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This Article is From May 18, 2019

Reality Check: 5 साल में पीएम मोदी का स्वच्छता अभियान कितना कामयाब हुआ?

सूरज की किरणें जब धरती को रोशन कर रही होती हैं तो दिल्ली से 2 घंटे की दूरी पर स्थित शिकरवा गांव में दर्जनों लोग सड़क किनारे एकत्रित होते हैं और खुले में शौच करते हैं.

Reality Check: 5 साल में पीएम मोदी का स्वच्छता अभियान कितना कामयाब हुआ?
नई दिल्ली:

हर रोज, जब अंधेरा छट रहा होता है और सूरज की किरणें धरती को रोशन कर रही होती हैं तो दिल्ली से 2 घंटे की दूरी पर स्थित शिकरवा गांव में दर्जनों लोग सड़क किनारे एकत्रित होते हैं और खुले में शौच करते हैं. हरियाणा राज्य के अंतर्गत आने वाले शिकरवा गांव में ग्राम सभा अधिकारी खुर्शीद ने बताया कि गांव में करीब 1600 घर हैं, लेकिन 400 घर भी ऐसे नहीं होंगे जहां शौचालय हों. जबकि सरकारी रिकॉर्ड में कहा गया है कि 2.5 करोड़ से ज्यादा आबादी वाला हरियाणा, काफी साफ सुथरा है. राज्य के ज्यादातर इलाकों को खुले में शौच मुक्त घोषित किया जा चुका है. विश्व बैंक द्वारा समर्थित एक सर्वे के अनुसार हरियाणा में सिर्फ 0.3 प्रतिशत ग्रामीण आबादी ही बाहर शौच करती है. लेकिन मजेदार बात ये है कि इस विश्व बैंक समर्थित अध्ययन में शामिल हुए आधा दर्जन सर्वेयर्स और इसमें हिस्सा लेने वाले शोधकर्ताओं ने इस सर्वे की कार्यप्रणाली और उसके निष्कर्ष को लेकर चिंताएं उठाईं थी. यानी कि सर्वे में शामिल लोगों को सर्वे के तरीके पर हैरानी थी. 

रायटर्स पर छपे संपादकीय पर पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने जवाब देते हुए कहा कि भारत के स्वच्छता कार्यक्रम ने 5 साल के छोटे से कार्यकाल में 550 मिलियन से ज्यादा खुले में शौच करने से निजात दिलाई है. शिकरवा में 27 लोगों के साथ हुई बातचीत में सामने आया कि गांव में करीब 330 लोग ऐसे हैं जो आज भी खुले में शौच करते हैं. कुछ लोगों की समस्या है कि शौचालय हैं मगर पानी नहीं है तो वहीं कुछ लोगों ने पुरानी आदत का बहाना देते हुए खुले में शौच की बात स्वीकार की है. आस पास के इलाकों में भी हालात अलग नहीं है. 

इस पर मंत्रालय का कहना है कि शौचालय इस्तेमाल नहीं करने की अलग अलग घटनाओं पर टिप्पणी करना आसान नहीं होगा लेकिन यह भी एक विश्वास है कि ग्रामीण अक्सर यह छुपाते हैं कि उनके पास शौचालय है क्योंकि उन्हें डर है कि यह बता देने के बाद उन्हें मिलने वाली वित्तीय मदद पर संकट आ सकता है. कई अध्ययन में सामने आया है कि खुले में शौच करना लोगों के स्वास्थ्य के मुद्दों को सीधे तौर पर जोड़ता है. 2016 में वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट में सामने आया था कि भारत में होने वाली हर 10 मौतों में एक गरीब की जान स्वच्छता के कारण जाती है. 

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भारत में यौन उत्पीड़न जैसे अपराध भी सीधे तौर पर शौचालयों की कमी से जुड़े हुए हैं और महिलाओं के साथ होने वाली घटनाओं पर इसका प्रभाव पड़ता है. क्योंकि ग्रामीण इलाकों में महिलाएं या तो  सुबह या फिर रात के अंधेरे में शौच के लिए लंबी दूरी तय करती हैं. साल 2014 में पीएम मोदी स्वच्छता अभियान और स्वच्छ भारत की शुरुआत की और अगले 5 सालों में देश से खुले में शौच को खत्म करने की शपथ भी ली. दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव प्रचार करते ही अक्सर स्वच्छ भारत की सफलता का जिक्र करते हैं. रविवार को एक रैली में उन्होंने कहा कि हमने देश में 100 मिलियन से ज्यादा शौचालय बनाए.

स्वच्छ भारत एक मल्टी बिलियन डॉलर प्रोग्राम है जिसमें सरकार और वर्ल्ड बैंक के लोन के जरिए पैसा लगा हुआ है. इस प्रोग्राम के तहत लाखों शौचालय बनाए गए हैं लेकिन आलोचकों का कहना है कि आधिकारिक आंकड़े इसकी सफलता की उम्मीद से ज्यादा छवि पेश करते हैं.

वर्ल्ड बैंक समर्थित सर्वेक्षण की रिसर्चर पायल हाथी ने कहा, 'यह पूरा मामला लोगों की सेहत से जुड़ा है और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि डाटा भ्रमित करने वाला है.'वर्ल्ड बैंक समर्थित नेशनल एनुअल रूरल सेनिटेशन सर्वे(एनएआरएसएस) के फरवरी के डाटा के मुताबिक केवल 10 फीसदी लोग बाहर शौच करते हैं. यह सर्वेक्षण स्वच्छ भारत के लिए 1.5 बिलियन डॉलर के विश्व बैंक के लोन का उपयोग करके किया गया था.

वहीं इस मुद्दे पर रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कंपेसिनेट इकोनॉमिक्स(आरआईसीई) की पायल हाथी ने भी सर्वे किया जिसमें उन्होंने बताया कि 4 बड़े राज्यों की ग्रामीण आबादी के 44 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं. मंत्रालय का कहना है, 'आरआईसीई स्वच्छ भारत मिशन की उपलब्धियों को कमजोर कर रहा है. इसकी रिपोर्टिंग का इतिहास भेदभावपूर्ण, झूठा और प्रेरित है.' हालांकि आरआईसीई का अभी तक इस मामले में कोई बयान नहीं आया है.

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वहीं हाथी और उनके साथी रिसर्चर निखिल श्रीवास्तव ने कह कि वे सर्वे को डिजाइन करने के लिए की गई मीटिंग की कई खामियों के गवाह रह चुके हैं. खुले में शौच करने को लेकर की जाने वाली रिपोर्टिंग के लक्ष्य को सरकारी प्रतिनिधियों द्वारा कंतार पब्लिक को बताया गया था. सर्वे करने के लिए कंपनी ने कॉन्ट्रैक्ट किया था. पब्लिक रिलेशन कंपनी WPP, कंतार को लीड करती है और उसने इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की.

हाथी ने रायटर्स को बताया, 'एनएआरएसएस के सवालों में टॉयलेट के प्रयोग से जुड़ी कई सवाल ऐसे थे जिन्होंने जवाब देने वालों को भ्रमित किया और सरकार ने उनके सुझावों को नजरअंदाज किया. वहीं मंत्रालय का कहना है कि वह 2 आरआईसीई के रिसर्चर्स का दावे को खारिज करते हैं. एनएआरएसएस से डाटा लेने वाले 7 सर्वेक्षकों ने जो प्रतिक्रिया दी है उसके मुताबिक हालात बताई गई स्थिति से खराब हैं. 2 लोगों ने कहा कि एनएआरएसएस ने लोगों से सवाल पूछने में बहुत कम समय खर्च किया. यह सर्वेक्षक बिहार, यूपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में काम करते हैं और उन्होंने नौकरी जाने के डर की वजह से अपने नाम नहीं बताए. वेस्ट राजस्थान में एनएआरएसएस के सर्वेक्षक ने कहा, सर्वेक्षक गांवों को ओडीएफ(ओपन डिफीकेशन फ्री) के तहत मार्क करेंगे. अगर वह लोगों को खुले में शौच करते पाएंगे तो यह सरकारी नियमों का उल्लंघन होगा.

मंत्रालय ने लगाए गए सभी आरोपों को खारिज किया है और कहा कि एनएआरएसएस के सर्वेक्षकों को राज्य स्तर पर बहुत सीमित जानकारी है. एक आरटीआई के मुताबिक, रिसर्चरों की सर्वे की खामियों पर जताई गई चिंता के बावजूद विश्व बैंक ने अब तक भारत को 417.4 मिलियन का एनएआरएसएस-लिंक्ड फंड दिया है.

वर्ल्ड बैंक के एक प्रवक्ता के मुताबिक, 'वर्ल्ड बैंक को सर्वेक्षण करने वालों के काम से संबंधित चिंता की कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली.' कर्नाटक के कोप्पाल जिले में 50 लोगों से हुई बातचीत यह दर्शाती है कि 7 गांवों के 150 लोग यहां खुले में शौच करते हैं. वहीं सरकार ने कर्नाटक को खुले में शौच करने से मुक्त राज्य घोषित किया है.

उत्तर और दक्षिण के लोगों का कहना है कि किसान पूरे दिन खेत में काम करता है और वहां शौचालय नहीं होता, यह भी एक बड़ा कारण है. कई लोगों ने यह भी बताया कि खुले में शौच करने की वजह से आधिकारिक लोगों ने उनके साथ मारपीट की और उन्हें अपमानित किया. वहीं कुछ लोगों को खाने का राशन काटने की धमकी दी गई.

पानी और सफाई व्यवस्था की कंस्ल्टेंट नित्या जेकोब ने बताया कि जवाब देने वाले लोग कई बार गलत बताते हैं, उन्हें पढ़ाया गया है कि हां, हम टॉयलेट का प्रयोग करते हैं.

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