सेंट्रल विस्टा परियोजना मामले (Central Vista Project Case) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में परियोजना के लिए लैंड यूज के बदलने पर सुनवाई पूरी हो गई. अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ये दलीलें सुनेगा कि क्या इस परियोजना के लिए वैधानिक/नगरपालिका के कानून का उल्लंघन किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पांच सितंबर तक मामले में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा है. अगली सुनवाई 14 सितंबर को होगी.
बताते चले कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो मुख्यत: भूमि उपयोग में परिवर्तन, 2. नगरपालिका कानून का उल्लंघन और पर्यावरण कानून का उल्लंघन के मुद्दों पर चुनौती की सुनवाई करेगा.
29 जुलाई को 20 हजार करोड़ की परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इजाजत दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील दीवान को याचिका दायर करने की इजाजत दी, जिसमें एक सप्ताह के भीतर 17 जून को पर्यावरणीय अनुमति को चुनौती दी जानी थी. केंद्र को याचिका का जवाब भी दाखिल करने को कहा गया था.
वहीं, केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि याचिकाकर्ताओं को यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि हम निजी उद्योग के साथ काम नहीं कर रहे हैं. यह परियोजना राष्ट्रीय हित से संबंधित है. एक फैसले में कहा गया है कि सार्वजनिक कानून के मुद्दों को सार्वजनिक उत्साही व्यक्तियों द्वारा नहीं उठाया जा सकता है. यहां इस बात पर ध्यान दिया जाए कि परियोजना में देरी हो रही है. वहीं याचिकाकर्ता का कहना था संसद के नाम पर 1 लाख वर्ग मीटर की टाउनशिप बनाई जा रही है. कोई भी नागरिक किसी परियोजना पर सवाल उठा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें नहीं पता कि तब तक शारीरिक सुनवाई शुरू होगी या नहीं.
सेंट्रल विस्टा परियोजना का केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर परियोजना का बचाव किया था. केंद्र ने कहा है कि लगभग 100 साल पुरानी संसद संकट के संकेत दे रही है और कई सुरक्षा मुद्दों का सामना कर रही है जिसमें गंभीर अग्नि सुरक्षा भी शामिल है. इसलिए संसद के एक नए आधुनिक भवन के निर्माण की आवश्यकता है.
केंद्र ने कहा कि वर्तमान संसद भवन का निर्माण 1921 में शुरू हुआ था और 1937 में पूरा हुआ. यह लगभग 100 साल पुरानी है और एक हेरिटेज ग्रेड-आई बिल्डिंग है. पिछले कई सालों में संसदीय गतिविधियों में कई गुना वृद्धि हुई है. इसलिए, यह संकट और अधिक उपयोग के संकेत दे रहा है. संसद भवन की इमारत जगह, सुविधाओं और तकनीकी के मामले में वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं है.
यह कहा गया है कि संसद भवन को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के घर के लिए डिज़ाइन किया गया था न कि एक द्विसदनीय विधायिका लोक सभा और राज्य सभा के रूप में. अधिक स्थान की मांग के कारण 1956 में संरचना में दो मंजिलों को जोड़ा गया था. आधुनिक संसद के उद्देश्य के अनुरूप भवन को काफी हद तक संशोधित किया जाना था. पुस्तकालय भवन को भी बाद में जोड़ा गया. अग्नि सुरक्षा एक प्रमुख चिंता है. चूंकि इमारत वर्तमान फायर सेफ्टी मानदंडों के अनुसार नहीं बनाई गई है.
सरकार ने कहा है कि वर्तमान में दोनों सदनों में सांसदों की कुल संख्या लगभग 800 है और सेंट्रल हॉल में एक संयुक्त सत्र के दौरान उनके बैठने की व्यवस्था करना मुश्किल है, जिसमें 440 व्यक्तियों के बैठने की क्षमता है. 1971 की जनगणना के आधार पर लोकसभा सदस्यों की संख्या 545 पर स्थिर है जो 2026 तक चलेगी, लेकिन इसके बाद सांसदों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि होगी, जिससे उन्हें संसद में सीट देना असंभव हो जाएगा.
केंद्र ने कहा है कि केंद्रीय हॉल में केवल 440 व्यक्तियों के लिए क्षमता है. जब संयुक्त सत्र आयोजित होते हैं, तो बड़ी संख्या में अस्थायी सीटों की व्यवस्था की जाती है, क्योंकि संसद के दोनों सदनों के सभी सदस्यों को सीट पर बैठने के लिए पर्याप्त नहीं है. यह व्यवस्था सरकार की गरिमा को कमजोर करती है और सुरक्षा चुनौतियों को बढ़ाती है.
इसमें कहा गया है कि संसद का ऑडियो-विजुअल सिस्टम पुराना है. इलेक्ट्रिकल, एयर कंडीशनिंग और प्लंबिंग सिस्टम अपर्याप्त और अक्षम है और उनको मैंटेन करना महंगा है. अत्यधिक मरम्मत और अत्यधिक रखरखाव के कारण हालत खराब है. पानी की आपूर्ति लाइनों और सीवर लाइनों को बेतरतीब ढंग से डाला गया है.
सरकार ने कहा है कि प्रतिष्ठित इमारतें - राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, उत्तर और दक्षिण ब्लॉक और राष्ट्रीय अभिलेखागार की पहली इमारत 1931 तक पूरी हो गई थी. केंद्रीय सचिवालय के विभिन्न भवन जैसे उद्योग भवन, निर्माण भवन, शास्त्री भवन, रेल भवन आदि. आजादी के बाद सभी का निर्माण, केंद्र सरकार के कार्यालयों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए किया गया था.
सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि फिलहाल प्रोजेक्ट पर काम नहीं रुकेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्राधिकरण को कानून के मुताबिक काम करने से कैसे रोक सकते हैं. अगर अदालत के मामले की सुनवाई के दौरान सरकार प्रोजेक्ट पर काम जारी रखती है तो ये उसके जोखिम और कीमत पर है. 30 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था.
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दरअसल सुप्रीम कोर्ट में केंद्र द्वारा विस्टा के पुनर्विकास योजना के बारे में भूमि उपयोग में बदलाव को अधिसूचित करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. 20 मार्च, 2020 को केंद्र ने संसद, राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट, नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक जैसी संरचनाओं द्वारा चिह्नित लुटियंस दिल्ली के केंद्र में लगभग 86 एकड़ भूमि से संबंधित भूमि उपयोग में बदलाव को अधिसूचित किया.
आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी मार्च 2020 की अधिसूचना को रद्द करने के लिए अदालत से आग्रह करते हुए, याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह निर्णय अनुच्छेद 21 के तहत एक नागरिक के जीने के अधिकार के विस्तारित संस्करण का उल्लंघन है. इसे एक क्रूर कदम बताते हुए, सूरी का दावा है यह लोगों को अत्यधिक क़ीमती खुली जमीन और ग्रीन इलाके का आनंद लेने से वंचित करेगा.
सेंट्रल विस्टा में संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, उत्तर और दक्षिण ब्लॉक की इमारतें, जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों और इंडिया गेट जैसी प्रतिष्ठित इमारतें हैं. केंद्र सरकार एक नया संसद भवन, एक नया आवासीय परिसर बनाकर उसका पुनर्विकास करने का प्रस्ताव कर रही है जिसमें प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति के अलावा कई नए कार्यालय भवन होंगे.
दिल्ली हाईकोर्ट में राजीव शकधर की एकल पीठ ने 11 फरवरी को आदेश दिया था कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को भूमि उपयोग में प्रस्तावित परिवर्तनों को सूचित करने से पहले उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए. आदेश दो याचिकाओं में पारित किया गया, एक राजीव सूरी द्वारा दायर किया गया और दूसरा लेफ्टिनेंट कर्नल अनुज श्रीवास्तव द्वारा.
सूरी ने सरकार द्वारा प्रस्तावित परिवर्तनों को इस आधार पर चुनौती दी कि इसमें भूमि उपयोग में बदलाव और जनसंख्या घनत्व के मानक शामिल हैं और इस तरह के बदलाव लाने के लिए डीडीए अपेक्षित शक्ति के साथ निहित नहीं है. हालांकि बाद में डिविजन बेंच ने आदेश पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को बड़ा सार्वजनिक हित देखते हुए अपने पास सुनवाई के लिए रख लिया.
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