नई दिल्ली:
केंद्रीय चुनाव आयोग के एक फैसले ने उन पार्टियों को बहुत बड़ी राहत दी है, जिनका प्रदर्शन पिछले लोकसभा चुनाव में खराब या बहुत खराब रहा था. बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) जैसी पार्टियों के लिए चुनाव आयोग का यह फैसला राहत लाया है कि अब इन पार्टियों की राष्ट्रीय पहचान के बारे में निर्णय वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद किया जाएगा, क्योंकि अगर मौजूदा नियमों के हिसाब से फैसला लिया जाता, तो इन पार्टियों की राष्ट्रीय मान्यता खत्म हो जाती.
राष्ट्रीय पार्टी होने के लिए किसी भी दल को कम से कम 11 सीटें जीतनी होती हैं, जो अलग-अलग तीन राज्यों में हों. दूसरी वैकल्पिक शर्त यह है कि पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में चार राज्यों में कुल मतों का छह फीसदी वोट मिला हो और साथ में चार लोकसभा सीटें जीती हों. या तीसरी शर्त यह है कि पार्टी को चार राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो.
अभी कांग्रेस और बीजेपी के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीएम), सीपीआई, बीएसपी और एनसीपी के पास राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा है. 2014 में बीएसपी को एक भी लोकसभा सीट नहीं मिली, एनसीपी को छह सीटें तो मिलीं, लेकिन वोट प्रतिशत 1.6 प्रतिशत हो गया. सीपीआई तो एक ही सीट जीत पाई, और उसका वोट शेयर एक प्रतिशत से भी कम रहा.
हाल यह है कि 2004 में 44 सीटें जीतकर बीजेपी और कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी पार्टी रही सीपीएम की पहचान पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. पिछले दिनों अपनी राष्ट्रीय पार्टी की पहचान को बचाने के लिए यहां चुनाव आयोग में कई पार्टियों ने अपना पक्ष रखा, जिसके बाद आयोग ने फैसला किया है कि अब राष्ट्रीय पार्टी के स्तर की समीक्षा हर दो चुनावों के बाद होगी. हालांकि मूल नियम जो हैं, वही बने रहेंगे.
छह राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा देश में 60 से अधिक मान्यताप्राप्त क्षेत्रीय दल हैं. इस मान्यता के कई फायदे हैं. जैसे एक राष्ट्रीय पार्टी को पूरे देश में एक ही चुनाव चिह्न मिलता है. पार्टी के दफ्तर के लिए ज़मीन और भवन दिया जाता है. रेडियो और टीवी पर चुनाव के वक्त प्रचार का फ्री वक्त दिया जाता है और चुनाव के वक्त 40 स्टार कैम्पेनरों का खर्च किसी उम्मीदवार के चुनाव खर्च में नहीं जुड़ता.
अब 2019 तक कई ऐसे दलों को राहत मिल गई है, जिनका प्रदर्शन पिछले लोकसभा चुनाव में फिसड्डी रहा था. अब अगले चुनाव में ये पार्टियां सत्ता के दरवाज़े तक पहुंचें या नहीं, लेकिन पहचान बचाने की कोशिश में ज़रूर लगी होंगी.
राष्ट्रीय पार्टी होने के लिए किसी भी दल को कम से कम 11 सीटें जीतनी होती हैं, जो अलग-अलग तीन राज्यों में हों. दूसरी वैकल्पिक शर्त यह है कि पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में चार राज्यों में कुल मतों का छह फीसदी वोट मिला हो और साथ में चार लोकसभा सीटें जीती हों. या तीसरी शर्त यह है कि पार्टी को चार राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो.
अभी कांग्रेस और बीजेपी के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीएम), सीपीआई, बीएसपी और एनसीपी के पास राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा है. 2014 में बीएसपी को एक भी लोकसभा सीट नहीं मिली, एनसीपी को छह सीटें तो मिलीं, लेकिन वोट प्रतिशत 1.6 प्रतिशत हो गया. सीपीआई तो एक ही सीट जीत पाई, और उसका वोट शेयर एक प्रतिशत से भी कम रहा.
हाल यह है कि 2004 में 44 सीटें जीतकर बीजेपी और कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी पार्टी रही सीपीएम की पहचान पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. पिछले दिनों अपनी राष्ट्रीय पार्टी की पहचान को बचाने के लिए यहां चुनाव आयोग में कई पार्टियों ने अपना पक्ष रखा, जिसके बाद आयोग ने फैसला किया है कि अब राष्ट्रीय पार्टी के स्तर की समीक्षा हर दो चुनावों के बाद होगी. हालांकि मूल नियम जो हैं, वही बने रहेंगे.
छह राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा देश में 60 से अधिक मान्यताप्राप्त क्षेत्रीय दल हैं. इस मान्यता के कई फायदे हैं. जैसे एक राष्ट्रीय पार्टी को पूरे देश में एक ही चुनाव चिह्न मिलता है. पार्टी के दफ्तर के लिए ज़मीन और भवन दिया जाता है. रेडियो और टीवी पर चुनाव के वक्त प्रचार का फ्री वक्त दिया जाता है और चुनाव के वक्त 40 स्टार कैम्पेनरों का खर्च किसी उम्मीदवार के चुनाव खर्च में नहीं जुड़ता.
अब 2019 तक कई ऐसे दलों को राहत मिल गई है, जिनका प्रदर्शन पिछले लोकसभा चुनाव में फिसड्डी रहा था. अब अगले चुनाव में ये पार्टियां सत्ता के दरवाज़े तक पहुंचें या नहीं, लेकिन पहचान बचाने की कोशिश में ज़रूर लगी होंगी.
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