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एयर पॉल्यूशन बढ़ा रहा जोड़ों की इस बीमारी का खतरा, एक्सपर्ट्स ने बताया कारण और बचने के उपाय

Rheumatoid Arthritis and Pollution: हवा में मौजूद जहरीले कण शरीर में सूजन बढ़ाते हैं. इससे जोड़ों को नुकसान पहुंचता है. यह समस्या अब एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन चुकी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता."

एयर पॉल्यूशन बढ़ा रहा जोड़ों की इस बीमारी का खतरा, एक्सपर्ट्स ने बताया कारण और बचने के उपाय
Air Pollution And Joint Disease: अर्थराइटिस की बीमारी आज से समय में बड़ी चुनौती बन गई है.

Rheumatoid Arthritis and Pollution: अब तक यह माना जाता था कि रूमेटॉइड आर्थराइटिस यानी गठिया ज्यादातर आनुवांशिक कारणों या शरीर की इम्यूनिटी में गड़बड़ी के कारण होता है. लेकिन, अब वैज्ञानिक और डॉक्टर यह बता रहे हैं कि खराब एयर क्वालिटी भी इस बीमारी के बढ़ने की बड़ी वजह बन रही है. यूरोप, चीन और अब भारत में हुए हालिया अध्ययनों से पता चलता है कि पीएम 2.5 नामक छोटे कण जो हवा में रहते हैं और फेफड़ों के अंदर तक पहुंच जाते हैं, वे न केवल फेफड़ों और दिल की बीमारियों का कारण बनते हैं, बल्कि जोड़ों की सूजन और दर्द की इस बीमारी को भी बढ़ावा दे रहे हैं.

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एयर पॉल्यूशन कैसे बढ़ा रहे जोड़ों की दिक्कतें

दिल्ली स्थित एम्स के रूमेटोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. उमा कुमार ने कहा, "जो लोग प्रदूषित इलाकों में रहते हैं और जिनके परिवार में इस बीमारी का इतिहास नहीं है, उनमें भी गठिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. हवा में मौजूद जहरीले कण शरीर में सूजन बढ़ाते हैं. इससे जोड़ों को नुकसान पहुंचता है और बीमारी तेजी से फैलती है. यह समस्या अब एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन चुकी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता."

रूमेटॉइड आर्थराइटिस का बचाव ही इलाज है

डॉ. कुमार ने यह बात 40वें वार्षिक सम्मेलन, भारतीय रूमेटोलॉजी एसोसिएशन के सम्मेलन में कही. उन्होंने बताया कि भारत में करीब 1 प्रतिशत वयस्क इस बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन हवा के प्रदूषण के कारण यह संख्या और बढ़ सकती है. यह चिंता की बात है क्योंकि रूमेटॉइड आर्थराइटिस एक पुरानी बीमारी है और इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है, बस लक्षणों को कंट्रोल किया जा सकता है.

डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में प्रोफेसर और रुमेटोलॉजिस्ट डॉ. पुलिन गुप्ता ने बताया कि प्रदूषित इलाकों में रहने वाले मरीजों में गठिया ज्यादा गंभीर रूप में देखने को मिल रहा है. ये मरीज सामान्य मरीजों की तुलना में अधिक तकलीफ में हैं.

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अभी कई शोधों से यह भी साबित हुआ है कि पीएम 2.5 नाइट्रोजन ऑक्साइड और ओजोन जैसे हवा के प्रदूषक जोड़ों की बीमारी के खतरे को बढ़ाते हैं. खासकर उन लोगों में जिनके जीन में इस बीमारी का खतरा होता है, वे और भी ज्यादा प्रभावित होते हैं. जो लोग ट्रैफिक वाले इलाकों के करीब रहते हैं, उनमें भी गठिया की संभावना ज्यादा होती है क्योंकि वहां हवा और भी ज्यादा प्रदूषित होती है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह बीमारी आज के समय में बड़ी चुनौती बन गई है. इसे रोकने के लिए सिर्फ दवा लेना ही काफी नहीं है. लोगों को खुद भी अपने रूटीन में बदलाव करना होगा जैसे प्रदूषण वाले इलाकों से दूर रहना, बाहर निकलते समय मास्क पहनना और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाना. इसके साथ ही सरकार और स्थानीय प्रशासन को भी कदम उठाने होंगे. शहरों में हरियाली बढ़ानी होगी, प्रदूषण पर सख्त नियंत्रण लगाना होगा और साफ-सुथरे और एनवायरमेंटल फ्रेंडली ट्रांसपोर्टेशन के ऑप्शन्स बढ़ाने होंगे.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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