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मेडिकल लापरवाही क्या है? जानिए, कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट से मरीजों को मिले हैं कौन से अधिकार?

Medical Negligence: आए दिन ऐसी खबरें सामने आती रहती है कि डॉक्टरों या अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही से मरीज की जान पर बन आती है, कुछ अपाहिज हो जाते हैं तो कई बार जान भी चली जाती है.

मेडिकल लापरवाही क्या है? जानिए, कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट से मरीजों को मिले हैं कौन से अधिकार?
मेडिकल लापरवाही के मामलों में क्या कर सकता है मरीज, जानें

What is Medical Negligence: आजकल पैसे कमाने की होड़ में नियमों से समझौता करने और भ्रष्टाचार को लेकर कोई क्षेत्र अछूता नहीं बचा है. भगवान के बराबर दर्जा दिए जाने के बावजूद डॉक्टरी के पेशे में भी लालच के मारे कुछ लोग गलत करने से नहीं चूकते. आए दिन ऐसी खबरें सामने आती रहती है कि डॉक्टरों या अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही से मरीज की जान पर बन आती है, कुछ अपाहिज हो जाते हैं तो कई बार जान भी चली जाती है. ऐसे वक्त में मरीज और उसके परिवार वाले के सामने सबसे बड़ा संकट रहता है कि इंसाफ के लिए कहां जाएं और क्या करें?

इलाज के दौरान लापरवाही या बदइंतजामी से मरीज की मौत के मामले में पुलिस और कोर्ट तक जाने के बारे में तो आमतौर पर लोगों को मालूम रहता है. लेकिन, चोट लगने, रिएक्शन होने, सही इलाज नहीं होने और अधिक या हिडन फीस लेने पर शिकायत या कार्रवाई के लिए सही अथॉरिटी तक पहुंचने के बारे में लोगों को ज्यादा मालूम नहीं होता. आइए, जानते हैं कि मेडिकल नेग्लिजेंस क्या है और इससे पीड़ित मरीज के अधिकार क्या हैं? साथ ही वह किस एजेंसी के पास और कैसे शिकायत दर्ज करवा सकता है.


मेडिकल लापरवाही और मेडिकल कदाचार क्या है?


मरीज की उचित देखभाल करने में नाकामी ही मेडिकल लापरवाही है. यह तब होता है जब कोई डॉक्टर अपने पेशे के स्टैंडर्ड के मुताबिक काम करने में नाकाम रहता है. मेडिकल लापरवाही के तीन फैक्टर होते हैं. पहला, मरीज की देखभाल डॉक्टर का कर्तव्य है. दूसरा, डॉक्टर ने देखभाल के इस कर्तव्य का पालन नहीं किया है, और तीसरा, इस लापरवाही के कारण मरीज को चोट लगी है.

वहीं, मेडिकल कदाचार का मतलब एक पेशेवर मेडिकल केयर टेकर जैसे डॉक्टर, नर्स, डेंटिस्ट, तकनीशियन, अस्पताल या अस्पताल कर्मचारी द्वारा की गई लापरवाही का दावा है. इसमें मरीज का इलाज समान देखभाल वाले लोगों के स्टैंडर्ड से हटकर होता है और ट्रेनिंग और एक्सपीरिएंस की कमी के चलते किसी मरीज या रोगियों को नुकसान होता है.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत शिकायत

साल 1995 में, सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल प्रोफेशन को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत लाया और मेडिकल ट्रीटमेंट को 'सर्विस' के रूप में लेबल किया गया. आमतौर पर, चिकित्सा परिणामों की कोई गारंटी नहीं होती है और अप्रत्याशित या असफल परिणामों का मतलब यह नहीं है कि लापरवाही हुई है. इसलिए मेडिकल लापरवाही के मामले में सफल होने के लिए, उपभोक्ता को चोट या क्षति दिखानी होगी जो पूरे प्रोसेस पर लागू देखभाल के स्टैंडर्ड से डॉक्टर के हटने के चलते हुई है.

कहां और कैसे शिकायत कर सकते हैं पीड़ित मरीज

मेडिकल लापरवाही के पीड़ित मरीज सबसे पहले संबंधित अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक (एम.एस.) को लिखित शिकायत भेज सकते हैं और इसकी कॉपी अपने क्षेत्र के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ)/सिविल सर्जन को भी भेज सकते हैं. अगर कोई जवाब नहीं मिलता है या दिए गए जवाब से संतुष्ट नहीं हैं, तो फिर आगे राज्य चिकित्सा परिषद (एसएमसी) को एक लिखित शिकायत भेजनी चाहिए. एसएमसी के जवाब से भी संतुष्ट नहीं होने पर शिकायत मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) को भेजा जा सकता है.

अगर आपराधिक शिकायत है तो पीड़ित स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करा सकता है. हालांकि, किसी भी पुलिस शिकायत को दर्ज करने के लिए विशेषज्ञ की राय की जरूरत होगी. मेडिकल लापरवाही से होने वाले नुकसान की मांग के लिए उपभोक्ता फोरम/आयोग, सिविल कोर्ट और आपराधिक न्यायालय, जैसा भी मामला हो में शिकायत दर्ज कर सकते हैं.

डॉक्टर के पास अपनी पहली मुलाकात से लेकर उसके साथ अपने अंतिम संपर्क तक के फैक्ट्स को सामने रखते हुए शिकायत दर्ज करके उपभोक्ता मंच से संपर्क कर सकते हैं. मेडिकल रिकॉर्ड के साथ लापरवाही के दावे का समर्थन करने वाले एक मेडिकल एक्सपर्ट का सेकेंड ओपिनियन भी क्लेम को मजबूती दे सकती है.

एक उपभोक्ता के रूप में क्या हैं मरीज के अधिकार (What are the patient's rights as a consumer?)

  • मरीजों को अपनी बीमारी के बारे में जानने का अधिकार है कि उसके मेडिकल रिकॉर्ड की व्याख्या की जाए.
  • मरीजों को जो भी उपचार/दवाएं निर्धारित की जाती हैं, तो उसके बारे में समझाया जाना चाहिए.
  • अगर कोई जोखिम और साइड इफेक्ट हो तो मरीज को उसके बारे में बताया जाना चाहिए.

  • मरीज को सवाल पूछने और इलाज के बारे में अपना शक जताने का पूरा अधिकार है.

  • मरीज़ों को यह अधिकार है कि डॉक्टर उनकी शारीरिक जांच करते समय उनके साथ अच्छा व्यवहार करे और गोपनीयता रखे.

  • अगर मरीजों को सुझाई गई दवाओं या इलाज के बारे में शक है तो उन्हें दूसरी राय लेने का अधिकार है.

  • मरीजों को यह जानने का अधिकार है कि सुझाया गया ऑपरेशन/सर्जरी किस लिए है और इसमें क्या संभावित जोखिम शामिल हैं.

  • अगर मरीज बेहोश है या अन्य कारणों से निर्णय लेने में असमर्थ है, तो उसके निकटतम रिश्तेदारों को सूचित कर उसकी सहमति लेनी होगी.

  • मरीजों को डॉक्टर/अस्पताल से अनुरोध पर अपने मेडिकल रिकॉर्ड/केस हिस्ट्री पेपर प्राप्त करने का अधिकार है.

  • अगर मरीज को दूसरे अस्पताल में ले जाने की जरूरत है, तो उसे इसका कारण जानने का अधिकार है.

  • मरीज को डॉक्टर के परामर्श से अपनी पसंद चुनने का भी अधिकार है.

  • मरीजों को उनके दिए गए बिलों का डिटेल्स जानने का अधिकार है.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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