सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नग्न या अर्धनग्न महिला के चित्र को तब तक अश्लील नहीं कहा जा सकता, जब तक उसका स्वरूप यौन उत्तेजना बढ़ाने या यौनेच्छा जाहिर करने वाला नहीं हो।
न्यायालय ने इस टिप्पणी के साथ टेनिस खिलाड़ी बोरिस बेकर की अपनी मंगेतर के साथ नग्न तस्वीर के अखबार में प्रकाशन के खिलाफ आपराधिक मामला निरस्त कर दिया। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति एके सीकरी की खंडपीठ ने कहा कि सिर्फ यौन संबंधित सामग्री को ही अश्लील कहा जा सकता है, जिसमें वासनापूर्ण विचार पैदा करने की प्रवृत्ति होती है।
न्यायाधीशों ने कहा कि अश्लीलता का निर्धारण औसत व्यक्ति के नजरिये से करना होगा, क्योंकि समय के साथ ही अश्लीलता की अवधारणा बदलेगी और जो एक समय पर अश्लील होगा, शायद बाद के अवधि में उसे अश्लील नहीं माना जाए।
कोर्ट ने कहा कि रंगभेद के खिलाफ बेकर ने अपनी श्याम त्वचा वाली मंगेतर बारबरा फेल्टस के साथ नग्न तस्वीर खिंचवाई थी, जिसका मकसद रंगभेद की बुराई को खत्म करना और प्रेम का संदेश देना था। न्यायालय ने कहा कि तस्वीर यह संदेश देना चाहती है कि त्वचा के रंग का अधिक महत्व नहीं है और रंग पर प्रेम की विजय होती है। यह तस्वीर प्रेम प्रसंग का प्रचार करती है, जो आगे चलकर गोरी त्वचा वाले पुरुष और श्याम त्वचा वाली महिला के बीच विवाह में संपन्न होती है। जजों ने कहा कि इसलिए हमें तस्वीर और लेख में छिपे संदेश की सराहना करनी चाहिए।
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