फेसबुक ने यूजर प्रोफाइल को आधार से जोड़ने को लेकर अलग-अलग हाईकोर्ट में चल रहे केसों को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. फेसबुक का कहना है कि मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चल रहे केस में अलग फैसले आने से दुविधा भरी स्थिति हो सकती है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट सारी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करे. फेसबुक और व्हाट्सएप की तरफ से कहा गया कि कुल चार याचिकाएं दाखिल हुई हैं. हमें लाखों कानून है जिन्हें देखना पड़ता है. करोड़ों यूजर है.
व्हाट्सएप की तरफ से कहा गया कि मद्रास हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा इस मामले को देख रही है और सरकार ने कहा कि वो इस मामले में गाइड लाइन जारी करेगी. व्हाट्सएप की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि पॉलिसी मामले को हाईकोर्ट कैसे तय कर सकती है? ये संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है.
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व्हाट्सएप की तरफ से कहा गया कि सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफार किया जाए. सुप्रीम कोर्ट इस मामले को सुने और निपटारा करे. कपिल सिब्बल ने कहा कि मुख्य मामला तो व्हाट्सएप से जुड़ा है. ये सब मुद्दे सरकार की नीति से संबंधित है. लिहाज़ा इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म और इनके रिफॉर्म्स से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट अपने यहां ट्रांसफर कर सुनवाई करे. ये पूरे देश की जनता की निजता से जुड़ा है.
फेसबुक की तरफ से मुकुल रोहतगी ने मांग की मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ही करे. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा मद्रास हाई कोर्ट में कितने याचिका लंबित है? फेसबुक की तरफ से 2 याचिकाएं कहा गया. ये निजता का मामला है. कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट सुने और आदेश जारी करे. ऐसा न हो कि एक हाईकोर्ट कुछ आदेश पारित करे और दूसरा हाईकोर्ट कुछ और. यह ग्लोबल मामला है.
कपिल सिब्बल ने कहा कि केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर उनका पक्ष पूछा जाए. AG केके वेणुगोपाल ने कहा कि इस मामले में हाई कोर्ट में 18 दिनों तक सुनवाई हुई. वहीं फेसबुक की तरफ से कहा गया था कि वो हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र को मानते है. केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा है कि जिस तरह देश विरोधी, अपमानजनक और अश्लील मैसेज शेयर किए जा रहे हैं, इसके लिए उनकी जड़ तक पहुंचना जरूरी है.
वहीं, व्हाट्सएप ने कहा कि एन्क्रिप्शन के कारण असली निर्माता का पता लगाना संभव नहीं है. फेसबुक का कहना है कि आधार को किसी निजी कंपनी से कैसे लिंक किया जा सकता है? यह अत्यधिक सार्वजनिक महत्व का मामला है. ये निजता का मामला भी है जिस पर स्पष्टता की आवश्यकता है.
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सोशल मीडिया से आधार लिंक करने की याचिका-
सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल (AG) ने कहा: ब्लू वेल को लेकर अभी भी पता लगाया जा रहा है कि इसको किसने बनाया था. ये बेहद गंभीर मामला है.
सुप्रीम कोर्ट: किन शर्तो पर जानकारी साझा की जाए? ये सारे सवाल भी कोर्ट के सामने है. क्रिमिनल मामले में कई प्रोसीजर है, जिससे अपराधी तक पहुंचा जा सकता है.
अटॉर्नी जनरल: हमारे पास वो मैकेनिजम नहीं है कि हम संदेश तैयार करने वाले का पता लगा पाए. आप ये देखिए ब्लू वेल के जरिये भारत में कितने लोग मर गए. आज तक इसका पता नहीं चल पाया कि इसे किसने बनाया था.
सुप्रीम कोर्ट: डार्कवेब ब्लू वेल से ज्यादा खतरनाक है. हमने सुना है. आज कल आगे निकलने की टेक्नोलॉजी में आपस में ही प्रतिस्पर्धा है.
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कपिल सिब्बल ने कहा कि आज इस तरह के ऐप मौजूद हैं, जिसमें मेरे नंबर का इस्तेमाल ही कर मैसेज भेजा जा सकता है. कल को ऐसा हो तो मैं सलाखों के पीछे चला जाऊंगा. ये बेहद गंभीर मामला है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट खुद इस मामले की सुनवाई करे.
एक याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि सभी केस अलग-अलग है. केवल फेसबुक और व्हाट्सएप ही पक्ष नहीं है. सभी सोशल मीडिया को पक्ष बनाया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक और व्हाट्सएप की याचिका पर नोटिस जारी किया. हाईकोर्ट में इन मामले में जो याचिकाकर्ता है उनको नोटिस भेजा गया है. साथ ही गूगल, यूट्यूब को भी नोटिस भेजा और 2 सितंबर तक नोटिस का जवाब मांगा है.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि क्यों ना सारे मामले सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर लिए जाएं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा निजता और शासन के बीच संतुलन होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया कंपनियों को नोटिस जारी किया. सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट को सुनवाई जारी रखने की अनुमति दी, लेकिन कहा कि कोई आदेश जारी ना करे. अब इस मामले में अगली सुनवाई 13 सितंबर को होगी
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