
मुंबई की एक सत्र अदालत ने कहा कि साल 2002 के हिट एंड रन मामले में बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान के खिलाफ आईपीसी के तहत गैर इरादतन हत्या का मामला बनता है और उन्होंने यह आरोप लगाने वाले मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी अपील को खारिज कर दिया।
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नई दिल्ली:
मुंबई की एक सत्र अदालत ने कहा कि साल 2002 के हिट एंड रन मामले में बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान के खिलाफ आईपीसी के तहत गैर इरादतन हत्या का मामला बनता है और उन्होंने यह आरोप लगाने वाले मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी अपील को खारिज कर दिया।
खुली अदालत में फैसला लिखवाते हुए सत्र न्यायाधीश यूबी हेजिब ने कहा कि सलमान को गैर इरादतन हत्या के आरोपों का सामना करना चाहिए।
उन आरोपों के तहत अभिनेता को 10 साल तक के कारावास की सजा हो सकती है और इसपर सत्र अदालत मुकदमा चला सकती है।
सलमान के खिलाफ इससे पहले लापरवाही से मौत (आईपीसी की धारा 304 ए) के तहत हल्के आरोप के लिए मजिस्ट्रेट ने मुकदमा चलाया था। उसके तहत अधिकतम दो साल के कारावास का प्रावधान है।
हालांकि, मामले में नया मोड़ लाते हुए बांद्रा के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने 17 गवाहों का परीक्षण करने के बाद 47 वर्षीय अभिनेता के खिलाफ गैर इरादतन हत्या के अधिक गंभीर आरोप लगाए थे और इसे दोबारा मुकदमा चलाने के लिए सत्र अदालत के पास भेज दिया था।
गैर इरादतन हत्या के गंभीर आरोप (आईपीसी की धारा 304 भाग 2) लगाने के खिलाफ दलील देते हुए उनके वकील अशोक मुंदारगी ने कहा कि मजिस्ट्रेट का आदेश ‘त्रुटिपूर्ण, कानूनन गलत और रिकार्ड में दर्ज सबूतों के विपरीत’ था।
खुली अदालत में फैसला लिखवाते हुए सत्र न्यायाधीश यूबी हेजिब ने कहा कि सलमान को गैर इरादतन हत्या के आरोपों का सामना करना चाहिए।
उन आरोपों के तहत अभिनेता को 10 साल तक के कारावास की सजा हो सकती है और इसपर सत्र अदालत मुकदमा चला सकती है।
सलमान के खिलाफ इससे पहले लापरवाही से मौत (आईपीसी की धारा 304 ए) के तहत हल्के आरोप के लिए मजिस्ट्रेट ने मुकदमा चलाया था। उसके तहत अधिकतम दो साल के कारावास का प्रावधान है।
हालांकि, मामले में नया मोड़ लाते हुए बांद्रा के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने 17 गवाहों का परीक्षण करने के बाद 47 वर्षीय अभिनेता के खिलाफ गैर इरादतन हत्या के अधिक गंभीर आरोप लगाए थे और इसे दोबारा मुकदमा चलाने के लिए सत्र अदालत के पास भेज दिया था।
गैर इरादतन हत्या के गंभीर आरोप (आईपीसी की धारा 304 भाग 2) लगाने के खिलाफ दलील देते हुए उनके वकील अशोक मुंदारगी ने कहा कि मजिस्ट्रेट का आदेश ‘त्रुटिपूर्ण, कानूनन गलत और रिकार्ड में दर्ज सबूतों के विपरीत’ था।
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