फिल्म के दृश्य से ली गई तस्वीर...
मुंबई:
फिल्म 'बार-बार देखो' की कहानी एक प्रेमी जोड़े जय वर्मा और दीया कपूर की है. ये आज के युवा हैं पर दोनों के विचार थोड़े अलग हैं. एक तरफ जय अपने करियर के अलावा किसी चीज़ को महत्व नहीं देता तो दूसरी तरफ दीया करियर के साथ-साथ परिवार, शादी जैसी सभी खुशियों को महत्व देती है.
अचानक शादी से दो दिन पहले नींद में जय अपने भविष्य में चला जाता है, वह बुढ़ापे तक पहुंच जाता है जहां सब उसे बिछड़े हुए नज़र आते हैं. इससे आगे कहानी पर बात करना सही नहीं होगा, क्योंकि कहानी का मजा खत्म हो जाएगा.
इस फिल्म का कॉन्सेप्ट या स्क्रिप्ट सुनने में तो शायद अच्छा लगा हो, लेकिन निर्देशक नित्या मेहरा फिल्म को परदे पर ठीक से नहीं उतार पाए. अगर तकनीकी तौर पर देखें तो कहानी को भविष्य और भूतकाल में दौड़ाने के लिए शायद नित्या की सराहना हो, मगर आम दर्शक को यह सब समझने में समय लगेगा.
फिल्म में मनोरंजन की खासी कमी है। सिद्धार्थ भी इस किरदार में कुछ खास नहीं लगे. निर्माता करण जौहर का हथियार कहे जाने वाले इमोशनल दृश्य भी इक्का-दुक्का हैं और जो हैं वे भी दिल को नहीं छूते.
फिल्म की अच्छाइयों की अगर बात करें तो वह इसका विषय है. फिल्म बताती है कि अगर आप अपने प्रेम के भविष्य को देख लें तो क्या आप अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करेंगे? फिल्म यह भी बताती है कि बैलेंस के बिना कोई भी गणना परफेक्ट नहीं होती. बीता हुआ कल हाथ से निकल गया और आने वाले कल का कुछ पता नहीं कि क्या लेकर आएगा इसलिए आज के पलों को बेहतर बनाओ. कैटरीना कैफ़ अपने रोल में जमी हैं और फिल्म का संगीत रिलीज़ से पहले ही हिट हो चुका है.
एक लव स्टोरी को अलग तरह से बनाने की कोशिश की गई है मगर पटकथा कमज़ोर पड़ गई. 'बार-बार देखो' को आप एक बार देख लें वही फिल्म के लिए काफी होगा. इसलिए इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 2 स्टार.
अचानक शादी से दो दिन पहले नींद में जय अपने भविष्य में चला जाता है, वह बुढ़ापे तक पहुंच जाता है जहां सब उसे बिछड़े हुए नज़र आते हैं. इससे आगे कहानी पर बात करना सही नहीं होगा, क्योंकि कहानी का मजा खत्म हो जाएगा.
इस फिल्म का कॉन्सेप्ट या स्क्रिप्ट सुनने में तो शायद अच्छा लगा हो, लेकिन निर्देशक नित्या मेहरा फिल्म को परदे पर ठीक से नहीं उतार पाए. अगर तकनीकी तौर पर देखें तो कहानी को भविष्य और भूतकाल में दौड़ाने के लिए शायद नित्या की सराहना हो, मगर आम दर्शक को यह सब समझने में समय लगेगा.
फिल्म में मनोरंजन की खासी कमी है। सिद्धार्थ भी इस किरदार में कुछ खास नहीं लगे. निर्माता करण जौहर का हथियार कहे जाने वाले इमोशनल दृश्य भी इक्का-दुक्का हैं और जो हैं वे भी दिल को नहीं छूते.
फिल्म की अच्छाइयों की अगर बात करें तो वह इसका विषय है. फिल्म बताती है कि अगर आप अपने प्रेम के भविष्य को देख लें तो क्या आप अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करेंगे? फिल्म यह भी बताती है कि बैलेंस के बिना कोई भी गणना परफेक्ट नहीं होती. बीता हुआ कल हाथ से निकल गया और आने वाले कल का कुछ पता नहीं कि क्या लेकर आएगा इसलिए आज के पलों को बेहतर बनाओ. कैटरीना कैफ़ अपने रोल में जमी हैं और फिल्म का संगीत रिलीज़ से पहले ही हिट हो चुका है.
एक लव स्टोरी को अलग तरह से बनाने की कोशिश की गई है मगर पटकथा कमज़ोर पड़ गई. 'बार-बार देखो' को आप एक बार देख लें वही फिल्म के लिए काफी होगा. इसलिए इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 2 स्टार.
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