Vat savitri puja muhurat : कल यानी 3 जून दिन शनिवार को पूर्णिमा वट सावित्री (purnima vat savitri) का व्रत सुहागिन स्त्रियां पति की लंबी आयु के लिए रखेंगी. इस दिन बरगद की पूजा करके महिलाएं सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं और पति के अच्छे स्वास्थ्य की भी प्रार्थना करती हैं. इस दिन वट वृक्ष (vat vriksh puja) की परिक्रमा की जाती है. यह उपवास कठिन व्रतों में से एक है, ऐसे में इसकी पूजा का शुभ मुहूर्त और कथा के बारे में भी जान लेते हैं.
वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त
- इस साल ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि 3 जून शनिवार को सुबह 11 बजकर 16 मिनट से शुरू हो रही है, जो कि अगले दिन 4 जून रविवार को सुबह 09 बजकर 11 मिनट तक रहेगी.
ज्येष्ठ वट सावित्री पूर्णिमा शुभ योग
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन इस बार रवि योग, शिव योग और सिद्ध योग बन रहा है. यह तीनों योग का समय होगा- रवि योग सुबह 05:23 बजे से सुबह 06:16 बजे तक, शिव योग प्रात:काल से लेकर दोपहर 02:48 बजे इसके बाद से सिद्ध योग प्रारंभ हो जाएगा.
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वट सावित्री कथा
वट सावित्री व्रत कथा के मुताबिक प्रतीन काल में किसी स्थान पर अश्वपति नाम के राजा का राज्य था. राजा को कोई संतान नहीं था. राजा ने संतान प्राप्ति के लिए कई वर्षों तक यज्ञ, हवन और दान-पुण्य आदि कर्म किए. जिसके बाद उन्हें सावित्री देवी (Savitri Devi) के आशीर्वाद से तेजस्वी कन्या का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा. सावित्री जब विवाह योग्य हो गई तो राजा में कन्यादान करने का विचार किया. राजा ने अपनी कन्या के लिए सुयोग्य वर खोजने का भार राजकुमारी को सौंपा दिया. कहते हैं कि राजकुमारी सावित्री (Rajkumari Savitri) एक दिन जंगल जाते वक्त एक सुंदर युवक को देखा और उसे अपना पति मान लिया. उस युवक का नाम सत्यवान था. जो कि राजा द्युमत्सेन का पित्र था. सत्यवान के राज्य को दुश्मनों ने छीन लिया, जिसके बाद वह जंगल में रहने लगा था.
राजकुमारी ने जब इसका कारण पूछा तो राजा ने अपनी बेटी को नारदजी द्वारा बताई गई पूरी बात बताई. तब सावित्री ने कहा- "आर्यन लड़कियां अपना पति सिर्फ एक बार चुनती हैं." सावित्री के कहने पर राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया. जिसके बाद सावित्री ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा में लग गई. इस तरह समय बीतता गया. नारद मुनि ने सावित्री को सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में पहले ही बता दिया था. रोज की तरह सत्यवान भी लकड़ियां काटने वन में गया और सावित्री भी उसके साथ चली गई. सत्यवान (Satyavaan) लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ने लगा, जैसे ही उसके सिर में तेज दर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर सो गया.
उसी समय सावित्री ने यमराज (Yamraj) को आते देखा. यमराज ने सत्यवान के प्राण को लेकर अपने साथ ले जाने लगे. सावित्री ने भी उसका पीछा किया. यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यह कानून का नियम है, लेकिन सावित्री नहीं मानी. यमराज ने सावित्री को कई वरदान दिए और सावित्री की जिद नहीं छोड़ी. आखिरकार यमराज को सत्यवान के प्राण भी वापस करने पड़े.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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