तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में समाज सुधारक ईवीआर रामास्वामी 'पेरियार' की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया गया. यह घटना भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के विवादित सोशल मीडिया पोस्ट के कुछ घंटे बाद हुई है. पेरियार की प्रतिमा तिरूपत्तुर निगम कार्यालय के अंदर लगी थी, जिसे रात करीब 9 बजे निशाना बनाया गया. पेरियार की मूर्ति के चश्मे और नाक को नुकसान पहुंचाया गया. मामले में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है. पेरियार ने जस्टिस पार्टी का गठन किया था, जिसका सिद्धान्त रुढ़िवादी हिन्दुत्व का विरोध था. हिन्दी के अनिवार्य शिक्षा का भी उन्होंने घोर विरोध किया था. भारतीय तथा विशेषकर दक्षिण भारतीय समाज के शोषित वर्ग के लोगों की स्थिति सुधारने में इनका नाम सबसे पहले आता है.
9 बातें
ईवीआर रामास्वामी 'पेरियार' का जन्म 17 सितम्बर 1879 को पश्चिमी तमिलनाडु के इरोड में एक हिन्दू परिवार में हुआ था. उनकी स्कूली शिक्षा ज्यादा नहीं हुई और वह अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ गए. वह बचपन से ही उपदशों में कही बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे.
पेरियार वह बाल विवाह, देवदासी प्रथा, स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के पूर्ण विरोधी थे. उन्होंने हिन्दू वर्ण व्यवस्था का भी बहिष्कार किया था. 19 साल की उम्र में उनका विवाह नगम्मल नाम की 13 वर्षीय लड़की से हुआ था.
1904 में पेरियार ने अपने पिता के एक दोस्त के भाई की गिरफ्तारी में मदद की थी. इसके बाद उनके पिता ने उनकी पिटाई की थी. इस कारण उन्होंने घर छोड़ना पड़ा. इसके बाद वह काशी चले गए.
पेरियार ने जब काशी में थे तो उन्होंने नि:शुल्क भोजन में जाने की इच्छा हुई. जब वह वहां गए तो पता चला कि यह सिर्फ ब्राह्मणों के लिए था. इसका उन्हें बहुत दुख हुआ और उन्होंने हिन्दुत्व का विरोध करने की ठान ली. इसके लिए उन्होने किसी और धर्म को नहीं स्वीकारा और वह हमेशा नास्तिक रहे.
इसके बाद वह धीरे-धीरे राजनीति में सक्रिय हुए और 1919 में कांग्रेस की सदस्यता ली. उन्होंने वाईकॉम आन्दोलन का नेतृत्व किया जिसमें मन्दिरों कि ओर जाने वाली सड़कों पर दलितों के चलने की मनाही की रोक हटाने की मांग थी. इस आंदोलन में उनकी पत्नी ने भी उनका साथ दिया.
इसके बाद कांग्रेस के प्रशिक्षण शिविर में ब्राह्मण प्रशिक्षक द्वारा गैर-ब्राह्मण छात्रों के प्रति भेदभाव बरतने के चलते उनका कांग्रेस से मन मुटाव हो गया. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के नेताओं के समक्ष दलितों तथा पीड़ितों के लिए आरक्षण का प्रस्ताव भी रखा जिसे मंजूरी नहीं मिल सकी. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी.
पेरियार ने दलितों के समर्थन में 1925 में एक आंदोलन भी चलाया. सोवियत रूस के दौरे पर जाने पर उन्हें साम्यवाद की सफलता ने बहुत प्रभावित किया. वापस आकर उन्होने आर्थिक नीति को साम्यवादी बनाने की घोषणा की, पर बाद में अपना विचार बदल लिया.
पेरियार ने जस्टिस पार्टी की स्थापना की जिसका उन्होंने नेतृत्व संभाला. बाद में उन्होंने जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविदर कड़गम कर दिया. स्वतंत्रता के बाद उन्होंने अपने से कोई 20 साल छोटी स्त्री से शादी की, जिससे उनके समर्थकों में दरार आ गई. इसके फलस्वरूप डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कळगम) पार्टी का उदय हुआ.
1937 में राजाजी द्वारा तमिलनाडु में आरोपित हिन्दी के अनिवार्य शिक्षा का उन्होंने घोर विरोध किया और बहुत लोकप्रिय हुए. उन्होंने अपने को सत्ता की राजनीति से अलग रखा तथा आजीवन दलितों तथा स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए प्रयास किया.