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भारत का कैंसर रिपोर्ट कार्ड- बढ़ रहे केस, बढ़ता जोखिम और बड़ी चुनौतियाँ, एक्सपर्ट ने जो बताया वो हैरान कर देगा

Cancer: भारत में कैंसर के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है, खासकर ओरल कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर की बात करें तों. जाने-माने हीमैटोलॉजिस्ट और पद्मश्री सम्मानित डॉ. मम्मेन चांडी का कहना है कि लोगों का इन बीमारियों की चपेट में आने के मुख्य कारण हैं लोगों की लाइफस्टाइल, तंबाकू का इस्तेमाल, देर से बीमारी का पता लगना और इन्वायरमेंट फैक्टर्स हैं.

भारत का कैंसर रिपोर्ट कार्ड- बढ़ रहे केस, बढ़ता जोखिम और बड़ी चुनौतियाँ, एक्सपर्ट ने जो बताया वो हैरान कर देगा
भारत में लगातार बढ़ रहे हैं कैंसर के केस.

Cancer: भारत में कैंसर के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है, खासकर ओरल कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर की बात करें तों. जाने-माने हीमैटोलॉजिस्ट और पद्मश्री सम्मानित डॉ. मम्मेन चांडी का कहना है कि लोगों का इन बीमारियों की चपेट में आने के मुख्य कारण हैं लोगों की लाइफस्टाइल, तंबाकू का इस्तेमाल, देर से बीमारी का पता लगना और इन्वायरमेंट फैक्टर्स हैं. डॉ. चांडी के अनुसार, यह बढ़ती प्रवृत्ति देश के लिए एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है. उन्होंने बताया, “1990 से 2021 के बीच भारत में ओरल कैंसर से मृत्यु दर 5.32 से बढ़कर 5.92 प्रति 1 लाख हो गई, जबकि डिसएबिलिटी-अडजस्टेड लाइफ-ईयर (DALY) रेट 152.94 से बढ़कर 163.61 हो गया.”

DALY रेट किसी बीमारी के कुल बोझ को दर्शाता है, जिसे प्रति 1 लाख जनसंख्या पर मापा जाता है. चांडी ने बताया कि एज- एटैंडराइज्ड प्रिवलंस (ASPR) भी इसी टाइम पीरियड में 15.71 से बढ़कर 25.46 हो गई है. एज- एटैंडराइज्ड प्रिवलंस रेट ऐसे आँकड़े हैं जिनकी मदद से अलग-अलग ऐज स्ट्रक्चर वाली आबादी के बीच बीमारी की तुलना की जा सकती है. उन्होंने कहा, “अनुमानों के अनुसार 2022 से 2031 के बीच ओरल कैंसर के आंकड़ों में वृद्धि जारी रहेगी. 2031 तक आयु-मानकीकृत घटना दर (ASIR) 10.15 प्रति 1 लाख और मृत्यु दर (ASPR) 29.38 प्रति 1 लाख तक पहुंच सकती है.”

पुरुषों में यह दरें महिलाओं की तुलना में लगातार ज्यादा रहती हैं और राज्यों के बीच भी इसका बोझ काफी अलग-अलग है. ब्रेस्ट कैंसर के मामलों में भी तेजी से बढ़ते हुए केस देखे जा रहे हैं. 

उन्होंने बताया, “वैश्विक स्तर पर ब्रेस्ट कैंसर अब महिलाओं में सबसे सामान्य कैंसर बन चुका है, जिसने फेफड़ों के कैंसर को भी पीछे छोड़ दिया है. भारत में 1990 से 2016 के बीच महिलाओं में ASIR लगभग 40% तक बढ़ा है और देश के हर राज्य में इसमें वृद्धि दर्ज की गई है.” इसके पीछे लाइफस्टाइल, मोटापा, अल्कोहल, देर से मां बनना इसका एक कारण हैं. उन्होंने कहा, “ओरल कैंसर के लिए तंबाकू, शराब और स्मोकिंग इसके कारण हो सकते हैं, जबकि ब्रेस्ट कैंसर लाइफस्टाइल, आनुवंशिक कारकों और डायग्नोस्टिक पहुंच का कॉम्बिनेशन है.” चांडी ने केंद्र सरकार द्वारा हर जिले में कैंसर केयर सेंटर खोलने के फैसले का स्वागत किया है.

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उन्होंने कहा, “यह सही दिशा में एक कदम है. भारत वर्तमान समय में दो मॉडल पर चलता है—निजी क्षेत्र, जहां रोगियों को मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पतालों में रेफर किया जाता है, और सार्वजनिक क्षेत्र, जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से राज्य-स्तरीय कैंसर अस्पतालों में रेफर किया जाता है. इसके लिए पब्लिक फंडिंग जरूरी है, लेकिन इसकी क्वालिटी के सुधार पर फोकस होना चाहिए.”

रिसर्च और जीनोमिक्स पर बात करते हुए उन्होंने आईआईटी-मद्रास द्वारा शुरू किए गए भारत कैंसर जीनोम एटलस (BCGA) के महत्व को रेखांकित किया. उन्होंने कहा, “यह पहल भारत में प्रचलित कैंसर के जेनेटिक लैंडस्केप को मैप करती है. फिलहाल यह डेटा को एक जगह जुटाने की प्रोसेस है, लेकिन इससे शोधकर्ताओं को जेनेटिक बदलावों का अध्ययन करने और टार्गेटेड थेरैपी विकसित करने में मदद मिलेगी.” उन्होंने हाल के प्रयोगात्मक दवा परीक्षणों का जिक्र करते हुए ‘Dostarlimab-gxly (Jemperli)' के अच्छे परिणाम बताए — यह एक PD-1 इनहिबिटर है जिसने मिसमैच्ड रिपेयर-डिफिशिएंट ट्यूमर वाले कोलोरेक्टल कैंसर के एक छोटे समूह में 100% प्रतिक्रिया दिखाई. उन्होंने कहा, “यह अद्भुत है, लेकिन यह सिर्फ 4-5% रोगियों पर लागू होता है. बाकी को अभी भी सर्जरी और कीमोथेरेपी जैसे इलाजों की जरूरत पड़ती है. ”

रूस द्वारा घोषित निजी mRNA कैंसर वैक्सीन पर उन्होंने कहा, “सिद्धांत रूप में यह आशाजनक है, लेकिन अभी कोई प्रकाशित क्लीनिकल डेटा उपलब्ध नहीं है. mRNA वैक्सीन COVID में कारगर रही, लेकिन कैंसर अधिक जटिल है, इसलिए इसकी इफिसियेंसी कितनी है ये साबित करना होगा.” उन्होंने सटीक (प्रिसिजन) दवा और मॉडर्न डायग्नोस्टिक्स को लेकर सावधानीपूर्वक आशावाद व्यक्त किया.

उन्होंने बताया, “कुछ कैंसर जैसे बचपन में होने वाला एक्यूट लिम्फेटिक ल्यूकेमिया और हॉजकिंस लिम्फोमा में मॉडर्न थेरेपी, जो मॉलिक्यूलर डायग्नोसिस से गाइड होती है, 90% तक रोगियों को ठीक कर सकती है. बेहतर डायग्नोस्टिक्स से टार्गेटेड ट्रीटमेंट मिलता है जिसमें साइड इफेक्ट कम होते हैं, लेकिन कैंसर-फ्री फ्यूचन की संभावना कम है.” डॉ. चांडी के अनुसार, भारत में कैंसर का बढ़ता बोझ व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों का संकेत है.

उन्होंने कहा, “हमारे यहां हर साल एक मिलियन से ज्यादा नए केस सामने आते हैं. महिलाओं में ब्रेस्ट, सर्विक्स और ओवेरियन कैंसर सबसे आम हैं, जबकि पुरुषों में फेफड़े, ओरल और प्रोस्टेट कैंसर प्रमुख हैं. चिंता करने वाली बात ये है कि भारत में कैंसर पश्चिमी देशों की तुलना में कम उम्र में लोगों को प्रभावित करता है. उदाहरण के लिए, यहां फेफड़ों के कैंसर की औसत आयु 59 है, जबकि अमेरिका में 70 और यूके में 75 है.” इसके पीछे तंबाकू, पॉल्यूशन, मोटापा, खराब खानपान और लाइफस्टाइल जैसी वजहें बताई गई हैं. उन्होंने कहा, “भारत में लगभग 40% कैंसर तंबाकू से जुड़े हैं, और कई अन्य मामलों में पॉल्यूशन और लाइफस्टाइल इसकी वजह है.” इन चुनौतियों के बावजूद भी डॉ. चांडी ने उम्मीद दिखाई है.

उन्होंने कहा, “अब अधिक कैंसर सेंटर अत्याधुनिक डायग्नोस्टिक्स और ट्रीटमेंट दे रहे हैं, और घरेलू दवाएं भी अधिक सुलभ हैं. लेकिन भारत को रोकथाम, स्क्रीनिंग और शोध में निवेश करना होगा ताकि कैंसर के बोझ को कम किया जा सके.” उन्होंने बताया, “भारत में ओरल, ब्रेस्ट और सर्विकल कैंसर की स्क्रीनिंग दर राष्ट्रीय स्तर पर 1% से भी कम है. अगर हम कैंसर से होने वाली मौतें कम करना चाहते हैं, तो शुरुआती जांच को व्यापक बनाने की जरूरत है.”

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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