Premanand Maharaj Health: प्रेमानंद जी महाराज को पॉलीसिस्टिक किडनी डिज़ीज़ (PKD) नामक बीमारी है. यह एक अनुवांशिक (जेनेटिक) रोग है, जिसमें दोनों किडनियों में पानी से भरे छोटे-छोटे सिस्ट बन जाते हैं. उनकी किडनियां धीरे-धीरे असफल हो गई हैं, और वह नियमित डायलिसिस पर निर्भर हैं. खुद प्रेमानंद जी के कई वीडियो देखने को मिलते हैं, जिसमें वे कहते दिखे हैं कि 'दोनों किडनी फेल हैं, अब ठीक होने को कुछ नहीं बचा है अब तो जाना है, आज नहीं तो कल अब तो चले ही जाना है.' इस वीडियो के बाद तो उनके भक्त और ज्यादा परेशान हो गए और जानना चाहते हैं कि प्रेमानंद जी की तबियत कैसी है और प्रेमानंद जी महाराज को क्या हुआ है और उन्हें कौन सी बीमारी है और प्रेमानंद जी महाराज कब तक ठीक हो जाएंगे.
असल में किडनी हमारे शरीर का एक जरूरी ऑर्गन है. इसका काम है खून को फिल्टर करके वेस्ट प्रोडक्ट्स को यूरिन (पेशाब) के ज़रिए बाहर निकालना. जब एक या दोनों किडनी अपने आप काम करना बंद कर दें तो इसे ही किडनी फेलियर या रीनल फेलियर कहते हैं. यह कंडीशन कभी-कभी अचानक और थोड़े समय के लिए होती है जिसे एक्यूट किडनी फेलियर कहते हैं.

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वहीं, अगर यह लंबे समय तक धीरे-धीरे बढ़ती रहे तो इसे क्रोनिक किडनी फेलियर कहा जाता है. किडनी फेलियर का सबसे सीरियस स्टेज, एंड-स्टेज किडनी डिजीज (ESKD) है, जो इलाज न मिलने पर जानलेवा हो सकता है. दुनिया भर में करीब 2 मिलियन और अकेले अमेरिका में 750,000 से ज़्यादा लोग हर साल इससे अफेक्टेड होते हैं.
किडनी फेलियर: जब शरीर का फिल्टर काम करना बंद कर देता है
किडनी फेलियर के बड़े कारण और खतरे
किडनी फेलियर के सबसे कॉमन कारण हैं डायबिटीज (हाई ब्लड शुगर) और हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन). लगातार हाई ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर किडनी के टिशू को नुकसान पहुंचाते हैं. इसके अलावा, पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज (PKD), कुछ ग्लोमेरुलर डिजीज और लूपस जैसी ऑटोइम्यून डिजीज भी किडनी फेलियर की वजह बन सकती हैं.
एक्यूट किडनी फेलियर यानी अचानक किडनी का फंक्शन रुक जाने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे- दवाइयों का साइड इफेक्ट, सीवियर डिहाइड्रेशन, यूरिनरी ट्रैक्ट में रुकावट या हार्ट व लिवर डिजीज से जुड़ी कंडीशन.
किसे ज्यादा खतरा है
अगर किसी को डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज या फैमिली हिस्ट्री में किडनी डिजीज है, तो उसका रिस्क ज्यादा होता है. 60 साल से ऊपर की उम्र, किडनी की असामान्य बनावट या दर्द की दवाओं का लंबे समय तक इस्तेमाल भी जोखिम बढ़ाता है

शुरुआती लक्षण पहचानना है ज़रूरी
शुरुआत में अक्सर लोगों में सिम्टम्स कम या नहीं भी दिखते, लेकिन क्रोनिक किडनी डिजीज अंदर ही अंदर डैमेज करती रहती है. जब किडनी सही से काम नहीं करती तो वेस्ट प्रोडक्ट्स शरीर में जमा होने लगते हैं, जिससे ये साइन दिख सकते हैं.
- बहुत ज्यादा थकान (फैटीग).
- उल्टी या जी मिचलाना (Nausea).
- कन्फ्यूजन या कंसंट्रेट करने में दिक्कत यानी ब्रेन फॉग.
- शरीर में सूजन (एडिमा), खासकर हाथ, पैर के एंकल्स और चेहरे पर.
- पेशाब जाने की आदत में बदलाव आना.
- मांसपेशियों में ऐंठन (क्रैंप्स).
- सूखी या खुजली वाली स्किन.
- भूख कम लगना या खाने का टेस्ट अजीब सा लगना.
किडनी फेलियर के स्टेजेस
किडनी की हालत जानने के लिए eGFR नाम का ब्लड टेस्ट किया जाता है. ये बताता है कि आपकी किडनी खून को कितना अच्छे से फिल्टर कर रही है. eGFR अगर 90 से ऊपर है तो किडनी नॉर्मल है. अगर ये 15 से नीचे चला जाए तो किडनी लगभग फेल मानी जाती है.
- स्टेज 1 - GFR 90 से ऊपर, हल्का डैमेज लेकिन काम जारी.
- स्टेज 2 - GFR 60 से 89 के बीच, डैमेज थोड़ा बढ़ा पर काम कर रही है.
- स्टेज 3 - GFR 30 से 59, फंक्शन में कमी आने लगती है.
- स्टेज 4 - GFR 15 से 29, गंभीर हालत.
- स्टेज 5 - GFR 15 से कम, किडनी फेलियर का आखिरी स्टेज.
इलाज के विकल्प
- किडनी फेलियर का कोई परमानेंट इलाज नहीं है, लेकिन दवाओ, डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट से इस पर कंट्रोल रखते हुए सामान्य जीवन जिया जा सकता है.
- डायलिसिस दो तरह की होती है. हीमोडायलिसिस में मशीन खून को साफ करती है. पेरिटोनियल डायलिसिस में पेट के अंदर सॉल्यूशन डालकर वेस्ट निकाला जाता है.
- किडनी ट्रांसप्लांट में किसी हेल्दी डोनर की किडनी शरीर में लगाई जाती है. इसके बाद लाइफटाइम मेडिसिन लेनी पड़ती है ताकि नई किडनी को नुकसान न पहुंचे.
दवाएं जो मदद करती हैं
ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने के लिए ACE इनहिबिटर या ARB दी जाती है. साथ ही ड्यूरेटिक्स, स्टैटिन्स, फॉस्फेट बाइंडर्स और विटामिन D की दवाएं दी जा सकती हैं.
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क्या रिकवरी संभव है
किडनी फेलियर रिवर्स नहीं होता, लेकिन सही इलाज से इसके बढ़ने की स्पीड कम की जा सकती है. मरीज डायलिसिस या ट्रांसप्लांट के साथ लंबा और अच्छा जीवन जी सकते हैं.
कैसे बचा जा सकता है
अगर आपको डायबिटीज या ब्लड प्रेशर है, तो शुगर और बीपी को कंट्रोल में रखें. ज्यादा नमक और पोटैशियम वाले खाने से बचें, स्मोकिंग न करें और डॉक्टर की रेगुलर जांच करवाते रहें.
कब दिखाएं डॉक्टर को
अगर पेशाब की मात्रा बदल रही है, बार-बार थकान या मितली हो रही है, या फैमिली में किडनी डिजीज की हिस्ट्री, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.

आखिरी स्टेज और हॉस्पिस केयर
जब किडनी फेलियर आखिरी स्टेज पर पहुंच जाता है और डायलिसिस या ट्रांसप्लांट से भी राहत नहीं मिलती, तब हॉस्पिस केयर की मदद ली जाती है. लेकिन इसका मकसद इलाज नहीं, बल्कि आराम देना होता है. इसमें डॉक्टर और नर्सें मरीज को दर्द और तकलीफ से राहत देने की कोशिश करते हैं, ताकि आखिरी वक्त में उसकी ज़िंदगी थोड़ी आसान और शांतिपूर्ण बन सके.
इसे “कम्फर्ट केयर” भी कहा जाता है, जहां ध्यान इलाज से ज़्यादा सहूलियत और मानसिक शांति पर होता है.
किडनी शरीर की सफाई करने वाली फैक्ट्री है. जब ये रुक जाती है तो जिंदगी मुश्किल हो जाती है. लेकिन सही इलाज, डाइट और रेगुलर केयर से किडनी फेलियर के साथ भी जिंदगी आगे बढ़ाई जा सकती है. निर्भर करता है कि आप किस स्टेज पर कितने जागरूक है इस बीमारी को लेकर.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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