
नई दिल्ली:
देश के कुछ राज्यों में जबसे शराब पर बैन लगाई गई है, तभी से लोगों में यह चर्चा का मुख्य टॉपिक है। शराब बंदी पर छिड़ी बहस के बीच इंडियास्पेंड ने खुलासा किया है कि भारत में शराब पीने के प्रभावों से प्रतिदिन 15 लोगों या हर 96 मिनट में एक व्यक्ति की मौत हो रही है। इंडिया स्पेंड ने यह खुलासा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर किया है।
भारत में प्रति व्यक्ति शराब के उपभोग में 38 प्रतिशत वृद्धि हुई, जो 2003-05 में 1.6 से बढ़कर 2010-12 में 2.2 लीटर प्रति व्यक्ति हो गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपॉर्ट में भी यह खुलासा किया गया है कि भारत में 11 प्रतिशत से अधिक लोग शराबी हो गए थे, जबकि अंतर्राष्ट्रीय औसत 16 प्रतिशत है। आंकड़े बताते हैं कि शराब के खिलाफ बड़े पैमाने पर राजनीतिक समर्थन मिले। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि शराब एक स्वास्थ्य समस्या है न कि नैतिक।
तमिलनाडु में चौथी बार मुख्यमंत्री के रूप में कार्य शुरू करने के पहले दिन जे. जयललिता ने 23 को करीब 500 से अधिक शराब की दुकानें बंद कर दीं। इस साल अप्रैल में बिहार में शराब के उत्पादन, बिक्री और उपभोग पर भी रोक लगा दी गई है। केरल में भी अगस्त, 2014 में शराब की बिक्री सिर्फ पांच तारा होटलों तक सीमित कर दी गई थी।
हाल ही में हुई शराबबंदी से पहले, भारत में गुजरात और नगालैंड ही ऐसे राज्य थे, जहां शराब के लिए निषेध लागू था। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार शराब के प्रभावों से सबसे अधिक मौतें महाराष्ट्र में होती हैं। मध्य प्रदेश और तमिलनाडु, दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। तमिलनाडु के संगठन मक्काल अधिकारम (लोक शक्ति) के एस. राजू ने बताया कि “बड़े अपराध और दुर्घटनाएं शराब के कारण होती हैं। यह डकैती और महिलाओं के यौन उत्पीड़न के लिए भी जिम्मेदार है”। उन्होंने कहा कि शराब के कारण तमिलनाडु में सबसे अधिक तीस साल से कम उम्र की विधवाएं हैं।
सन 2014 में जहरीली शराब पीने से प्रतिदिन पांच लोगों की मौत होती थी। वहीं, मालवानी और मुंबई में 2015 में अवैध शराब पीने से करीब 100 लोगों की मौत हो गई थी। जहरीली शराब पीने से 2014 में 1699 लोगों की मौत हुई थी, जो 2013 में 387 लोगों की हुई मौत की तुलना में 339 प्रतिशत ज़्यादा है।
हालांकि लंदन स्कूल ऑफ हाईजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रमुख लोक स्वाथ्य विशेषज्ञ विक्रम पटेल ने इस बात पर जोर दिया था कि निषेध से शराब की लत और मौतें कम नहीं हो सकती हैं।
नोटः 2014 से शराब के कारण हुई मौत के आंकड़े नहीं दिए जाते हैं, इसलिएयह रिपॉर्ट 2013 के आंकड़ों के आधार पर बनाई गई है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
भारत में प्रति व्यक्ति शराब के उपभोग में 38 प्रतिशत वृद्धि हुई, जो 2003-05 में 1.6 से बढ़कर 2010-12 में 2.2 लीटर प्रति व्यक्ति हो गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपॉर्ट में भी यह खुलासा किया गया है कि भारत में 11 प्रतिशत से अधिक लोग शराबी हो गए थे, जबकि अंतर्राष्ट्रीय औसत 16 प्रतिशत है। आंकड़े बताते हैं कि शराब के खिलाफ बड़े पैमाने पर राजनीतिक समर्थन मिले। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि शराब एक स्वास्थ्य समस्या है न कि नैतिक।
तमिलनाडु में चौथी बार मुख्यमंत्री के रूप में कार्य शुरू करने के पहले दिन जे. जयललिता ने 23 को करीब 500 से अधिक शराब की दुकानें बंद कर दीं। इस साल अप्रैल में बिहार में शराब के उत्पादन, बिक्री और उपभोग पर भी रोक लगा दी गई है। केरल में भी अगस्त, 2014 में शराब की बिक्री सिर्फ पांच तारा होटलों तक सीमित कर दी गई थी।
हाल ही में हुई शराबबंदी से पहले, भारत में गुजरात और नगालैंड ही ऐसे राज्य थे, जहां शराब के लिए निषेध लागू था। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार शराब के प्रभावों से सबसे अधिक मौतें महाराष्ट्र में होती हैं। मध्य प्रदेश और तमिलनाडु, दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। तमिलनाडु के संगठन मक्काल अधिकारम (लोक शक्ति) के एस. राजू ने बताया कि “बड़े अपराध और दुर्घटनाएं शराब के कारण होती हैं। यह डकैती और महिलाओं के यौन उत्पीड़न के लिए भी जिम्मेदार है”। उन्होंने कहा कि शराब के कारण तमिलनाडु में सबसे अधिक तीस साल से कम उम्र की विधवाएं हैं।
सन 2014 में जहरीली शराब पीने से प्रतिदिन पांच लोगों की मौत होती थी। वहीं, मालवानी और मुंबई में 2015 में अवैध शराब पीने से करीब 100 लोगों की मौत हो गई थी। जहरीली शराब पीने से 2014 में 1699 लोगों की मौत हुई थी, जो 2013 में 387 लोगों की हुई मौत की तुलना में 339 प्रतिशत ज़्यादा है।
हालांकि लंदन स्कूल ऑफ हाईजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रमुख लोक स्वाथ्य विशेषज्ञ विक्रम पटेल ने इस बात पर जोर दिया था कि निषेध से शराब की लत और मौतें कम नहीं हो सकती हैं।
नोटः 2014 से शराब के कारण हुई मौत के आंकड़े नहीं दिए जाते हैं, इसलिएयह रिपॉर्ट 2013 के आंकड़ों के आधार पर बनाई गई है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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