समलैंगिकता अपराध है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 पर आज से सुनवाई, 10 बड़ी बातें

समलैंगिगता को अपराध मानने वाली IPC धारा 377 को अंसवैधानिक करार देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ आज मंगलवार यानी 10 जुलाई मंगलवार से सुनवाई शुरू करेगी

समलैंगिकता अपराध है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 पर आज से सुनवाई, 10 बड़ी बातें

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली: समलैंगिगता को अपराध मानने वाली IPC धारा 377 को अंसवैधानिक करार देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ आज मंगलवार यानी 10 जुलाई मंगलवार से सुनवाई शुरू करेगी. इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की चार हफ्ते के लिए सुनवाई टालने के आग्रह को ठुकरा दिया. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि सुनवाई टाली नहीं जाएगी. बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने 2009 में अपने एक फैसले में कहा था कि आपसी सहमति से समलैंगिकों के बीच बने यौन संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं होंगे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को दरकिनार करते हुए समलैंगिक यौन संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तहत ‘अवैध’ घोषित कर दिया था.

धारा 377 से संबंधित अहम जानकारियां

  1. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इस मामले में सरकार को हलफनामा दाखिल करना है जो इस केस में महत्वपूर्ण हो सकता है. इसलिए केस को चार हफ्ते के लिए टाला जाए. CJI ने केंद्र से कहा कि मंगलवार को याचिकाकर्ता बहस करेंगे. केंद्र उसके बाद कुछ कर सकता है.  

  2. समलैंगिगता को अपराध मानने वाली IPC धारा 377 को अंसवैधानिक करार देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंग्टन आर नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस इंदू मल्होत्रा का संविधान पीठ शामिल हैं, जो ममले की सुनवाई करेंगे. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांग चुका है.  

  3. एक याचिका हमसफर ट्रस्ट की ओर से अशोक राव कवि ने दायर की है जबकि दूसरी याचिका आरिफ जफर ने दायर की है. याचिका में कहा गया है कि धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला दोषपूर्ण है. याचिका में कहा गया है कि निजता के अधिकार के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के धारा 377 के फैसले को उलट दिया गया है. याचिका में हाल के हदिया मामले पर दिए गए फैसले का जिक्र किया गया है जिसमें शादीशुदा या गैर शादीशुदा लोगों को अपना पार्टनर चुनने का अधिकार दिया गया है.

  4. पिछले 23 अप्रैल को द ललित सूरी हॉस्पिटैलिटी ग्रुप के कार्यकारी निदेशक केशव सूरी की याचका पर सुनवाई करते हुए भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था. केशव सूरी ने अपनी याचिका में सेक्सुअल पसंद को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक अधिकार घोषित करने की मांग की है. 

  5. अपनी याचिका में उन्होंने मांग की है कि आपसी सहमति से दो समलैंगिक वयस्कों के बीच यौन संबंध से अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होने के प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट समाप्त करे. सूरी ने वकील मुकुल रोहतगी के माध्यम से यह याचिका दायर की है. याचिका में कहा गया है कि आईपीसी की धारा 377 गैर कानूनी है. 

  6. सूरी ने अपनी याचिका में कहा है कि वह आपसी सहमति से पिछले एक दशक से अपने एक वयस्क सहयोगी के साथ रह रहे हैं और वे देश के समलैंगिक, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर समुदाय के अंग हैं. सूरी ने अपनी याचिका में कहा है कि अपनी यौनिक पसंद की वजह से उन्हें भेदभाव झेलना पड़ रहा है. इस बारे में नवतेज सिंह की भी एक याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. 

  7. याचिका में कहा गया है कि देश में भारी संख्या में लोगों के साथ भेदभाव नहीं होने दिया जा सकता और उनको उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता. सूरी का यह कहना है कि एलजीबीटीक्यू समुदाय के बहिष्कार का मतलब है उनको नौकरी और संपत्ति के निर्माण से दूर रखना है जो उनके स्वास्थ्य के साथ-साथ जीडीपी को प्रभावित करता है. हालांकि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ को भेज चुका है.

  8. जनवरी में समलैंगिकता अपराध है या नहीं?  समलैंगिकों के संबंध बनाने पर IPC 377 के तहत कार्रवाई पर फिर से अपने पहले के आदेश पर फिर से सुप्रीम कोर्ट विचार करने को तैयार हो गया था. मामले को बड़ी बेंच मे भेजा गया था और पांच जजों के पीठ में मामला लंबित है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नाज फाउंडेशन मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है क्योंकि हमे लगता है कि इसमें संवैधानिक मुद्दे जुडे हुए हैं. दो व्यस्कों के बीच शारीरिक संबंध क्या अपराध हैं, इस पर बहस जरूरी है. अपनी इच्छा से किसी को चुनने वालों को भय के माहौल में नहीं रहना चाहिए. कोई भी इच्छा को कानून के चारों तरफ नहीं रह सकता लेकिन सभी को अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार के तहत कानून के दायरे में रहने का अधिकार है. सामाजिक नैतिकता वक्त के साथ बदलती है. इसी तरह कानून भी वक्त के साथ बदलता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखने को कहा था.

  9. टिप्पणियां टिप्पणियां दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में नवतेज सिंह जौहर, सुनील मेहरा, अमन नाथ, रितू डालमिया और आयशा कपूर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को समलैंगिकों के संबंध बनाने पर IPC 377 के कार्रवाई के अपने फैसले पर विचार करने की मांग की है. उनका कहना है कि इसकी वजह से वो डर में जी रहे हैं और ये उनके अधिकारों का हनन करता है. 

  10. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को सुरेश कुमार कौशल बनाम नाज फाउंडेशन मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिकता को अपराध माना था. 2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट ने 1PC 377 को अंसवैधानिक करार दिया था. इस मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी और फिलहाल पांच जजों के सामने क्यूरेटिव बेंच में मामला लंबित है.