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ट्रैकिंग में एडवेंचर मजा न बने सजा, ट्रैकिंग पर जाएं तो क्या करें, क्या न करें, जानें हाई एल्टिट्यूड पर AMS आखिर क्या है

 AMS: ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी के कारण कुछ लोगों को सेहत से संबंधित कुछ परेशानियों होने लगती है. इसे एक्यूट माउंटेन सिकनेस कहते हैं. ट्रैकिंग का मजा लेते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है.

ट्रैकिंग में एडवेंचर मजा न बने सजा, ट्रैकिंग पर जाएं तो क्या करें, क्या न करें, जानें हाई एल्टिट्यूड पर AMS आखिर क्या है

आजकल लोगों को रोमांचक यात्राएं करना बेहद पसंद है. खासकर युवाओं में ट्रैकिंग (Trekking) का ट्रेंड काफी बढ़ गया है. शहरों की भागमभाग से दूर लोग पहाड़ों पर चढ़ने और खूबसूरत वादियों के नजारों का आनंद लेना चाहते हैं. ऐसे में उत्तराखंड से आई एक खबर ने हमारा ध्यान इस ओर खींच लिया है. यहं खराब मौसम के कारण कर्नाटक के नौ ट्रेकर की मौत हो गई है. वायुसेना के अधिकारियों के मुताबिक, भारतीय वायुसेना ने तीन लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया. इस घटना में कुछ ट्रेकर की मौत भी हुई. ट्रेकर्स की इस टीम में 19 ट्रेकर और तीन स्थानीय गाइड थे. गर्मियों की छुट्टियों में हर तरफ पर्यटकों का तांता लगा है.

गर्मी के दिनों में ट्रैकिंग पर जाने वालों की संख्या काफी बढ़ जाती है. हालांकि अधिक ऊंचाई (High altitude) पर ऑक्सीजन की कमी के कारण कुछ लोगों को सेहत से संबंधित कुछ परेशानियों होने लगती है. ऊंचाई पर होने वाली परेशानी को एक्यूट माउंटेन सिकनेस (AMS) कहते हैं. आइए जानते हैं क्या है AMS और ट्रैकिंग करने के दौरान हमें किन बातों का रखना चाहिए ख्याल.

क्या है AMS (What is AMS)

ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ वातावरण में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है. इससे बॉडी पर असर होता है जिसे एक्यूट माउंटेन सिकनेस (AMS) कहते हैं. आमतौर पर इसके लक्षण हल्के रहने पर इसे AMS कहते हैं, लेकिन जब इसके कारण फेफड़ों पर असर होने लगता है तो इसे HAPE कहा जाता है. ऊंचाई पर ब्रेन में सूजन आने की स्थिति को  HACE कहा जाता है. HAPE और HACE  खतरनाक स्थिति है और यह जानलेवा हो सकती है.  समुद्र तल से 2,438 मीटर की ऊंचाई तक AMS की परेशानी नहीं होती है. लेकिन 3,352 मीटर से ऊपर जाने पर  AMS शुरू हो सकता है.

ट्रैकिंग के समय क्या करें और क्या न करें ( What to do and what not to do during Trekking)

कार्डियोलॉजिस्ट विकास ठाकरान के मुताबिक, पहाड़ों की ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी होती है और ज्यादातर पर्यटकों को इस तरह की चढ़ाई पर चलने की आदत नहीं होती है. इन दोनों के चलते हार्ट की नसों में खिंचाव और स्ट्रेस आता है. इसके चलते कई बार समय पर इलाज नहीं मिलने से हार्ट अटैक की आशंका बढ़ जाती है.

डॉक्टर विकास ठाकरान का कहना है कि ऊंचे जगहों पर जाने से पहले ऐसे लोगों के लिए इको टीएमटी जांच, खून की जांच और ईसीजी कराना बेहद जरूरी है. अगर पहले से कोई और अंदरूनी बीमारी है तो सावधानी के साथ उसकी जांच भी करवा लेनी चाहिए.

पानी है जरूरी

ट्रैकिंग के दौरान पानी का भरपूर स्टॉक रखना जरूरी है. यह आपके बॉडी को डिहाइड्रेशन से बचाकर रखेगी और आपको ज्यादा थकान फील करने से बचाएगी. हर आधे घंटे में थोड़ा थोड़ा पानी पीते रहे और एकसाथ ज्यादा पानी पीने से बचें.

गति पर नियंत्रण

ट्रैकिंग के दौरान साथियों से आगे निकलने की होड़ न करें. ऊपर चढ़ते समय रफ्तार पर नियंत्रण रखना जरूरी है. तेज चलने के कारण लंग्स पर दबाव बढ़ने का खतरा रहता है. थोड़ी दूरी तय करने के बाद पांच मिनट का ब्रेक लें.

ब्रेकफास्ट जरूरी

ट्रैकिंग पर निकलने से पहले ब्रेकफास्ट जरूर करें. यह आपकी बॉडी में एनर्जी को बनाए रखने में मदद करेगा. ब्रेकफास्ट में कॉफी या चाय ज्यादा न लें. इससे ऊंचाई पर डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ सकता है.

अल्कोहल से रहे दूर

ट्रैकिंग के दौरान अल्कोहल  से दूर रहे. पहाड़ों की ठंड आपको अल्कोहल के लिए ललचा सकती है लेकिन यह काफी खतरनाक साबित हो सकती है और आपके सोचने समझने की शक्ति को प्रभावित कर सकती है.

ग्रुप में करें ट्रैकिंग

हमेशा समूह में दोस्तों के साथ ट्रैकिंग पर जाएं. पहाड़ों पर नजारा एक समान होने के कारण भटकने का खतरा बहुत ज्यादा होता है. ट्रैकिंग का सबसे बड़ा नियम अनुशासन और संयम है. इसका पालन नहीं करने पर परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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