
Dussehra 2025 Shastra Puja kaise karte hain: सनातन परंपरा में आश्विन मास के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है क्योंकि इस दिन एक नहीं कई पर्व और पूजाएं होती हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार इसी दिन अयोध्या के राजा भगवान श्री राम ने रावण का वध करके लंका पर विजय हासिल की थी. इसी दिन देवी दुर्गा की प्रतिमा और कलश का विधि-विधान से विसर्जन होता है. विजय के इस महापर्व को हिंदू धर्म में जहां नये वाहन और अन्य सामान आदि की खरीददारी के लिए बहुत शुभ माना जाता है, वहीं इसी दिन शस्त्र की विशेष पूजा की जाती है.
शस्त्र पूजा की इस परंपरा को पौराणिक काल में देवी दुर्गा के द्वारा महिषासुर के वध और महाभारतकाल की एक कथा से जोड़कर देखा जाता है. आइए जानते हैं कि हिंदू धर्म में शस्त्र या फिर कहें आयुध पूजा का क्या महत्व है और इसे किस विधि से किया जाता है?

शस्त्र पूजा का सबसे उत्तम मुहूर्त
सनातन परंपरा में शस्त्र पूजा के लिए आश्विन मास के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को बेहद शुभ माना गया है. इस साल यह पावन तिथि 02 अक्टूबर 2025, गुरुवार के दिन पड़ रही है. इस दिन शस्त्र पूजा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त दोपहर 02:09 से 02:56 बजे तक रहेगा. इसके अलावा आप दोपहर के समय में 01:28 बजे से लेकर 02:51 बजे के बीच में पूजा कर सकते हैं.

विजयादशमी पर कैसे करें शस्त्र की पूजा?
दशहरे के दिन शस्त्र पूजा करने के लिए व्यक्ति को स्नान-ध्यान करने के बाद सबसे पहले देवी दुर्गा का विधि-विधान से पूजन करना चाहिए. इसके बाद अपने शस्त्र की सावधानीपूर्वक सफाई करके उसे गंगाजल से पवित्र करना चाहिए. इसके बाद शस्त्र पर हल्दी, चंदन, रोली, अक्षत, पुष्प आदि अर्पित करते हुए देवी दुर्गा से शत्रुओं पर विजय और सुख-सौभाग्य का आशीर्वाद मांगना चाहिए.

शस्त्र पूजा से जुड़ी कथाएं
शस्त्र पूजा से जुड़ी दो कथाओं का जिक्र मिलता है. जिसमें से एक का संबंध देवी दुर्गा से है. मान्यता है कि जब देवताओं ने देवी दुर्गा से महिषासुर का वध करने की जिम्मेदारी सौंपी तो उसके साथ उन्होंने उन्हें तमाम दिव्य अस्त्र भी प्रदान किये. इसके बाद जब देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया तो उसके बाद उन सभी दिव्य अस्त्रों की विशेष रूप से पूजा की गई.
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इसी प्रकार शस्त्र पूजा का संबंध महाभारतकाल से भी जोड़कर देखा जाता है. मान्यता है पांडव जब अज्ञातवास कर रहे थे तो उन्होंने अपने अस्त्र शमी के वृक्ष पर रख दिये थे. एक बार गाय की रक्षा करने के लिए अर्जुन को अपने अस्त्र शमी के पेड़ से निकालने पड़े थे. शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के बाद उन्होंने शस्त्र की पूजा की थी.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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