अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और जंक फूड डायबिटीज और मोटापे समेत लाइफस्टाइल से जुड़ी कई स्वास्थ्य समस्याओं के लिए जिम्मेदार हैं. एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे फूड के विज्ञापन भी हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं. न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (एनएपीआई) द्वारा जारी रिपोर्ट, '50 शेड्स ऑफ फूड एडवरटाइजिंग' में पाया गया है कि ज्यादा नमक (एचएफएसएस) फूड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड (यूपीएफ) भ्रामक हैं और "मोहक, लुभाने वाले" हो सकते हैं.
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रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे "अनहेल्दी" फूड प्रोडक्ट का विज्ञापन "इमोशनल फिलिंग को जगाने, एक्सपर्ट के उपयोग में हेरफेर, वास्तविक फलों के लाभों को न बताने, ब्रांड में प्राइज एड करने के लिए पॉपुलर सेलिब्रिटी का उपयोग करने, हेल्दी दिखाने आदि" के लिए किया जा रहा है.
आईएएनएस की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये निष्कर्ष दिल्ली में उपलब्ध लोकप्रिय अंग्रेजी और हिंदी समाचार पत्रों में छपे फूड प्रोडक्ट के 50 विज्ञापनों में अपील के एक अवलोकन अध्ययन के आधार पर निकाले गए हैं और टीवी विज्ञापनों में दिखाई देने वाले कुछ विज्ञापनों पर भी ध्यान दिया गया है.
NAPI के संयोजक और बाल रोग विशेषज्ञ अरुण गुप्ता ने रिपोर्ट पेश करते हुए इन भ्रामक फूड विज्ञापनों को समाप्त करने के लिए मौजूदा नियमों में संशोधन की अपील की. उन्होंने "हर विज्ञापन में प्रति 100 ग्राम/मिलीलीटर चिंता वाले पोषक तत्व की मात्रा को मोटे अक्षरों में दिखाने" जैसे उपायों की अपील की है.
बता दें कि इस साल की शुरुआत में आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआईएन) द्वारा भारतीयों के लिए जारी 2024 डाइट गाइडलाइन में कहा गया है कि पांच से 10 साल की उम्र के 10 प्रतिशत से अधिक बच्चे प्रीडायबिटीज से पीड़ित हैं.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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