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Breast Cancer: निगेटिव मैमोग्राफी रिपोर्ट के बाद भी हो सकता है ब्रेस्ट कैंसर, ब्रेस्ट डेंसिटी है छुपा हुआ खतरा, जाने क्या है Breast Density

डेंस ब्रेस्ट की समस्या भारत में लाखों महिलाओं में पाई जाती है. लेकिन इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है. इसे नजरअंदाज करने की वजह से ही ब्रेस्ट कैंसर समय रहते पकड़ में नहीं आता है.

Breast Cancer: निगेटिव मैमोग्राफी रिपोर्ट के बाद भी हो सकता है ब्रेस्ट कैंसर, ब्रेस्ट डेंसिटी है छुपा हुआ खतरा, जाने क्या है Breast Density

Breast Cancer: महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की समस्या आम होती जा रही है. लेकिन जब भी महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की बात होती है तब एक ही सलाह दे दी जाती है कि मैमोग्राफी करा लो. सब कुछ क्लियर हो जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर बार मैमोग्राफी कारगर नहीं होती. कई बार ये टेस्ट कैंसर को पकड़ नहीं पाता है. इसकी वजह होती है ब्रेस्ट का ज्यादा डेंस होना.

डेंस ब्रेस्ट का क्या मतलब है?

ब्रेस्ट के फैट की जगह फाइब्रो और ग्लैड्यूलर टिश्यूज ज्यादा होते हैं. इस समस्या को डेंस ब्रेस्ट कहते हैं. डेंस ब्रेस्ट की समस्या भारत में लाखों महिलाओं में पाई जाती है. लेकिन इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है. इसे नजरअंदाज करने की वजह से ही ब्रेस्ट कैंसर समय रहते पकड़ में नहीं आता है.

मैमोग्राफी को कैसे चमका देती है डेंस ब्रेस्ट?

अब सवाल ये है कि मैमोग्राफी हर बार ब्रेस्ट कैंसर जांचने का कारगर तरीका क्यों नहीं होती है. इसकी वजह ये है कि ट्यूमर और इस तरह के टिश्यू दोनों मैमोग्राफी में सफेद ही नजर आते हैं. ऐसे में कैंसर की पहचान करना आसान नहीं होता. और, अक्सर रिपोर्ट निगेटिव भी आ सकती है.

डेंस ब्रेस्ट का रिस्क?

डेंस ब्रेस्ट में कैंसर को पकड़ना काफी चैलेंजिंग हो सकता है. इसके दो अहम रिस्क हैं.
1. मैमोग्राफी से कैंसर पकड़ना मुश्किल हो जाता है.
2. डेंस ब्रेस्ट अपने आप में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ाते हैं.
इसके बावजूद भारत में मैमोग्राफी रिपोर्ट में ये जिक्र तक नहीं किया जाता कि डेंस ब्रेस्ट हैं या नहीं.

अमेरिका में जरूरी, भारत में जानकारी नहीं

अमेरिका में BI-RADS स्कोर के जरिए हर महिला को बताया जाता है कि उसके स्तन डेंस हैं या नहीं. वहीं भारत में डॉक्टर और टेक्नीशियन इस जानकारी को रिपोर्ट में दर्ज करना जरूरी नहीं मानते. इसका नतीजा ये होता है कि महिलाएं अपनी जांच को पूरी तरह से सही मानकर बेफिक्र हो जाती हैं. लेकिन शरीर में कैंसर बढ़ता ही रहता है.

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दूसरा ऑप्शन क्या है?

विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि अगर किसी महिला के ब्रेस्ट डेंस हैं या नहीं ये पता लगाना है तो केवल मैमोग्राफी करवाना ही काफी नहीं है. इसके साथ अल्ट्रासाउंड या MRI जैसी एडवांस्ड जांच भी जरूरी हो सकती है. खासतौर पर हाई रिस्क महिलाओं में ये और भी अहम हो जाता है.
डॉक्टरों के मुताबिक अल्ट्रासाउंड से ऐसे मामलों में करीब 40% तक अतिरिक्त कैंसर पकड़ में आ सकते हैं. जो मैमोग्राफी से छूट जाते हैं.

स्क्रीनिंग की स्थिति

भारत में अभी भी 3% से भी कम महिलाएं नियमित रूप से ब्रेस्ट कैंसर की स्क्रीनिंग करवा रही हैं. हालांकि कुछ शहरों और संस्थाओं ने मोबाइल स्क्रीनिंग वैन चलाने जैसी पहल की है. जिसकी वजह से गांव और दूरदराज के इलाकों में भी महिलाओं की जांच हो पा रही है. उदाहरण के तौर पर पुणे में चल रही एक कैंसर स्क्रीनिंग वैन ने कुछ ही हफ्तों में 6.3 लाख महिलाओं की जांच की. जिसकी मदद से कैंसर के 144 नए मामले पकड़ में आए.

क्या हैं असल हालात?

भारत में लेट डिटेक्शन की वजह से करीब पचास प्रतिशत मामले स्टेज 3 या 4 में पकड़ में आते हैं.
40 से 49 उम्र के बीच की 22 फीसदी महिलाओं को डेंस ब्रेस्ट हो सकते हैं.
फिफ्टीज में पहुंच पहुंचते नौ फीसदी महिलाओं में डेंस ब्रेस्ट की समस्या खत्म हो जाती है.
साठ से सत्तर की उम्र के बीच आठ फीसदी महिलाओं में ही डेंस ब्रेस्ट की समस्या बचती है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह

• 40 साल की उम्र के बाद हर साल मैमोग्राफी जरूरी है.
• डेंस ब्रेस्ट होने पर अल्ट्रासाउंड या MRI भी करवाएं
• किसी भी अलग तरह के लक्षण को नजरअंदाज न करें, जैसे गांठ, त्वचा में बदलाव, निप्पल से डिस्चार्ज.
• हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं. बैलेंस डाइट लें. नियमित रूप से एक्सरसाइज करें और तनाव से बचाव.
• डॉक्टरी सलाह लेने में देर न करें.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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