
नवरात्रि, जिसका मतलब (अर्थ) होता है “नौ रातें”, हिंदू धर्म का खास त्यौहार है. इसे साल में दो बार बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. सबसे ज्यादा मनाई जाने वाली नवरात्रि अक्टूबर-नवंबर में आती है और इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है, जो शरद ऋतु के आगमन का प्रतीक है. दोनों नवरात्रि के दौरान उपवास, पूजा-पाठ, नृत्य और मंदिरों व घरों में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं. आइए समझते हैं कि चैत्र और शारदीय नवरात्रि के बीच मुख्य अंतर क्या है.
चैत्र नवरात्रि- (वसंत नवरात्रि)
चैत्र नवरात्रि, जिसे वसंत नवरात्रि भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के हिसाब से चैत्र महीने (मार्च या अप्रैल) में मनाई जाती है. यह वसंत ऋतु की शुरुआत का संकेत देती है और नए जीवन, उर्वरता और नई शुरुआत का प्रतीक है. चैत्र नवरात्रि शारदीय नवरात्रि जैसी ही है, लेकिन इसका अपना खास सांस्कृतिक और क्षेत्रीय महत्व होता है. इस नवरात्रि का समापन राम नवमी से होता है, जो भगवान राम का जन्मदिन है, और इससे उत्सव में भक्ति का एक विशेष रंग जुड़ जाता है.
चैत्र नवरात्रि में खाए जाने वाले फूड्स-
इस समय मौसम गर्मी की ओर बढ़ रहा होता है, इसलिए चैत्र नवरात्री में हल्के और ठंडक देने वाले व्यंजन बनाए जाते हैं. जिनमें आमतौर पर शामिल होते हैं-
- समक के चावल की खिचड़ी या पूड़ी
- साबूदाना खिचड़ी/वड़ा
- कुट्टू/सिंघाड़े के आटे की रोटी
- दही और फल
- ठंडाई या शीतल पेय

शारदीय नवरात्रि- (अश्विन नवरात्रि)
दोनों में शारदीय नवरात्रि ज्यादा लोकप्रिय है. यह आश्विन महीने (सितंबर-अक्टूबर) में आती है और शरद ऋतु की शुरुआत का संकेत देती है. यह नवरात्रि देवी दुर्गा द्वारा राक्षस महिषासुर के वध करने की याद में मनाई जाती है. दसवां दिन विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है, यही वह दिन है जब भगवान राम ने रावण पर विजय पाई और माता सीता को वापस पाया.
शारदीय नवरात्रि में खाए जाने वाले फूड्स-
इस समय शरद ऋतु और त्योहारों का मौसम होता है, इसलिए इसके व्यंजन भी थोड़े अलग होते हैं. जिनमें आमतौर पर शामिल होते हैं-
- कुट्टू/राजगिरा आटे की पूरी या पकौड़े
- अरबी, कद्दू, शकरकंद जैसी सब्जियां
- साबूदाना खिचड़ी/थालीपीठ
- मखाने की खीर या सूखे मेवे से बनी मिठाई
- फल और दूध से बने व्यंजन
- हलवा
मुख्य अंतर-
नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के बीच सबसे बड़ा अंतर उनका समय और ऋतु (मौसम) है. शारदीय नवरात्रि शरद ऋतु में आती है, जबकि चैत्र नवरात्रि वसंत ऋतु के आगमन के साथ मनाई जाती है. हर ऋतु का अपना प्रतीक और महत्व होता है, जैसे शरद ऋतु फसल और समृद्धि का संकेत देती है, जबकि वसंत ऋतु नए जीवन और विकास का प्रतीक है. इसी वजह से, हर नवरात्रि के रीति-रिवाज और परंपराएं उस ऋतु के अनुसार भिन्न होती हैं.
क्षेत्रीय महत्व-
दोनों नवरात्रियों में व्रत, पूजा और प्रार्थना जैसी सामान्य परंपराएं तो होती हैं, लेकिन इनके सांस्कृतिक रीति-रिवाज अलग-अलग हैं. शारदीय नवरात्रि में पूरे भारत में लोग गरबा और डांडिया जैसे सांस्कृतिक नृत्य में भाग लेते हैं. वहीं, चैत्र नवरात्रि में भक्त विशेष पूजा-अर्चना और देवी दुर्गा से जुड़े पवित्र स्थलों की यात्रा करते हैं, जो क्षेत्रीय परंपराओं के अनुसार बदलती हैं.
नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि में एक और बड़ा अंतर है, इन्हें मनाने के क्षेत्रीय तरीके. शारदीय नवरात्रि पूरे भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है, जबकि चैत्र नवरात्रि कुछ विशेष क्षेत्रों, खासकर उत्तर भारत में ज्यादा महत्व रखती है. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में भक्त देवी दुर्गा के मंदिरों में जाकर उनकी पूजा करते हैं और अच्छी फसल और समृद्धि की कामना करते हैं.
दोनों नवरात्रियों का उद्देश्य समान है, देवी दुर्गा की आराधना करना और जीवन में शक्ति, समृद्धि व सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत करना. मौसम और समय के अनुसार इनका स्वरूप भले अलग हो, लेकिन श्रद्धा और उत्साह हमेशा समान रहता है.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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