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This Article is From Mar 25, 2019

Overcome an exam failure! तो क्या हुआ गर परीक्षा में हो गए फेल, अभी करने को बहुत कुछ है...

Guide to Overcome Failure: अंक ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होते. फेल होने के मामले में कहीं न कहीं माता-पिता की भी जिम्मेदारी है. फेल का मतलब असफल होना नहीं होता, यह टैग तो हम लगा देते हैं.

Overcome an exam failure! तो क्या हुआ गर परीक्षा में हो गए फेल, अभी करने को बहुत कुछ है...

How to overcome an exam failure: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की 12वीं और 10वीं की परीक्षाएं जारी हैं. कुछ ही समय बाद इनके नतीजे घोषि‍त (CBSE Board 10th Result 2019) होंगे. इसके बाद पास और फेल देखा जाएगा. क‍ितने पास और कितने फेल... पास विद्यार्थियों में कुछ के अंक अच्छे और कुछ के बुरे होंगे हैं. लेकिन सबसे बुरी हालत उनकी होगी, जो अगली कक्षा में जाने की चौखट नहीं लांघ पाएंगे. सवाल यह उठता है कि क्या इन विद्यार्थियों के लिए चौखट के ऊपर खड़े सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं? या फिर इन्हें और इनके परिजनों को निराशा में डूब जाना चाहिए? हो न हो, परीक्षा में विफलता की पीड़ा असह्य होती है. कई विद्यार्थी बर्दाश्त नहीं कर पाते और अपनी जान तक गंवा बैठते हैं. इन बातों को ध्यान में रखकर हमें इस बारे में भी सोचने की जरूरत है कि जितना गुणगाण हम सफल छात्रों का करते हैं उतना ही ध्यान हमें असफल छात्रों की मनोदशा को समझने पर भी लगाना होगा. पेश हैं कुछ टिप्स जो असफल हुए छात्रों को हताशा के गर्त में जाने से रोक सकते हैं-

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हताश न हों

 
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मनोविज्ञानी डॉ. समीर पारिख ऐसे असफल विद्यार्थियों को जिंदगी की किसी एक असफलता को अस्वीकारने और उसे सकारात्मक रूप में लेने का सुझाव देते हैं. डॉ. पारिख ने कहा, "परीक्षा में फेल विद्यार्थियों को हताश नहीं होना चाहिए. परीक्षा को एक अनुभव के रूप में लेना चाहिए, यह कि आपने जो पढ़ा, उससे क्या सीखा, उसमें कहां कमी रह गई, किन बदलावों की जरूरत है. सीनियर्स से बात करें, शिक्षकों से बात करें, और पढ़ाई के तरीके में बदलाव लाएं और अगली बार की तैयारी शुरू कर दें."

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जीवन यहां खत्म नहीं होता

 
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मनोचिकित्सक का कहना है कि "रोजमर्रा की तरह जीएं. ज्यादा परेशानी हो तो किसी काउंसलर से बात करें, चुप न बैठें, अकेले ना बैठे, यह जिंदगी का हिस्सा है, जिसे हम सफलता में बदल सकते हैं." देश-दुनिया में कई ऐसी हस्तियां हुई हैं, जो स्कूली शिक्षा में फेल हुई हैं, लेकिन उन्होंने दुनिया के इतिहास और भूगोल को बदलने का करिश्मा कर दिखाया है. महात्मा गांधी और अलबर्ट आइंस्टीन ऐसे ही दो नाम हैं. महात्मा गांधी को हाईस्कूल की परीक्षा में 40 प्रतिशत अंक मिले थे. इसी तरह आइंस्टीन भी स्कूली शिक्षा के दौरान कई विषयों में फेल हो गए थे. लेकिन इन दोनों हस्तियों ने क्या कुछ कर दिखाया, इसका जिक्र यहां करने की जरूरत नहीं है.

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बनें उदाहरण

 
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आज के जमाने में भी कई ऐसे लोग हैं, जो किसी परीक्षा में फेल हुए हैं, लेकिन उन्होंने उस विफलता से सीखा और जिंदगी को एक नई दिशा दे डाली. राष्ट्रीय राजधानी में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत एक युवती के साथ ऐसा ही हुआ है. उन्होंने अपना नाम न जाहिर न करने के अनुरोध के साथ कहा, "परीक्षा में पास-फेल होना मायने नहीं रखता. कभी-कभी गलत विषय चुनने से भी ऐसा होता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि विद्यार्थी नाकाबिल है. मैंने भी 10वीं में गलत विषय चुन लिया था, फेल हो गई. लेकिन आज मैं जिंदगी में पास हूं." उन्होंने कहा, "मुझे पता ही नहीं था कि मेरी रुचि किस विषय में है और मैं क्या कर सकती हूं. परिजनों के कहने पर विज्ञान ले लिया, मेरी समझ से बाहर था. अगले वर्ष बिना स्कूल गए मैंने आर्ट्स विषय में परीक्षा दी और 78 प्रतिशत अंक हासिल किए. विफलता खुद को सुधारने का मौका देती है."

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नकारात्मक न सोचें

 
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कुछ बच्चे परीक्षा में अच्छे अंक न लाने के चलते या फेल होने के कारण खुद को ही खत्म कर देते हैं. उन्हें लगता है कि यदि वे जीवन में यह नहीं कर पाए तो उनका जीवन खत्म है. ऐसा करना सही नहीं है. जीवन अनुभवों से बना है. इसमें अनुभवों को आने दें. 12वीं की परीक्षा में फेल होने पर नवी मुंबई के एक विद्यार्थी ने रविवार को फांसी लगा ली. पृथ्वी वावहाल (18) सानपाड़ा स्थित रायन इंटरनेशन स्कूल का विद्यार्थी था, और रविवार को परीक्षा में फेल होने के बाद उसने अपराह्न् दो बजे घर में फांसी लगा ली. पृथ्वी की मां स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं, जबकि उसके पिता कारोबारी हैं. यही नहीं, इसके पहले मध्यप्रदेश बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में फेल होने पर 12 विद्यार्थियों ने 13 मई को आत्महत्या कर ली थी.

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यही एक परीक्षा नहीं है

 
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जीवन में 70-80 साल की उम्र तक एक व्यक्ति को तमाम परीक्षाएं देनी पड़ती हैं. इसलिए सिर्फ एक परीक्षा का अपने ऊपर इतना असर नहीं होने देना चााहिए, जो कि जीवन के लिए घातक बन जाए. डॉ. पारिख ने कहा, "कई लोगों के जीवन में अलग-अलग किस्म के कई ऐसे परिणाम आए हैं, जिनकी उन्हें उम्मीद नहीं रही है. चाहे कॉलेज के परिणाम हों, वेतन वृद्धि का मामला हो, किसी स्टोरी में गलती का मुद्दा हो, या अपने साथ कोई बुरी घटना. कोई भी शख्स जीवन भर ये सारी परीक्षाएं पास नहीं कर सकता."

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अंक इतने अहम नहीं

 
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अंक ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होते. फेल होने के मामले में कहीं न कहीं माता-पिता की भी जिम्मेदारी है. फेल का मतलब असफल होना नहीं होता, यह टैग तो हम लगा देते हैं. विफलता खुद को सुधारने का अवसर देती. परिणाम से बहुत बच्चे तनाव में चले जाते हैं और कई परिजनों का दवाब होता है कि मेरे बच्चे को 90 प्रतिशत ही लाना है. यह ठीक नहीं है.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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