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This Article is From Jul 04, 2019

अमरनाथ यात्रा : बदलते मौसम, आतंकी खतरे और दुर्गम रास्ते के बावजूद आस्था की डोर मजबूत

NDTV Exclusive: आस्था का संगम बाबा बर्फानी के यात्रा मार्ग पर चप्पे-चप्पे पर तैनात हैं सुरक्षा बलों के जवान

अमरनाथ यात्रा : बदलते मौसम, आतंकी खतरे और दुर्गम रास्ते के बावजूद आस्था की डोर मजबूत
अमरनाथ गुफा के रास्ते पर कैंप लगे हैं और सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं.
नई दिल्ली:

एक जुलाई को दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से हम पवित्र अमरनाथ यात्रा के सफर पर निकल पड़े, आसमान से दिल्ली छोटी होती गई और फिर बादलों से अठखेलियां करते-करते हम श्रीनगर पहुंच गए. एयरपोर्ट के बाहर कड़ी सुरक्षा थी. पवित्र अमरनाथ जाने वाले यात्रियों के वाहनों में इस बार एक खास तरह की रेडियो फ्रीक्वेंसी आईडेन्टिफिकेशन, जिसे आरएफआईडी टैग कहते हैं, लगाया जा रहा था. हमारी टैक्सी में भी यह टैग लगा दिया गया, जिससे पता चले कि यह वाहन अमरनाथ यात्रा का है, और जगह जगह लगे बार कोड रीडर से कार की लोकेशन भी मिलती रहे.

टैक्सी ड्राइवर इमरान ने बातचीत में अपना नाम इमरान बताया. पूछने पर कि कैसा माहौल है, उन्होंने कहा- 'सर बहुत बढ़िया, यह जो बाहर का मीडिया बोल रहा है, गलत बोल रहा है. आप खुद यहां रहकर देखो.' इसके बाद हम कश्मीर फ्रंटीयर बीएसएफ कैम्प पहुंचे. दिल्ली से करीब 950 किलोमीटर का सफर तय करके हम श्रीनगर के बीएसएफ कैम्प में पहुंचे. अमरनाथ यात्रा पर जाने से पहले वहां रजिस्ट्रेशन और मेडिकल जांच जरूरी होती है.

इस बार अमरनाथ यात्रा के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की शुरुआत भी की गई है. इसमें अब तक करीब दो लाख लोग रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं. हमने बीएएसएफ कैम्प में अपनी मेडिकल जांच और रजिस्ट्रेशन कराया. यात्रियों को एक बार कोड भी मिलता है जिसके जरिए उनकी गतिविधियों की जानकारी मिलती है. रजिस्ट्रेशन और मेडिकल कराने के बाद हम उसी दिन आगे के सफर पर निकल पड़े. पवित्र अमरनाथ की गुफा तक पहुंचने के दो रास्ते हैं. पहला श्रीनगर से सोनमर्ग, बालटाल, बरारी होते हुए पवित्र अमरनाथ गुफा तक करीब 106 किमी का रास्ता. दूसरा जम्मू से पहलगाम होते हुए, चंदनवाड़ी, पिस्सू टॉप, शेषनाग, पंचतरिणी होते हुए अमरनाथ गुफा तक करीब 325 किमी का लंबा सफर.

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अमरनाथ जाने वाले यात्रियों के वाहनों पर खास तरह के रेडियो फ्रीक्वेंसी आईडेन्टिफिकेशन (आरएफआईडी) टैग लगाए जा रहे हैं.

हम श्रीनगर से सोनमार्ग के रास्ते पर आगे बढ़े जिसकी दूरी करीब 80 किलोमीटर है. सड़क के दोनों तरफ सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे जवान नज़र आ रहे थे. हर 100 मीटर पर एक जवान, बख्तरबंद गाड़ियां और चल दस्ते थे. संदेश साफ दिया गया है कि इस बार तीर्थयात्रा पर कोई आतंकी हमला न होने पाए.

श्रीनगर से सोनमार्ग के रास्ते पर मौसम साफ होने से रास्ते में कोई परेशानी नहीं हुई. टैक्सी ड्राइवर इमरान ने बताया कि 'यहां छह माह गर्मी और छह माह सर्दी होती है. अभी गर्मी का मौसम चल रहा है, लेकिन ऊपर वाले की मेहरबानी से अभी भी सर्दी है. जिस रास्ते से हम जा रहे हैं इस पर मौसम खराब होने पर भी ज्यादा परेशानी नहीं होती. आप ये समझो कि बॉम्बे का फैशन और कश्मीर का मौसम सेम है, पता नहीं कब बदल जाए.'

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सिंध नदी के साथ-साथ बने इस रास्ते पर बर्फ से ढंके पहाड़, हरियाली और खूबसूरत वादियां आपको बाबा बर्फानी के करीब पहुंचने का अहसास दिलाने लगते हैं. हालांकि आगे का रास्ता आसान नहीं है. पहाड़ों को काटकर बनाए गए इस रास्ते से होते हुए आख़िर हम सोनमार्ग पहुंचे. रात वहीं काटी और फिर आगे का सफर शुरू किया. सुबह 5:30 बजे वहां का तापमान 6 डिग्री सेल्सियस था. मौसम बिल्कुल साफ था. पीछे आपको खूबसूरत पहाड़ और वादियां नज़र आएंगी. यहां से हम करीब 15 मिनट का रास्ता तयकर नीलग्रांट हेलीपेड गए.

नीलग्रान्ट हेलीपेड पर सुरक्षा बेहद कड़ी थी. कड़ी जांच के बाद हम हेलीकॉप्टर के जरिए पंचतरणी पंहुचे. वहां पहुंचते ही कड़ी सर्दी और ऑक्सीजन की कमी का अहसास होने लगा. वहां तीर्थयात्रियों के रुकने के लिए कई कैम्प लगे हैं. वहां लगे सीआरपीएफ कैम्प में थोड़ी देर रुकने के बाद हमने आगे जाने का मन बनाया. हमें बताया गया कि एक दिन पहले यहां अच्छी बारिश हुई है और इस बार ग्लेशियर ज्यादा होने से रास्ते पर बर्फ है, मिट्टी गीली है, लिहाजा फिसलन बहुत ज्यादा है इसलिए खच्चर से जाना सुरक्षित रहेगा.

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आगे का सफर शुरू हुआ. हजारों की संख्या में खच्चर, पालकी वाले यहां ग्राहकों की तलाश में खड़े थे. यह पवित्र यात्रा कश्मीरी मुसलमानों के लिए रोजी-रोटी का जरिया भी है. उनके बिना यह यात्रा पूरी नहीं हो पाती. यहां से बाबा भोलेनाथ की गुफा की दूरी 6 किलोमीटर है. हम पंचतरणी पहुंच गए. पंचतरणी नदी है जो 5 नदियों से मिलकर बनती है. यह भी कहावत है कि भोलेबाबा यहां से पांच तत्वों को लेकर गए थे, इसलिए इसे पंचतरणी कहते हैं. यहां से हमारा सफर आगे की तरफ शुरू हो गया. हम खच्चर पर बैठकर चले, क्योंकि वहां मिट्टी बहुत गीली थी.

दक्षिणी कश्मीर के हिमालयी क्षेत्र में बर्फ से ढंके पहाड़ और बर्फ को काटकर बनाया गया रास्ता बेहद दुर्गम है. हजारों फीट नीचे बह रही पंचतरणी नदी के साथ-साथ बने इस रास्ते की चढ़ाई सबसे कठिन है. कई बार इस पतले रास्ते पर अगर यात्री ज्यादा हुए तो ट्रैफिक जाम भी हो जाता है. खच्चर वाले जाहिद से जब पूछा कि खच्चर पर बैठने में क्या सावधानियां बरतनी पड़ती हैं? जवाब में उन्होंने बताया 'सर आपको दोनों तरफ का बैलेंस बराबर रखना है और नजर दूर रखना है. हेयर एंड देयर सर, और जैसे चढ़ाई आए तो बेंड फारवर्ड डाउन आए तो वजन बैकवर्ड करना है.' घोड़े के ट्रेंड होने के बारे में पूछा ता उन्होंने कहा - 'हां सर इनको हम 2 महीने ट्रेनिंग देते हैं. भले ही कड़ाके की सर्दी हो,बर्फ हो, रास्ता दुर्गम हो.'

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रास्ते में आपको हर जगह सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे हमारे जांबाज जवान नजर आएंगे. इस बार तीर्थयात्रियों की सुरक्षा में 40 हज़ार जवान लगे हैं. खतरा खराब मौसम से ही नहीं बल्कि आतंकियों से भी है. सुरक्षा एजेंसिया सेटेलाइट ट्रैकर के जरिए पूरे रास्ते पर नजर रख रही हैं. अगर रास्ते में किसी को सांस लेने में परेशानी होती है तो आइटीबीपी के जवान कुछ जगहों पर ऑक्सीजन सिलेंडर लिए मिलेंगे.

आगे मिलने वाला स्थान संगम कहलाता है जहां पहलगाम और बालटाल से आने वाले दोनों रास्ते मिलते हैं. यहां से आगे बढ़ते ही होली केव दिखने लगती है, जिसे अमरनाथ घाटी कहती हैं. यहां बर्फ ही बर्फ है. बर्फ पर सजी प्रसाद सामग्री की दुकानें, बम-बम भोले के जयकारों के बीच आखिरकार हम होली केव पहुंच गए.यहां से बाबा बर्फानी महज़ कुछ दूरी पर हैं. सामने सीढ़ियां हैं. मौसम साफ था और धूप खिली थी. यहां ऑक्सीज़न बेहद कम होने से सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. इस बार यहां पहले के मुकाबले बर्फ काफी ज्यादा है.

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सुरक्षा के साथ सीआरपीएफ के जवान प्यासे तीर्थयात्रियों को पानी पिलाकर उनकी सेवा कर रहे थे. करीब 300 सीढ़ियों की सीधी चढ़ाई ,ऑक्सीजन की कमी के बीच यहां रुक-रुककर चढ़ना ही ठीक होता है. यहां कई लोगों की तबियत खराब हो जाती है. इलाज के लिए मेडिकल केम्प है. मेडिकल कैम्प के डॉक्टर मनमीत ने बताया कि 'यहां ऑक्सीजन की काफी कमी है. ज्यादातर उसी के मरीज आते हैं. हमारे पास ऑक्सीजन के सिलेंडर हैं और यहां का मौसम कभी बारिश कभी धूप का है. बारिश में हाइपोथरिमिया के मरीज ज्यादा आते हैं तो उसकी भी हमने पूरी तैयारी की है.' बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से आने वाले लाखों श्रद्धालु हर जोखिम मोल लेते हैं.

लंबी और दुर्गम यात्रा के बाद आखिरकार हमें 20 फीट चौड़ी और 20 फीट लंबी गुफा में बाबा बर्फानी के दर्शन हुए. इस बार शिवलिंग का आकार पहले से ज्यादा बड़ा है. अमरनाथ गुफा के मुख्य पुजारी राजेन्द्र शास्त्री ने बताया कि 'लोग यहां पर आते हैं. यह अद्भुत स्थान है. प्राकृतिक तरीके से यहां भगवान का लिंग बनता है. लोग यहां आते हैं, उनकी कई समस्याओं का हल भी होता है. मान्यता यह भी है कि भोले बाबा ने पार्वती को यहां अमर कथा सुनाई थी. उसी से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है कि हम भी यहां आकर अपने जीवन को सफल बनाएं.' जब उनसे पूछा कि क्या इस बार शिवलिंग बड़ा है? जवाब में उन्होंने कहा कि 'देखिए पिछले 11 साल बाद इतना बड़ा शिवलिंग बना है. उम्मीद है कि डेढ़ महीने या दो महीने की यात्रा तक यह रहेगा.'

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बाबा बर्फानी की गुफा के सामने ही बर्फ से ढंकी शेषनाग पहाड़ी दिखती है. पिछले साल करीब पौने तीन लाख लोग बाबा बर्फानी के दर्शन करने आए इस बार और ज्यादा श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है. एक श्रद्धालु अशोक कसाना ने कहा कि 'मैं चौथी बार आया हूं. पिछली बार मौसम बहुत खराब था. इस बार मौसम बहुत अच्छा रहा. बाबा की बहुत कृपा रही, बहुत अच्छे से दर्शन हुए हैं.' एक महिला श्रद्धालु ने कहा कि 'मैं नांदेड़ से आई हूं बहुत अच्छा लगा. चढ़ने में कोई परेशानी नहीं हुई.' श्रद्धालु मेहुल ने कहा- 'मैं पहली बार आया हूं, बहुत अच्छा अनुभव रहा. थोड़ी तकलीफ तो होती है, रास्ता बहुत खराब है.'

सबसे बड़ी चुनौती भीड़ को संभालना और किसी भी तरह के आतंकी खतरे को नाकाम करना है. यहां की सुरक्षा का जिम्मा सीआरपीएफ के पास है. चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे हैं और एक कंट्रोल रूम भी बना हुआ है. ड्रोन कैमरों के जरिए निगरानी की जा रही है और ऊंचाई पर भारतीय सेना तैनात है. सीआरपीएफ की 164 बटालियन के कमांडेंट प्रह्लाद पासवान ने बताया कि 'बहुत ही अच्छी सुरक्षा व्यवस्था इस बार की गई है. हमारी एक कंपनी और दो प्लाटून यहां पर तैनात हैं. 24 घंटे हमारे आदमी सुरक्षा के लिए तैयार रहते हैं. इसके अलावा भी बहुत सारी एजेंसियां हैं जो अपने-अपने काम में लगी हुई हैं. इसके अलावा यात्री मैनेजमेंट सिस्टम भी लागू किया गया है, जिसके तहत हम यात्रियों को स्कैन करते हैं कि वे यात्री हैं या नहीं.'

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कहा जाता है 1850 में बूटा मालिक नाम के शख्स ने सबसे पहले यह गुफा देखी थी. गहरी आस्था और मान्यताओं के बीच दुनिया भर से लोग बाबा बर्फानी के दर्शन करने आते हैं. कई ऐसे भी होते हैं जो यहां से वापस नहीं लौट पाते. बाबा भोलेनाथ की आस्था की डोर इतनी लंबी है कि दुनिया भर से लोग खिंचे चले आते हैं.

VIDEO : 1 जुलाई को अमरनाथ यात्रा के लिए रवाना हुआ पहला जत्था

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