
पीएम मोदी और सीएम योगी (फाइल फोटो)
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बिहार-यूपी उपचुनाव में बीजेपी की करारी हार.
बीजेपी के वोटों में गिरावट.
विपक्ष की एकजुटता ने भी दिखाया कमाल.
दरअसल, बीजेपी की मुख्य चिंता सिर्फ उनकी विरोधी पार्टी मायावती की बसपा और अखिलेश यादव की पार्टी सपा की एकजुटता ही नहीं है, बल्कि उत्तर प्रदेश में उनके वोटरों का कटना भी है. यानी कि बीजेपी के खिलाफ वोट स्विंग. इतना ही नहीं, बीजेपी के लिए सबसे बड़ा झटका यूपी और बिहार दोनों जगहों पर विपक्षी पार्टियों के फेवर में गये विशाल वोटर्स (वोट स्विंग) और उनके छिटकते वोटर्स हैं. यूपी की दो लोकसभा सीटों और बिहार की एक लोकसभा सीट पर बीजेपी की करारी हार यह बताती है कि बीजेपी के वोटर्स कटे हैं और उनका झुकाव विपक्षी पार्टी की ओर गया है. यानी बीजेपी की लोकप्रियता अब घट रही है.

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उत्तर प्रदेश में इस बार परोक्ष रुप से बसपा समर्थित सपा के वोट फीसदी में 2014 लोकसभा चुनाव की तुलना में काफी इजाफा हुआ है. 2014 में मिले संयुक्त वोट की तुलना में इस बार बसपा समर्थित सपा के वोट शेयर में करीब 9 से 10 फीसदी वोट शेयर बढ़े हैं. बीजेपी के खिलाफ यह वोट स्विंग काफी अहम है. खासकर तब जब बीजेपी के खिलाफ यह स्विंग उसकी सबसे मजबूत सीटों में है, जिसमें सीएम योगी आदित्यनाथ की अपनी भी सीट गोरखपुर भी शामिल है, जहां बीजेपी करीब 30 सालों से सत्ता में थी.

बीजेपी की हार में एक तरफ जहां वोट स्विंग काफी महत्वपूर्ण है, वहीं विपक्ष की एकता भी काफी अहम है. इन आंकड़ों से आप बीजेपी के वोट प्रतिशत में गिरावट का अंदाजा लगा सकते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार फूलपुर में करीब 13.6 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ है, वहीं गोरखपुर में करीब पांच फीसदी वोटर्स छिटके हैं.
अगर संक्षेप में देखें तो भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण 66 फीसदी वोट यूनाइटेड विपक्ष को जाना है, जिसमें 33 फीसदी वोट भाजपा से स्विंग कर उनके खाते में गये हैं.

नतीजतन, बीजेपी सिर्फ वोटों में स्विंग की वजह से ही पराजित नहीं हुई है, बल्कि विपक्ष की विशाल एकजुटता की वजह से भी हारी है. विपक्ष की एकता के साथ-साथ बीजेपी की गिरती लोकप्रियता ने भी विपक्ष की जीत में बड़ी भूमिका निभाई है. दरअसल, विपक्ष को दोनों की जरूरत थी, एक बीजेपी के वोट में सेंध लगाना और दूसरी एकजुटता की, जिसकी वजह से यह संभव हो पाया है.
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हैरानी की बात है कि बिहार में हार बीजेपी और नीतीश कुमार की जदयू के लिए ज्यादा चिंताजनक है. क्योंकि वहां वह स्ता में है. उन्हें उम्मीद थी कि बीजेपी और पूर्व कट्टर आलोचक रहे नीतीश कुमार के बीच गठबंधन से उनकी शानदार जीत होगी, मगर ऐसा संभव नहीं हो पाया.
दरअसल, लोकतंत्र अजीब आश्चर्ययों से भरा है. यही वजह है कि बिहार के मतदाताओं ने बीजेपी और नीतीश की रणनीति को खारिज कर दिया और इसके बदले लालू यादव की पार्टी के पक्ष में वोट देकर उनके वोट शेयर में करीब 8 फीसदी का इजाफा कर दिया.

आकंड़ों पर गौर करें तो 2014 की तुलना में राजद को करीब 8 फीसदी वोटों को फायदा हुआ, वहीं बीजेपी और जदयू को करीब पांच फीसदी का नुकसान हुआ.
इस तरह से इन प्रमुख उपचुनावों के दो बुनियादी सबक इस प्रकार हैं: पहला यह कि ऐसा लगता है कि अब भाजपा के खिलाफ लहर की शुरुआत हो चुकी है. गुजरात उपचुनाव में पीएम मोदी के अपने क्षेत्र में वोटर्स के स्विंग ने पहला संकेत दे दिया था और अब इन उपचुनावों ने गुजरात के उस संकेत की पुष्टि कर दी है. दूसरा कि अगर विपक्ष 2019 में जीत चाहता है तो इसे सिर्फ वोटों के स्विंग के भरोसे नहीं रहना होगा, बल्कि भाजपा की लोकप्रियता में भी कमी लानी होगी. यही एक मात्र तरीका विपक्ष को 2019 में जीत दिला सकता है, अगर वह संयुक्त मोर्चा बनाता है.
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