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भारत में पेरासिटामोल दवा पर बैन नहीं, हेल्थ मिनिस्ट्री ने बताया कौन सी दवाओं पर लगाया गया है प्रतिबंध

राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स मिनिस्ट्री में राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बताया कि सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) के पास पेरासिटामोल पर बैन जैसी किसी अफवाह की कोई जानकारी नहीं आई है.

भारत में पेरासिटामोल दवा पर बैन नहीं, हेल्थ मिनिस्ट्री ने बताया कौन सी दवाओं पर लगाया गया है प्रतिबंध
हेल्थ मिनिस्ट्री ने साफ किया है कि पेरासिटामोल पर देश में किसी तरह का बैन नहीं है.

पिछले कुछ दिनों से पेरासिटामोल और दूसरी आम दवाओं पर बैन को लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह की बातें फैल रही थीं. इसकी वजह से कई लोगों में भ्रम की स्थिति बन रही थी. ऐसे में अब हेल्थ मिनिस्ट्री ने साफ किया है कि पेरासिटामोल पर देश में किसी तरह का बैन नहीं है. राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स मिनिस्ट्री में राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बताया कि सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) के पास पेरासिटामोल पर बैन जैसी किसी अफवाह की कोई जानकारी नहीं आई है. फिर भी ये स्पष्ट कर दिया गया है कि पेरासिटामोल पर कोई बैन नहीं है.

हालांकि बीते वक्त में पेरासिटामोल और कुछ दूसरी दवाओं के कई फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (FDC) जरूर बैन किए गए हैं. इन बैन की गई कॉम्बिनेशन दवाओं की पूरी लिस्ट CDSCO की वेबसाइट (www.cdsco.gov.in) पर देखी जा सकती है.

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"दवाओं की कीमत तय करने की जिम्मेदारी नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी की"

सरकार ने ये भी बताया कि देश में दवाओं की कीमतों को तय करने और उस पर निगरानी रखने का काम नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) करती है, जो डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्युटिकल्स के तहत काम करती है. ये काम ड्रग्स प्राइसेज कंट्रोल ऑर्डर 2013 (DPCO-2013) के नियमों के तहत किया जाता है.

अगर कोई दवा नेशनल लिस्ट ऑफ एसेंशियल मेडिसिन्स (NLEM) में शामिल है, तो NPPA उसकी सीलिंग प्राइस तय करती है और हर साल उसे होलसेल प्राइस इंडेक्स के हिसाब से अपडेट भी किया जाता है. सभी कंपनियों को तय की गई इस सीलिंग प्राइस (प्लस टैक्स) के अंदर ही दवा बेचनी होती है.

अगर किसी कंपनी ने NLEM में शामिल दवा को किसी दूसरी दवा के साथ मिलाकर नया फॉर्मूला बनाया है, या उसकी स्ट्रेंथ या डोज बदली है, तो उसे ‘न्यू ड्रग' माना जाता है. ऐसे में उस कॉम्बिनेशन का रिटेल प्राइस NPPA तय करती है. बाकी जो दवाएं इस लिस्ट में नहीं हैं, उनके MRP को कंपनियां एक साल में 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं बढ़ा सकतीं. इस पर भी NPPA नजर रखती है.

फ्री ड्रग्स सर्विस इनिशिएटिव स्कीम

सरकार ने जानकारी दी कि लोगों को जरूरी दवाएं सस्ती या फ्री में मिलें, इसके लिए नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) के तहत फ्री ड्रग्स सर्विस इनिशिएटिव नाम की स्कीम चलाई जा रही है. इसके तहत सरकारी अस्पतालों और रूरल हेल्थ सेंटर्स को जरूरी दवाएं फ्री देने के लिए फंड मुहैया कराया जाता है. राज्य अपने प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन प्लान के जरिए जरूरत के हिसाब से इन दवाओं के लिए बजट अलॉट करवाते हैं.

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दवाओं पर नजर रखने के लिए बनाया गया है आईटी प्लेटफॉर्म

दवाओं की खरीद, क्वालिटी, सप्लाई, स्टॉक और इस्तेमाल पर नजर रखने के लिए एक आईटी प्लेटफॉर्म भी बनाया गया है जिसका नाम है ड्रग्स एंड वैक्सीन डिस्ट्रीब्यूशन मैनेजमेंट सिस्टम (DVDMS). इसके जरिए पूरे देश में दवाओं की सप्लाई चेन को ट्रैक किया जा सकता है. कुछ राज्य इस सिस्टम को सब हेल्थ सेंटर तक भी लागू कर चुके हैं.

जरूरी दवाओं की लगातार सप्लाई बनी रहे, इसके लिए मेडिकल स्टोर्स ऑर्गनाइजेशन (MSO) और गवर्नमेंट मेडिकल स्टोर डिपो (GMSD) ने 697 दवाओं के लिए रेट कॉन्ट्रैक्ट तय किए हुए हैं. अभी देशभर में 1,152 ऐसे सरकारी अस्पताल और हेल्थ सेंटर्स हैं जो इस सिस्टम से जुड़े हुए हैं. ये संस्थाएं हर साल चार बार MSO को दवाओं की डिमांड भेज सकती हैं.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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