भीमा कोरेगांव मामला: मनु सिंघवी ने SC में कहा- क्या ये संभव है जेल में बंद कोई शख्‍स चिट्ठी लिखकर PM मोदी की हत्या की साजिश रचे

भीमा कोरेगांव मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पक्ष रखते हुए एफआईआर का मुद्दा उठाया है. सिंघवी ने महाराष्ट्र सरकार के दावे पर भी सवाल उठाए हैं.

भीमा कोरेगांव मामला: मनु सिंघवी ने SC में कहा- क्या ये संभव है जेल में बंद कोई शख्‍स चिट्ठी लिखकर PM मोदी की हत्या की साजिश रचे

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

खास बातें

  • मनु सिंघवी ने पक्ष रखते हुए एफआईआर का मुद्दा उठाया है
  • सिंघवी ने महाराष्ट्र सरकार के दावे पर भी सवाल उठाए हैं.
  • इस मामले की गंभीरता से जांच नहीं हो रही है.
नई दिल्ली:

भीमा कोरेगांव मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पक्ष रखते हुए एफआईआर का मुद्दा उठाया है. सिंघवी ने महाराष्ट्र सरकार के दावे पर भी सवाल उठाए हैं. 13 चिट्ठियां पब्लिक डॉमेन में हैं. दो चिट्ठियां कॉमरेड प्रकाश के नाम हैं. ये चिट्ठियां झूठी गढी हुई हैं. महाराष्ट्र पुलिस ने सबूत दाखिल किए हैं कि कॉमरेड प्रकाश ही साईंबाबा है. वो तो 2017 से ही जेल में है. अब पुलिस कुछ दस्तावेज लाई है कि ये पांचों कॉमरेड प्रकाश को लिख रहे थे कि राजीव गांधी जैसी वारदात करनी है. पुणे पुलिस की सारी कहानी मनगढ़ंत है. सवाल ये है कि जो आदमी 2017 मार्च से जेल में है उसके नाम या उसके नाम से चिट्ठी कैसे और कहां आई? क्या ये संभव है कि वो इस तरह जेल में चिट्ठी लिखें कि पीएम मोदी की हत्या की साजिश रच रहे हैं. 

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मनु सिंघवी ने कोर्ट से कहा कि महाराष्ट्र पुलिस ने टीवी पर कहा है कि इन चिट्ठियों की फोरेंसिक जांच नहीं हुई है. इस मामले की गंभीरता से जांच नहीं हो रही है. अरुण परेरा बरी हो चुका है. वरन गोंजाल्विस भी अधिकतर मामलों में बरी हैं. वरवर राव कवि और दार्शनिक हैं. उनके खिलाफ भी मुकदमे थे पर वो भी  मुकदमों में बरी हो गए हैं. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. सिंघवी ने कहा ने कहा कि हमें लगता है कि ये केस थोपा और कुक अप किया गया है. पीएम मोदी की साजिश को लेकर कोई FIR नहीं है. फरेरा 11 केस में बरी हो चुके है. गोंजाल्विस 19 में से 17 में बरी और एक में आरोपमुक्त हुए जबकि एक में अपील लंबित है. वरवर 79 साल के हैं और सभी 25 केसों में बरी हो चुके हैं. उन्‍होंने कहा कि हम ये नहीं कह रहे कि हम कानून से ऊपर हैं, लेकिन जिस तरह हमारे खिलाफ कार्रवाई हुई हम सिर्फ कोर्ट की निगरानी में उसकी निष्पक्ष जांच चाहते हैं. और इस आज़ाद मुल्क में अलग विचार कोई अपराध  नहीं है.  

जून में गिरफ्तार पांच एक्टीविस्ट की गिरफ्तारी के खिलाफ एक आरोपी की पत्नी की ओर से आनंद ग्रोवर बहस कर रहे हैं और महाराष्ट्र सरकार ने इसका विरोध किया. आनन्द ग्रोवर ने आरोपियों की तरफ से कहा कि पुलिस हाल में गिरफ्तार हुए सुधा भारद्वाज सहित पांच लोगों से पहले ऐसे ही मामले में दर्ज एफआईआर के तहत सुरेंद्र गडलिंग सहित पांच लोगों को मई में गिरफ्तार किया था. फिर दूसरी FIR दर्ज की गई. उन्‍होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक, ये सही नही हैं. बिना इजाजत उनके घरों मे रेड की गई. 

याचिकाकर्ताओं की ओर से पूर्व कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने कहा कि ये याचिका पवित्र और निष्पक्ष है. जांच कराने और नागरिकों को ये अहसास कराने के लिए है कि उनकी आजादी का अधिकार सुरक्षित है. अदालत ऐसे मामलों में आंख मूंदकर नहीं रख सकता  है. अश्विनी कुमार ने कहा कि ये गिरफ्तारियां बिना तथ्यों के की गई. राज्य के लगाए गए आरोप कानूनी कार्यवाही के लिए नाकाफी है. लगता है कि ये कारवाई मनमाने और दुर्भावनापूर्ण तरीके से की गई. 

वहीं याचिकाकर्ता की ओर से राजीव धवन ने कहा ये एक अहम क्षेत्र है जब कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का मामला है. सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में दखल देने और याचिकाकर्ताओं के लोकस का सवाल नहीं है. यहां देखना चाहिए कि मामले की निष्पक्ष जांच हो रही हो. किसी आपराधिक मामले की जांच का मतलब ये नहीं कि किसी के सम्मान को ठेस पहुंचाई जाए. पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में केस लंबित होने के बावजूद सबूत सार्वजनिक किए. दो पूर्व जजों ने कहा है कि उन्होंने बैठक आयोजित की थी. ऐसे में पांचों आरोपियों की भूमिका शून्य है. 

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आपको बता दें कि भीमा कोरेगांव में हिंसा को लेकर नक्सलवाद के आरोप में पांच एक्टीविस्ट की गिरफ्तारी के खिलाफ रोमिला थापर व अन्य की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. फिलहाल पांचों को हाउस अरेस्ट रखा गया है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो लिबर्टी को प्रोटेक्ट करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि वो महाराष्ट्र सरकार के पास जो उनके खिलाफ सबूत है वो देखेंगे. कोर्ट ने कहा कि अगर सबूत व दस्तावेज नहीं मिले तो FIR को यही रद्द कर सकते हैं. अगर ऐसा पाया गया जिसमें दखल देने की जरूरत है तो SIT जांच के आदेश भी दिए जा सकते हैं.  

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