
Why Masoor Dal Considered As Non Veg: हमारे समाज में भोजन से जुड़ी कई धारणाएं और मान्यताएं चली आ रही हैं. खासकर हिन्दू धर्म में, जहां वेज भोजन को सबसे अच्छा माना जाता है, वहां कुछ खास खाद्य पदार्थों को मांसाहार के जैसे भी माना जाता है. इनमें से एक है लाल मसूर की दाल, जिसे वेजिटेरियन लोगों के बीच भी तामसिक भोजन माना जाता है. आम तौर पर हम समझते हैं कि दाल, चावल, सब्जी और चपाती वेजिटेरियन फूड होते हैं, लेकिन यह जानकर चौंकना नेचुरल है कि एक दाल, जो नॉर्मली वेजिटेरियन भोजन में आती है, उसे नॉन वेजिटेरियन माना जाता है. इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि क्यों लाल मसूर की दाल को मांसाहारी और तामसिक माना जाता है और इसके पीछे की धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं क्या हैं.
मसूर की दाल को क्यों मांसाहार में गिना जाता है? (Why Masoor Dal Considered As Non Veg)
लाल मसूर की दाल का धार्मिक महत्व-
हिन्दू धर्म में, खासकर वैष्णव पद्धति से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार, लाल मसूर की दाल को शाकाहारी नहीं माना जाता. दरअसल, इसे तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा गया है. तामसिक भोजन वह होता है, जो मानसिक स्थिति को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, जैसे गुस्से और डिप्रेशन को बढ़ावा देना. इसे इसलिए मांसाहारी जैसा माना जाता है, क्योंकि यह शरीर और मन पर वही प्रभाव डालता है, जो मांसाहार का होता है.
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अफवाह और कामधेनु गाय से संबंध-
लाल मसूर की दाल से जुड़ी एक महत्वपूर्ण अफवाह भी है, जो इसे मांसाहार से जोड़ती है. यह अफवाह बताती है कि इस दाल का पौधा उस स्थान पर उगा था, जहां दिव्य गाय कामधेनु का खून गिरा था. कामधेनु गाय को हिन्दू धर्म में एक दिव्य और श्रद्धेय प्राणी माना जाता है. इसे किसी भी प्रकार की इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति प्राप्त है. किंवदंती के अनुसार, राजा सहस्त्रबाहु ने ऋषि जमदग्नि के आश्रम से कामधेनु गाय को चुराने की कोशिश की और इस संघर्ष में कामधेनु गाय का रक्त जमीन पर गिरा, जिससे लाल मसूर दाल के पौधे का उदय हुआ. इस कारण से यह दाल तामसिक भोजन के रूप में देखी जाती है.
राहु के रक्त से उत्पत्ति की मान्यता-
एक और मान्यता के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने दैत्य स्वरभानु का सिर काटा, तो उसका सिर राहु बन गया और धड़ केतु. ऐसा कहा जाता है कि राहु के मस्तक से जो रक्त गिरा, उसी से लाल मसूर की दाल उत्पन्न हुई. इसलिए, इस दाल को मांसाहार के समान माना जाता है. यह धार्मिक दृष्टिकोण इस दाल को तामसिक और निषेधनीय मानता है, खासकर उन लोगों के लिए जो वैष्णव धर्म का पालन करते हैं.
हाई प्रोटीन सामग्री और उसका प्रभाव-
लाल मसूर की दाल को हाई प्रोटीन स्रोत माना जाता है और इसके पोषण संबंधी प्रभाव मांसाहार के समान माने जाते हैं. प्रोटीन की हाई मात्रा के कारण यह शरीर में ऊर्जा और शक्ति का संचार करती है, लेकिन यह मन को एक्साइट भी कर सकती है. माना जाता है कि लाल मसूर की दाल खाने से मानसिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जैसे गुस्सा और एक्साइटमेंट की फीलिंग्स उत्पन्न होती है. इस कारण साधु-संत और ब्राह्मण इस दाल को अपने आहार में शामिल नहीं करते, क्योंकि यह उनकी मानसिक और शारीरिक शुद्धता के लिए ठीक नहीं मानी जाती.
तंत्र-मंत्र और काली पूजा में इस्तेमाल-
लाल मसूर की दाल का एक और पहलू है, जो इसे तामसिक भोजन के रूप में साबित करता है. तंत्र-मंत्र और काली पूजा जैसे अनुष्ठानों में इसका विशेष रूप से इस्तेमाल किया जाता है. हिन्दू धार्मिक रीति-रिवाजों में काली देवी को लाल मसूर दाल चढ़ाने की परंपरा है और इसे तामसिक गुणों से जोड़ा जाता है. यह माना जाता है कि तंत्र-मंत्र के दौरान, जहां मांसाहार का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, वहां लाल मसूर दाल और इससे बने व्यंजन मांसाहार के विकल्प के रूप में प्रयोग किए जाते हैं.
क्यों नहीं खाते साधु-संत?
साधु-संत और ब्राह्मण, जो शाकाहारी भोजन का पालन करते हैं, उनके लिए यह दाल निषेध है. यह इसलिए कि लाल मसूर की दाल के सेवन से शरीर में तामसिक गुणों का प्रभाव पड़ता है, जो मानसिक शांति और साधना के लिए अनुकूल नहीं होते. इसके अलावा, इसका सेवन मेंटल इंस्टेब्लिटी, गुस्सा और अन्य नकारात्मक भावनाओं को बढ़ा सकता है, जो साधना और ध्यान के लिए हानिकारक हो सकते हैं.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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