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अभिषेक बच्चन की फिल्म 'आई वांट टू टॉक' की हो रही खूब तारीफ, लैरिंजीयल कैंसर पीड़ित का जिया किरदार, जानें इस कैंसर के बारे में सब कुछ

फिल्म है 'आई वांट टू टॉक' (I Want to Talk) में अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) ने अर्जुन सेन के किरदार को जीवंत किया है. इस फिल्म में अर्जुन को लैरिंजीयल कैंसर हो जाता है, जो एक दुर्लभ और गंभीर बीमारी है.

अभिषेक बच्चन की फिल्म 'आई वांट टू टॉक' की हो रही खूब तारीफ, लैरिंजीयल कैंसर पीड़ित का जिया किरदार, जानें इस कैंसर के बारे में सब कुछ
फिल्म में अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) ने अर्जुन सेन के किरदार को जीवंत किया है.

फिल्म इंडस्ट्री में हर साल कई नई फिल्में आती हैं, लेकिन कुछ फिल्मों में ऐसी विशिष्टता होती है जो दर्शकों के दिलों को छू जाती है. ऐसी ही एक फिल्म है 'आई वांट टू टॉक' (I Want to Talk), जिसमें अभिषेक बच्चन ने अर्जुन सेन के किरदार को जीवंत किया है. इस फिल्म में अर्जुन को लैरिंजीयल कैंसर (Laryngeal Cancer) हो जाता है, जो एक दुर्लभ और गंभीर बीमारी है. इस फिल्म की तारीफ सिर्फ उसके अद्भुत अभिनय के लिए ही नहीं हो रही, बल्कि इसके द्वारा दर्शाए गए समाजिक और मानसिक पहलुओं के लिए भी की जा रही है.

'आई वांट टू टॉक' केवल एक फिल्म नहीं है, बल्कि यह एक प्रेरणादायक कहानी है, जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करती है. अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) का अभिनय, फिल्म का संदेश और इसने जो सामाजिक मुद्दा उठाया है, वह निश्चित रूप से तारीफ के काबिल है. इस फिल्म के जरिए यह साबित हो जाता है कि आवाज केवल शब्दों तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह एक मानसिक और भावनात्मक शक्ति का प्रतीक है, जो किसी भी बीमारी को मात दे सकती है.

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'आई वांट टू टॉक' फिल्म की कहानी

कहानी है अर्जुन सेन की. कैलिफोर्निया की मार्केटिंग की दुनिया में अर्जुन परचम लहरा रहा है. प्रोफेशनल लाइफ में कामयाब अर्जुन शादी के मामले में उतना खुशकिस्मत साबित नहीं है. पत्नी से अलगाव हो चुका है और बेटी रेहा मंगलवार, गुरुवार और हर दूसरे वीकेंड पर पिता के साथ रहती है. एक दिन ऑफिस की मीटिंग के दौरान अर्जुन को खांसी आती है और मुंह से खून आने लगता है. अस्पताल ले जाने के बाद पता चलता है कि उन्हें लैरिंजीयल कैंसर है और उसकी जिंदगी के सिर्फ 100 दिन बचे हैं.

अब तक अर्जुन को यह अहसास भी हो चुका है कि उसकी बेटी भी उसके करीब नहीं है. उसकी नौकरी छूट जाती है. बोलने और हाजिर जवाबी में माहिर अर्जुन अब शायद कभी न बोल पाए, मगर जीवन के इस सबसे दर्दनाक समय में अर्जुन जीवन जीतने के युद्ध में उतर पड़ता है. हालांकि बीच में एक बार वह अपनी जान लेने की भी सोचता हैं, मगर एक-दो नहीं बल्कि पूरी बीस सर्जरी से गुजरने वाला जुझारू अर्जुन अपनी बेटी के साथ अपने रिश्ते को बेहतर बनाता है. इस सिलसिले में उसका नीरस जीवन, नौकरी खोना, अस्पताल के लंबे-लंबे बिल, घर चलाना, लगातार सिर पर लटकती मौत की तलवार से जूझना जैसे कई पड़ाव आते हैं.

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हाल ही में सुजीत सरकार ने इंस्टाग्राम पर एक विडियो शेयर किया है जिसमें वह अभिषेक बच्चन से कुछ अग्रेजी के लेटर बुलवाते हैं और अभिषेक बोलने की कोशिश करते हैं. यहां देखें वीडियो...

लैरिंजीयल कैंसर क्या है? | What Is Laryngeal Cancer?

लैरिंजीयल कैंसर गले के हिस्से में होने वाला एक प्रकार का कैंसर है, जो लैरिंक्स (Larynx) में विकसित होता है. स्वरयंत्र वह अंग होता है जो हमारी आवाज बनाने में मदद करता है और हमारे गले के पीछे स्थित होता है. लैरिंजीयल कैंसर तब होता है जब लैरिंक्स में असामान्य कोशिकाएं बढ़ने लगती हैं और ये कैंसर में बदल जाती हैं.

लैरिंजीयल कैंसर के सामान्य लक्षणों में आवाज का फूटना, गले में सूजन, निगलने में दिक्कत, खांसी या खून आना शामिल हो सकते हैं. यह बीमारी मुख्यतः धूम्रपान, शराब के बहुत सेवन और कभी-कभी अनुवांशिक कारणों से होती है. हालांकि, अगर इसका इलाज समय पर किया जाए, तो इसे कंट्रोल किया जा सकता है.

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लैरिंजीयल कैंसर के कारण | Causes of Laryngeal Cancer

धूम्रपान और तंबाकू का सेवन: यह कैंसर के सबसे प्रमुख कारणों में से एक है. धूम्रपान और तंबाकू का सेवन लारिंक्स (गला) की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है और कैंसर का कारण बन सकता है.

शराब का बहुत ज्यादा सेवन: शराब का ज्यादा सेवन भी लैरिंजीयल कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकता है. यह गले की कोशिकाओं में सूजन और परिवर्तन का कारण बन सकता है.

एचपीवी इंफेक्शन: मानव पैपिलोमावायरस (HPV) वायरस से संक्रमण भी गले के कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है. खासकर HPV-16 प्रकार का वायरस.

उम्र: लैरिंजीयल कैंसर आमतौर पर 50 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र के लोगों में अधिक देखा जाता है.

आनुवंशिकता: कुछ मामलों में लैरिंजीयल कैंसर पारिवारिक इतिहास के कारण पैदा हो सकता है.

लैरिंजीयल कैंसर के लक्षण | Symptoms of Laryngeal Cancer

स्वर में बदलाव: आवाज में कमजोरी या आवाज की टूट-फूट, जो कुछ समय तक बनी रहती है, यह एक प्रमुख लक्षण हो सकता है.
गले में दर्द या जलन: गले में लगातार दर्द या जलन महसूस हो सकता है.
गले में गांठ या सूजन: गले में गांठ या सूजन का अनुभव हो सकता है, जिससे निगलने में कठिनाई हो सकती है.
खांसी या खांसी में खून आना: कभी-कभी खांसी के दौरान खून आ सकता है.
सांस लेने में कठिनाई: गले में ट्यूमर के कारण सांस लेने में परेशानी हो सकती है.

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लैरिंजीयल कैंसर को कैसे डायग्नोस किया जाता है? | How Is Laryngeal Cancer Diagnosed?

  • फिजिकल टेस्ट: डॉक्टर गले, मुंह और गले के अन्य हिस्सों का टेस्ट करता है.
  • लैरिंक्स का निरीक्षण: लैरिंक्स की आंतरिक जांच के लिए डॉक्टर एक विशेष उपकरण (laryngoscope) का उपयोग कर सकता है.
  • बायोप्सी: गले में पाए गए असामान्य ट्यूमर या गांठ से कोशिकाएं निकाल कर बायोप्सी की जाती है ताकि कैंसर की पुष्टि की जा सके.
  • इमेजिंग परीक्षण: जैसे कि CT स्कैन, MRI या PET स्कैन से कैंसर के फैलने की स्थिति का पता चल सकता है.

लैरिंजीयल कैंसर का ट्रीटमेंट | Treatment of Laryngeal Cancer

सर्जरी: छोटे ट्यूमर के मामलों में सर्जरी द्वारा ट्यूमर को निकाल दिया जाता है। कुछ मामलों में, गले के कुछ हिस्सों को हटाना भी पड़ सकता है.

कीमोथेरेपी: कीमोथेरेपी में कैंसर सेल्स को मारने के लिए खास दवाएं दी जाती हैं. यह ट्रीटमेंट ट्यूमर को सिकोड़ने में मदद करता है और सर्जरी के बाद कैंसर के पुनरावृत्ति को रोक सकता है.
रेडियेशन थेरेपी: रेडियेशन थेरेपी में हाई एनर्जी का उपयोग ट्यूमर को नष्ट करने के लिए किया जाता है. यह ट्रीटमेंट सर्जरी से पहले या बाद में किया जा सकता है.
इम्यूनोथेरेपी: यह एक नया ट्रीटमेंट है जो शरीर की इम्यून सिस्टम को कैंसर सेल्स के खिलाफ लड़ने के लिए उत्तेजित करता है.

फिल्म में अभिषेक बच्चन का किरदार अर्जुन सेन

फिल्म 'आई वांट टू टॉक' में अभिषेक बच्चन ने अर्जुन सेन का किरदार निभाया है. उसकी जिंदगी में एक जबरदस्त मोड़ आता है जब उसे लैरिंजीयल कैंसर का पता चलता है. यह कहानी इस संघर्ष की है कि कैसे वह अपने आत्मविश्वास को बनाए रखते हुए अपनी बीमारी से लड़ता है और समाज में अपनी आवाज की शक्ति को फिर से प्राप्त करने की कोशिश करता है.

अभिषेक बच्चन ने इस किरदार को बेहद संवेदनशीलता और गहराई से निभाया है और उनके अभिनय ने फिल्म को एक नई पहचान दी है. अर्जुन सेन का किरदार एक ऐसे व्यक्ति का है, जो अपनी आवाज खोने के बाद भी अपनी जिदगी को नये तरीके से जीने की कोशिश करता है. फिल्म में यह दिखाया गया है कि कैसे शारीरिक रूप से कमजोर होने के बावजूद एक व्यक्ति मानसिक दृढ़ता से अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है.

फिल्म की तारीफ क्यों हो रही है?

संवेदनशील विषय: फिल्म ने लैरिंजीयल कैंसर जैसे गंभीर और संवेदनशील विषय को बड़े पर्दे पर उठाया है, जो बहुत कम फिल्मों में देखने को मिलता है. इसने न केवल कैंसर से जूझ रहे लोगों की कहानी को उजागर किया, बल्कि इसके साथ ही मानसिक और शारीरिक संघर्ष को भी बड़े तरीके से दर्शाया है.

अभिषेक बच्चन का अद्भुत अभिनय: अभिषेक बच्चन का अभिनय इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है. उन्होंने अर्जुन सेन के किरदार को अपनी पूरी भावनाओं के साथ निभाया है. उनकी शारीरिक मुद्रा, चेहरे के हाव-भाव और संवादों के बीच का गहरा भावनात्मक संबंध, दर्शकों को एक नई दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करता है.

सकारात्मक संदेश: इस फिल्म का संदेश साफ है. बीमारी चाहे कैसी भी हो, अगर मानसिक स्थिति मजबूत हो, तो हर चुनौती का सामना किया जा सकता है. यह फिल्म लोगों को उम्मीद और प्रेरणा देती है कि जीवन में कठिनाइयों के बावजूद हार मानने के बजाय उसे चुनौती के रूप में स्वीकार करना चाहिए.

समाज के प्रति जागरूकता: फिल्म लैरिंजीयल कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाती है और इसे इलाज के योग्य एक गंभीर बीमारी के रूप में प्रस्तुत करती है. इसने लोगों को इस बीमारी के लक्षण और उपायों के बारे में ज्यादा जानकारी देने की कोशिश की है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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