्या राहुल गांधी की फुल टाइम नेता बन गए हैं क्योंकि उनके ऊपर हमेशा से ही 'पार्ट टाइम' राजनीति का आरोप लगता रहा है. लेकिन पिछले एक साल में हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद ऐसा लग रहा है कि राहुल गांधी अब परिपक्व राजनीति की ओर बढ़ रहे हैं. गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पूरी ताकत से बीजेपी का मुकबला किया हालांकि वह सरकार नहीं बना पाई लेकिन बीजेपी को आसानी से जीतने भी नहीं दिया. इसके पीछे ऐसा नहीं था कि कांग्रेस ने कोई बड़ा संगठन खड़ा कर लिया था जो बीजेपी के कॉडर को टक्कर दे सके, राहुल गांधी ने जो रणनीति बन पाई उसका असर देखने को मिला. कांग्रेस ने स्थानीय जातीय समीकरणों के साथ उन मुद्दों को उठाया जो सीधे आम जनता से जुड़े थे, फिर चाहे किसान रहे हों या फिर बेरोजगारी. राहुल ने इस बीच कांग्रेस को 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की ओर भी मोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन सवाल अब भी क्या बीते एक साल में राहुल गांधी के अंदर आए इन बदलावों से कांग्रेस लोकसभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला कर पाएगी.

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संगठन में युवाओं को तवज्जो और सीधे संवाद
राहुल गांधी ने रणनीति में बदलाव करते हुए संगठन को मजबूत करने का काम युवा नेताओं को दिया है. राजस्थान, मध्य प्रदेश में हमने देखा है कि किस तरह से उन्होंने सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया पर पूरी तरह से विश्वास किया है. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने बुजुर्ग नेताओं को पूरी तरह दरकिनार कर दिया. इसके अलावा उन्होंने दूसरे संगठनों के नेताओं से लगातार संवाद भी किया. गुजरात में हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठकोर जैसे युवा नेताओं को तवज्जो दी और इसका कांग्रेस को भी फायदा मिला है.

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'प्रेसिडेंशियल डिबेट' के हौव्वे का किया सामना
राहुल गांधी की बात पर हमेशा एक तर्क दिया जाता है कि वह संवाद के मामले में पीएम मोदी के सामने कहीं नहीं ठहरते हैं. लेकिन राहुल गांधी ने संवाद शैली में जबरदस्त बदलाव किया है और सोशल मीडिया से लेकर चुनावी मंच पर बिना किसी झिझक के पीएम मोदी से सीधा सवाल पूछकर चुनौती भी देते हैं. ऐसा नजारा पहले 2014 के चुनाव के समय नरेंद्र मोदी की रैलियों में दिखता था जब वह यूपीए सरकार और गांधी परिवार पर सीधा सवाल खड़े करते थे.

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'सॉफ्ट हिंदुत्व' की छवि से नहीं है परहेज
लोकसभा चुनाव में हार के कारणों की जांच के लिए गठित एंटनी समिति ने कहा है कि कांग्रेस की हार के लिए सबसे बड़ी वजहों में से एक उसकी अल्पसंख्यकों की ओर ज्यादा झुकाव वाली छवि भी रही है जिसकी वजह से बहुसंख्यकों में नाराजगी थी. ऐसा लगता है कि राहुल गांधी ने इस बात को काफी गंभीरता से लिया है और उन्होंने चुनाव या सामान्य दिनों में मंदिर जाने से परहेज नहीं किया है. इससे कांग्रेस की 'एंटी हिंदू' की छवि टूटती दिखाई दे रही है. कांग्रेस के नेताओं का भी कहना है पार्टी अब 'सॉफ्ट हिंदुत्व' से बीजेपी के 'उग्र हिंदुत्व' का मुकाबला करेगी.

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पीएम मोदी से सीधे मुकाबले की चुनौती
जब से राजनीति में राहुल गांधी आए हैं, ऐसा पहली बार रहा होगा जब उन्होंने किसी बड़े नेता को सीधे बहस की चुनौती दी है. पिछले एक साल में उन्होंने राफेल और किसानों जैसे कई मुद्दों पर पीएम मोदी को सीधे मुकाबले की चुनौती दी है. राहुल गांधी ने पिछले एक साल से कई बार पीएम मोदी को बहस के लिए चुनौती दी है.

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सोशल मीडिया पर संभाली कमान
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल से लेकर सीबीआई विवाद और लगभग हर मुद्दे पर ट्विटर पर पीएम मोदी पर निशाना साधा है और उनकी बातें कई बार मीडिया की हेडलाइन भी बनती हैं. यह रणनीति उन्होंने गुजरात विधानसभा चुनाव से शुरू किया था जब हर दिन एक सवाल सोशल मीडिया पर पूछा. इससे फायदा यह हुआ कि उनके फॉलोअर भी बढ़ गए और लोगों से उनका संवाद भी बढ़ गया.

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मुद्दों पर अब किसी तरह का कंफ्यूजन नहीं
राफेल के मुद्दे पर उन्होंने पीएम मोदी पर सीधे निशाना और मीडिया के सामने कई बार अपने तथ्य पूरे आत्मविश्वास के साथ रखे. उन्होंने बिना किसी हिचक के सवालों के जवाब भी दिए. जिस दिन राफेल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया वह बिना बैकफुट पर आए प्रेस कांन्फ्रेंस में साफ कहा है कि वह राफेल के मुद्दे् पर पीछे नहीं हटेंगे. 

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बेहद आक्रामक संवाद शैली
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की आक्रमक शैली ने कांग्रेस में नई जान फूंकी है. उन्होंने राफेल मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरते हुए रहा कि 'चौकीदार चोर है'. यह बात अब लोगों की जुबान पर चढ़ गई है. इस तरह का संवाद जो लोगों की जुबान चढ़ जाए आम तौर पर फायदा पहुंचाते हैं. 2014 में 'अबकी बार, मोदी सरकार' जैसा नारा भी हिट हुआ था.

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क्या पीएम मोदी का कर पाएंगे मुकाबला
2019 का लोकसभा चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं है. तीन राज्यों में चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस का आत्मविश्वास लौटा है. लेकिन अभी राहुल गांधी को बहुत मेहनत करनी होगी. कई ऐसे मुद्दों हैं जिनका सामना राहुल गांधी को करना होगा. राफेल  मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला कांग्रेस के लिए बड़ा झटका हैं. कोर्ट ने किसी भी तरह की गड़बड़ी मानने से इनकार कर दिया है. दूसरी ओर अगुस्ता वेस्टलैंड, नेशनल हेराल्ड जैसे भी मुद्द भी कांग्रेस के सामने है और लोकसभा में चुनाव में बीजेपी की पूरी कोशिश होगी कि नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी हो जाए. तीन राज्यों में हार के बाद बीजेपी को संभलने को मौका मिल गया है.यहां एक बात और गौर करने के लिए मध्य प्रदेश और राजस्थान में जिस तरह से चुनावी नतीजे हैं उससे साफ जाहिर 'मोदी लहर' को झटका लगा है कि 'कांग्रेस लहर' जैसी बात नहीं है.

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