आईपीएस ऑफिसर अमिताभ ठाकुर की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
आईपीएस ऑफिसर अमिताभ ठाकुर के निलंबन का मामला ज़ोर पकड़ रहा है। ये सवाल उठ रहा है कि इस विवाद में जो मुलायम सिंह यादव ने किया वह कितना सही है और अमिताभ ठाकुर को क्या करना चाहिए था।
रिकॉर्ड किए गए फोनकॉल में मुलायम सिंह यादव ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया, वो आईपीएस अमिताभ ठाकुर के मुताबिक धमकी है, जबकि यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के मुताबिक ये एक सलाह भर था।
एनडीटीवी से बातचीत में पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रह्मण्यम मानते हैं कि मुलायम सिंह ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया, उसमें धमकी की बू तो आती है। उनके मुताबिक, "अगर ये टेप सही है तो ये बातचीत नार्मल नहीं है। इसमें थोड़ी धमकी झलकती है।"
यूपी के डीजीपी रहे प्रकाश सिंह की निगाह में भी ये आपत्तिजनक है। हालांकि, ये मामला थाने में ले जाने को लेकर उन्हें संदेह है। प्रकाश सिंह ने एनडीटीवी से कहा कि ये आपत्तिजनक मामला था। लेकिन, ये थाना जाने लायक मामला था या नहीं इस पर दो राय हो सकती है, इससे निपटने के और भी रास्ते थे।
दरअसल, सवाल ये है कि अमिताभ ठाकुर ने जो किया क्या वो नियमों के तहत आता है? संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि सिविल सर्वेन्ट्स की नैतिक बाध्यता भी होती है। अगर किसी मंत्री या सांसद ने गलत व्यवहार किया है, किसी अधिकारी के खिलाफ तो उसे अपने सीनियर को सूचित करना चाहिए. उनको सूचित किए बगैर मामले को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए।
जबकि पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रह्मण्यम कहते हैं, "फोन रिकॉर्ड करना गलत नहीं है, उसमें कानून का उल्लंघन नहीं है। ये प्रिविलेज्ड कन्वरसेशन नहीं था। इसे सार्वजनिक किया जा सकता है।
अब अमिताभ ठाकुर के ख़िलाफ़ जो भी मामला हो, मुलायम सिंह यादव जैसे बड़े नेता के तौर-तरीकों को कोई सही नहीं ठहरा रहा। ख़ासकर यूपी में अफ़सरों के हाल पर सब चिंतित हैं।
रिकॉर्ड किए गए फोनकॉल में मुलायम सिंह यादव ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया, वो आईपीएस अमिताभ ठाकुर के मुताबिक धमकी है, जबकि यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के मुताबिक ये एक सलाह भर था।
एनडीटीवी से बातचीत में पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रह्मण्यम मानते हैं कि मुलायम सिंह ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया, उसमें धमकी की बू तो आती है। उनके मुताबिक, "अगर ये टेप सही है तो ये बातचीत नार्मल नहीं है। इसमें थोड़ी धमकी झलकती है।"
यूपी के डीजीपी रहे प्रकाश सिंह की निगाह में भी ये आपत्तिजनक है। हालांकि, ये मामला थाने में ले जाने को लेकर उन्हें संदेह है। प्रकाश सिंह ने एनडीटीवी से कहा कि ये आपत्तिजनक मामला था। लेकिन, ये थाना जाने लायक मामला था या नहीं इस पर दो राय हो सकती है, इससे निपटने के और भी रास्ते थे।
दरअसल, सवाल ये है कि अमिताभ ठाकुर ने जो किया क्या वो नियमों के तहत आता है? संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि सिविल सर्वेन्ट्स की नैतिक बाध्यता भी होती है। अगर किसी मंत्री या सांसद ने गलत व्यवहार किया है, किसी अधिकारी के खिलाफ तो उसे अपने सीनियर को सूचित करना चाहिए. उनको सूचित किए बगैर मामले को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए।
जबकि पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रह्मण्यम कहते हैं, "फोन रिकॉर्ड करना गलत नहीं है, उसमें कानून का उल्लंघन नहीं है। ये प्रिविलेज्ड कन्वरसेशन नहीं था। इसे सार्वजनिक किया जा सकता है।
अब अमिताभ ठाकुर के ख़िलाफ़ जो भी मामला हो, मुलायम सिंह यादव जैसे बड़े नेता के तौर-तरीकों को कोई सही नहीं ठहरा रहा। ख़ासकर यूपी में अफ़सरों के हाल पर सब चिंतित हैं।
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