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Ahmedabad Plane Crash: डीएनए और दंत रिकॉर्ड से हो रही अहमदाबाद प्लेन क्रैश में जले शवों की पहचान

Ahmedabad Plane Crash: डॉक्टर ने बताया, "कई शव ऐसे थे जिनमें सिर्फ कुछ ही अंग बचे थे. एक शरीर का बस एक पैर और पेल्विक बोन मिली थी, उस पर एल्युमिनियम का टुकड़ा चिपका था. एक और शव में डॉक्टरों ने देखा कि शरीर पर एक क्राउन लगा हुआ था."

Ahmedabad Plane Crash: डीएनए और दंत रिकॉर्ड से हो रही अहमदाबाद प्लेन क्रैश में जले शवों की पहचान
इस पूरी प्रक्रिया में सबसे दर्दनाक था बच्चों के शवों की पहचान.

Ahmedabad Plane Crash: 12 जून 2025 को अहमदाबाद में हुए भीषण हादसे ने सभी को हिलाकर रख दिया. हादसे में आग लगने से बॉडी जल चुकीं थीं. शवों की हालत ऐसी थी कि पहचान करना तकरीबन नामुमकिन हो गया था. हादसे के बाद शवों की पहचान के लिए डीएनए टेस्ट (DNA Test) करवाया गया. इस काम में दांतों ने मेन रोल प्ले किया. 

डॉ. तमन्ना परमार, जो पेरियोडोंटिस्ट और प्लास्टिक इम्प्लांट सर्जन हैं, ने द क्विंट को बताया, “नकली अंग पिघल सकते हैं, मांस जल जाता है, मगर दांत और हड्डियां आखिरी तक टिके रहते हैं.”

उनके मुताबिक, आग से बची चीजों में सबसे मजबूत दांत होते हैं. जिनसे डीएनए की जांच की जा सकती है. यही वजह थी कि हादसे के बाद डॉक्टरों की टीम ने मिलकर एक-एक जले हुए शव से डीएनए के लिए दांत और हड्डियों के सैंपल लिए.

"सिर्फ कुछ ही अंग बचे थे"

डॉक्टर ने बताया, "कई शव ऐसे थे जिनमें सिर्फ कुछ ही अंग बचे थे. एक शरीर का बस एक पैर और पेल्विक बोन मिली थी, उस पर एल्युमिनियम का टुकड़ा चिपका था. एक और शव में डॉक्टरों ने देखा कि शरीर पर एक क्राउन लगा हुआ था."

सबसे दर्दनाक था बच्चों के शवों की पहचान

इस पूरी प्रक्रिया में सबसे दर्दनाक था बच्चों के शवों की पहचान. डॉक्टर परमार ने बताया कि कई बच्चे भी थे. “एक बच्चा सिर्फ चार साल का था. हम ये इसलिए जान पाए क्योंकि उसके मुंह में E2 तक के दूध के दांत थे, जो इस उम्र में निकल आते हैं.”

पोस्टमार्टम सेंटर पूरी तरह भर गया

जब पोस्टमार्टम सेंटर पूरी तरह भर गया, तो नजदीकी टीकाकरण केंद्र को शवों के लिए इस्तेमाल किया गया. वहां डॉक्टरों ने गहनों से पहचान की कोशिश की. एक छह फुट लंबे विदेशी व्यक्ति के पास "गाजा" लिखा हुआ ब्रेसलेट मिला. यह भी एक पहचान का जरिया बना.

डॉक्टरों के लिए मानसिक तनाव

इन हालातों में काम कर रहे डॉक्टरों के लिए मानसिक तनाव कम नहीं था. जब पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर बाहर आए, तो उन्होंने परिजनों से नजरें चुरा लीं. परमार कहती हैं, "अगर हम आंखों में आंखें डालते, तो सवाल पूछे जाते और हमारे पास जवाब नहीं थे."

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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