
Vat Savitri vrat katha : अखंड सौभाग्य का प्रतीक आज वट सावित्री का व्रत है. इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए निर्जला उपवास रखती हैं और बरगद के पेड़ की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करती हैं. धार्मिक मान्यतानुसार वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है. यही कारण इस पूजा में बरगद के पेड़ का विशेष महत्व है. इसके अलावा वट सावित्री व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है, जिसके बारे में आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से...

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Vat Savitri vrat 2025 : वट सावित्री का व्रत कैसे रखें जानिए यहां पर विधि और मुहूर्त
वट सावित्री व्रत कथा - Vat Savitri Vrat katha
मद्र देश के राजा अश्वपति के पुत्री रूप में सर्वगुण संपन्न सावित्री का जन्म हुआ. राजकन्या ने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की कीर्ति सुनकर उन्हें पति रूप में वरण कर लिया. यह बात जब त्रऋषिराज नारद को पता चली तो वे अश्वपति से जाकर कहने लगे आपकी कन्या ने वर खोजने में निःसन्देह भारी भूल की है. सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा भी है, परन्तु वह अल्पायु है और एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जायेगी.
नारद की यह बात सुनते ही राजा अश्वपति का चेहरा उदास हो गया. उन्होंने अपनी पुत्री को समझाया कि ऐसे अल्प आयु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं. इसलिए कोई अन्य वर चुन लो, इस पर सावित्री बोली-पिताजी ! आर्य कन्याएं अपना पति एक बार ही वरण करती हैं. अब चाहे जो भी हो मैं सत्यवान को ही वर स्वरूप स्वीकार करूंगी. सावित्री ने नारद से सत्यवान की मृत्यु का समय मालूम कर लिया था. अन्ततः उन दोनों का विवाह हो गया. वह ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा में रात-दिन रहने लगी. समय बदला, ससुर का बल क्षीण होता देख शत्रुओं ने राज्य छीन लिया.

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नारद का वचन सावित्री को दिन प्रतिदिन अधीर करता रहा. उसने पति के मृत्यु का दिन नजदीक आने से तीन दिन पूर्व से ही उपवास शुरू कर दिया. नारद् द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया. नित्य की भांति उस दिन भी सत्यवान अपने समय पर लकड़ी काटने के लिए जब चला तो सावित्री भी सास-ससुर की आज्ञा लेकर चलने को तैयार हो गई.
सत्यवान वन में पहुंचकर लकड़ी काटने के लिए वृक्ष पर चढ़ा. वृक्ष पर चढ़ने के बाद उसके सिर पर भयंकर पीड़ा होने लगी. वह नीचे उतरा. सावित्री ने उसे बड़ के पेड़ के नीचे लिटाकर उसका सिर अपनी जाघ पर रख लिया. देखते ही देखते यमराज सत्यवान के प्राणों को लेकर चल दिये (कहीं-कहीं ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि वट वृक्ष के नीचे लेटे हुए सत्यवान को सर्प ने डस लिया था) सावित्री सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही लिटाकर यमराज के पीछे-पीछे चल दी. पीछे आती हुई सावित्री को यमराज ने उसे लौट जाने का आदेश दिया. इस पर वह बोली महाराज जहां पति वहीं पत्नी. यही धर्म है, यही मर्यादा है.
सावित्री की धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज बोले पति के प्राणों के अतिरिक्त कुछ भी मांग लो. सावित्री ने यमराज से सास-श्वसुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु मांगी. यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ़ गए. सावित्री अभी भी यमराज का पीछा करती रही. यमराज ने अपने पीछे आती सावित्री से वापस लौट जाने को कहा तो सावित्री बोली पति के बिना नारी के जीवन की कोई सार्थकता नहीं. यमराज ने सावित्री के पति व्रत धर्म से खुश होकर पुनः वरदान मांगने के लिए कहा. इस बार उसने अपने ससुर का राज्य वापस दिलाने की प्रार्थना की. तथास्तु कहकर यमराज आगे चल दिये. सावित्री अब भी यमराज के पीछे चलती रही. इस बार सावित्री ने यमराज से सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा. तथास्तु कहकर जब यमराज आगे बढ़े तो सावित्री बोली आपने मुझे सौ पुत्रों का वरदान दिया है, पर पति के बिना मैं मां कैसे बन सकती हूं. अपना यह तीसरा वरदान पूरा कीजिए.

पटना में बरगद के पेड़ के नीचे वट सावित्री व्रत की पूजा करती विवाहित महिलाएं.
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सावित्री की धर्मनिष्ठा, ज्ञान, विवेक तथा पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को अपने पास से स्वतंत्र कर दिया. सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान का मृत शरीर रखा था. सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा.
प्रसन्नचित्त सावित्री अपने सास-श्वसुर के पास पहुंची तो उन्हें नेत्र ज्योति प्राप्त हो गई. इसके बाद उनका खोया हुआ राज्य भी उन्हें मिल गया. तभी से वट वृक्ष की पूजा की जाती है.
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