Placement Anxiety: आईआईटी या आईआईएम में सिलेक्शन के बाद ये मान लिया जाता है कि रोजगार की तलाश अब कोई फिक्र नहीं रह गई है. अब आसानी से आईआईटी में सिलेक्ट होने वाले बच्चे को एक उम्दा नौकरी मिलेगी और लाइफ सेट हो जाएगी. लेकिन ये इत्मीनान अब आईआईटी में सिलेक्ट होने वाले बच्चों में भी शायद कम होता जा रहा है और वो प्लेसमेंट एंजाइटी के शिकार हो रहे हैं. क्या ये एंजाइटी वाकई इतनी चिंताजनक है और क्या आईआईटी जैसे संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को भी इसकी फिक्र होना चाहिए. एनडीटीवी ने लेखक, चिंतक और इंफ्लूएंसर आचार्य प्रशांत से इस बारे में खास बातचीत की और प्लेसमेंट एंजाइटी से बचने के तरीकों को समझा.
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पहले समझते हैं प्लेसमेंट एंजाइटी है क्या चीज!
बात आईआईटी की हो, आईआईएम की हो या किसी भी ऐसे संस्थान की हो जहां प्रोफेशनल स्टडीज करवाई जाती हैं. इन संस्थानों में एडमिशन लेने के लिए बच्चे ये सोच कर जी तोड़ मेहनत करते हैं कि वो प्लेसमेंट में बैठेंगे, सिलेक्ट होंगे और अच्छी नौकरी मिल जाएगी. इस सोच की वजह वो प्लेसमेंट को लेकर फिक्रमंद रहने लगते हैं और ये ख्याल उन्हें परेशान करता है कि प्लेसमेंट नहीं मिला तो क्या होगा. जो बार बार सोचते रहने की वजह से एंजाइटी का रूप भी ले लेता है.
प्लेसमेंट एंजाइटी से कैसे बचें, बता रहे हैं आचार्य प्रशांत
फ्रिक नहीं : इस एंजाइटी के संबंध में आचार्य प्रशांत का कहना है कि इतने बड़े संस्थानों में भी दाखिले के बाद प्लेसमेंट की फिक्र होना ही नहीं चाहिए. उनके मुताबिक नौकरी लगेगी या नहीं, इस तरह की चिंता आईआईटी या आईआईएम के बच्चों के लिए गैर जरूरी है. उन्हें ये अहसास होना चाहिए कि उन्हें पढ़ाई पूरी करने और सीखने का बेहतर जरिया मिल गया है.
सिर्फ साधारण सी नौकरी के पीछे क्यों भागना : आचार्य प्रशांत का कहना है कि इतनी अच्छी डिग्री के बाद सिर्फ साधारण सी नौकरी के पीछे भागने की सोचना ही गलत है. आचार्य प्रशांत की सलाह है कि इन संस्थानों में पढ़ रहे बच्चों को ये सोचना चाहिए कि वो यूजवल जॉब करने वाले लोग नहीं हैं. जिनके पास एक अच्छा गाड़ी, एक घर हो या विदेश में सेटल होने का मौका भर मिल जाए. इसके बदले उन्हें कुछ खास, कुछ इनोवेटिव करने पर ध्यान देना चाहिए.
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अपनी क्षमता पहचानें : उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि ये वही बात हो गई कि आपको लड़ने के लिए एक टैंक दे दिया गया है. लेकिन आप सिर्फ मच्छर ही मार रहे हैं. आपको ये समझना होगा कि आपके पास एक बड़ा वेपन है, बड़ा हथियार है. आपको मच्छर नहीं मारने बल्कि बड़ा मैदान मारना है. इस सोच के साथ आगे बढ़ेंगे तो प्लेसमेंट की भेड़चाल में नहीं फसेंगे बल्कि शेर की तरह अपना रास्ता खुद चुनेंगे.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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