ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने एक बार में तीन तलाक को अपराध करार देने वाले कानून के खिलाफ सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 तलाक-ए-बिद्दत या तलाक के ऐसे ही किसी अन्य रूप, जिसमें मुस्लिम पति तत्काल तलाक देता है, को निरर्थक और अवैध करार देता है. यह कानून बोलकर, लिखकर, एसएमएस अथवा वाट्सऐप या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से एक बार में तीन तलाक को अवैध करार देता है. इसमें कहा गया कि ऐसा करने पर दोषी पति को तीन साल की कैद हो सकती है या उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कमाल फारुकी की तरफ से दायर याचिका में इस आधार पर कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है कि यह मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 14,15,20 और 21 को प्रभावित करता है और हनफी (मत के) मुसलमानों पर लागू होने वाली मुस्लिम पर्सनल लॉ की गैरजरूरी या फिर गलत व्याख्या करता है. याचिका में कहा गया कि यह कानून मुसलमानों की जिंदगी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर गलत प्रभाव डाल रहा है.
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इससे पहले अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए 23 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को राहत देते हुए तीन तलाक कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक कानून की वैधता का परीक्षण करने को तैयार हो गया था. केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर कोई धार्मिक प्रैक्टिस को गलत करार/ अपराध करार दिया हो, जैसे दहेज़/सती आदि. ऐसे में क्या इसे अपराध की सूची में नही रखेंगे?
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