नई दिल्ली: फार्मा कंपनियां अब एक ही दवा ब्रांड का ब्रांड एक्सटेंशन बनाकर उसके अलग-अलग फॉर्मूलेशन बाजार में नहीं बेच पाएंगी. कई राज्यों की दवा निगरानी इकाइयों और मरीज समूहों की शिकायतों पर अब केंद्र सरकार इस मुद्दे पर नए नियमन लाने पर विचार कर रही है. अधिकारिका सूत्रों के अनुसार, सरकार जल्द ही इस प्रैक्टिस को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की तैयारी में है. इसके तहत एक ही ब्रांड नाम से कई फॉर्मूलेशन बेचने पर सीमित या पूर्ण रोक लगाई जा सकती है.
साथ ही नए ब्रांड नामों की मंजूरी के लिए अलग मानक और अधिनियम 96 (लेबलिंग और ब्रांड नाम) में संशोधन किया जा सकता है. इसके साथ ही मिसलीडिंग ब्रांड पर कार्रवाई की प्रक्रिया तय की जा सकती है. सूत्रों ने बताया कि सरकार का मुख्य उद्देश्य यह है कि मरीजों को किसी भी हालत में गलत दवा ना मिले. इसीलिए आने वाले महीनों में सरकार इस मुद्दे पर साफ दिशा-निर्देश जारी कर सकती है.
एक्सपर्ट्स की मानें तों यह सिर्फ दवाओं के नियम या तकनीकी प्रक्रिया का मामला नहीं है, बल्कि सीधे लोगों की डेली सेफ्टी और सेहत से जुड़ा मुद्दा है. भारत में लोग आमतौर पर ब्रांड नाम देखकर दवा खरीद लेते हैं. ऐसे में एक ही नाम से कई तरह की दवाएं बिकना मरीज के लिए खतरा बढ़ा देता है.
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सरकार क्यों उठा रही कदम?
दरअसल, मेडिकल स्टोर पर अक्सर ये देखा गया है कि एक ही ब्रांड के नाम से अलग-अलग दवाएं बिक रही हैं. आसान भाषा में कहें तों एक ही ब्रांड के नाम पर बुखार से लेकर दर्द तक की दवा और एंटीबायोटिक तीनों अलग-अलग रूप में बेचें जा रहे हैं. डॉक्टर एक ब्रांड का नाम लिखते हैं, लेकिन मरीज कई बार उसी नाम वाली गलत दवा खरीद लाता है. यही सबसे बड़ा स्वास्थ्य पर खतरा है. इसको लेकर पिछले कुछ माह में कई राज्यों ने केंद्रीय दवा नियंत्रण संगठन (CDSCO) को बताया कि यह तरीका लोगों को भ्रमित करता है और मरीजों की स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन रहा है. इससे कई मरीजों को नुकसान भी हुआ क्योंकि उन्होंने ब्रांड तो वही खरीदा, लेकिन दवा का फॉर्मूला अलग था.
एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि अब केंद्र सरकार सभी संबंधित पक्षों फार्मा कंपनियों, दवा विशेषज्ञों, राज्यों के अधिकारियों और उपभोक्ता संगठनों के साथ बैठक बुलाने की तैयारी कर रही है, ताकि इस समस्या का समाधान निकाला जा सके.
हाई-रिस्क सॉल्वेंट्स पर निगरानी शुरू
डायइथाइलीन ग्लाइकॉल/एथिलीन ग्लाइकॉल से जुड़े अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के बाद केंद्र सरकार पहली बार हाई-रिस्क सॉल्वेंट्स जैसे प्रोपलीन ग्लाइकोल (PG), डायथिलीन ग्लाइकोल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकोल (EG) की पूरी सप्लाई चेन को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ला रही है. सभी निर्माताओं और आपूर्तिकर्ताओं को अब हर बैच का डाटा ऑनलाइन राष्ट्रीय औषधि लाइसेंसिंग प्रणाली पर अपलोड करना अनिवार्य होगा. राज्यों को निर्देश दिया गया है कि कोई भी बैच बाजार में तब तक न दिखे जब तक उसका डिजिटल रिकॉर्ड सिस्टम में उपलब्ध न हो. इसका मकसद सिरप निर्माण में सॉल्वेंट की क्वालिटी सुनिश्चित करना और किसी भी जोखिमपूर्ण बैच को तुरंत ट्रैक कर पाना है.
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अब एपीआई कारोबार पर अलग लाइसेंस, नकली दवाओं पर कसेगा सिकंजा
भारत पहली बार सक्रिय औषधि सामग्री (API) यानी दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे पदार्थ के व्यापार को सामान्य दवा वितरण से अलग करने जा रहा है. अब एपीआई बेचने वाले बल्क ड्रग होलसेलर को अलग से लाइसेंस लेना होगा जबकि फॉर्मूलेशन बेचने वाले डिस्ट्रीब्यूटर अलग श्रेणी में आएंगे. सरकार का मानना है कि दोनों कारोबार अलग करने से सप्लाई चेन ट्रेसेबल होगी और नकली या संदिग्ध एपीआई का पता लगाना आसान होगा. एनडीपीएस एक्ट के तहत नियंत्रित दवाओं की ट्रैकिंग भी इसी सिस्टम से जोड़ी जाएगी. इससे एपीआई का दुरुपयोग और नकली दवाओं की गुंजाइश कम होगी.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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