बीजेपी के छह सांसदों ने बुधवार को राज्यसभा में नोटिस देकर नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों पर सख्त कार्रवाई की मांग की. उनका कहना है कि संसद द्वारा पास क़ानून के खिलाफ़ ऐसे प्रदर्शन ग़ैरक़ानूनी हैं. नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ करीब दो महीने से देश के अलग-अलग हिस्सों में आंदोलन चल रहे हैं. शाहीन बाग़ दिल्ली में इस आंदोलन का चेहरा है. लेकिन अब बीजेपी के छह सांसदों ने इन प्रदर्शनों पर रोक लगाने की मांग करते हुए राज्यसभा के सभापति को नोटिस दिया है.
बीजेपी सांसद आरके सिन्हा ने NDTV से कहा, 'सीएए के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन लोकतंत्र के लिए घातक हैं. संसद में पारित कानून के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन कैसे हो सकता है. हमने इस पर राज्यसभा में चर्चा की मांग की है.
हालांकि विपक्ष याद दिला रहा है कि संसद के बनाए क़ानून की न्यायिक समीक्षा भी होती है. सीएए का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में है. ऐसे में आम लोगों को विरोध प्रदर्शन का पूरा हक है.
कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने NDTV से कहा, 'हम 110 फीसदी बीजेपी सांसद की पहल का विरोध करते हैं. बीजेपी आज तक इमरजेंसी का विरोध करती है. सरकार को प्रदर्शनकारियों से बात करनी चाहिए.'
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जबकि एनसीपी नेता मजीद मेमन ने एनडीटीवी से कहा - नागरिकता संशोधन कानून का मामला फिलहाल न्यायालय के अधीन है और इसकी जुडिशियल स्क्रूटिनी चल रही है. ऐसे में नागरिकों के पास ये पूरा अधिकार है कि वे अपनी बात खुलकर कहें.
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साफ़ है, जहां संसद को कानून बनाने का अधिकार है, वहीं आम नागरिकों को भी लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है. दरअसल लोकतंत्र में किसी भी आंदोलन को आंकने की सही कसौटी यही हो सकती है कि उसका प्रारूप क्या है.
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