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This Article is From Sep 01, 2022

Rishi Panchami 2022: ऋषि पंचमी व्रत आज, जानें पूजा विधि और कथा

Rishi Panchami 2022: हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी व्रत का खास महत्व है. इस साल ऋषि पंचमी का व्रत 01 सितंबर, गरुवार को यानी आज रखा जा रहा है.

Rishi Panchami 2022: ऋषि पंचमी व्रत आज, जानें पूजा विधि और कथा
Rishi Panchami 2022: ऋषि पंचमी की ये है व्रत कथा और पूजा विधि.

Rishi Panchami 2022 puja vidhi vrat katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी (Rishi Panchami 2022 Date) मनाई जाती है. ऋषि पंचमी का व्रत (Rishi Panchami Vrat 2022) गणेश चतुर्थी के अगले दिन पड़ता है. इस साल 2022 में ऋषि पंचमी का व्रत 01 सितंबर, गुरुवार को  यानी आज रखा जा रहा है. ऋषि पंचमी के दिन 7 ऋषियों की पूजा का विधान है. इसके साथ ही मान्यता यह भी है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पाप धुल जाते हैं. वहीं महिलाएं द्वारा रजस्वला काल के दौरान अनजाने में हुई गलतियों के लिए भी क्षमायाचना के लिए यह व्रत किया जाता है. आइए जानते हैं ऋषि पंचमी की पूजा विधि और व्रत कथा के बारे में.

ऋषि पंचमी 2022 पूजन विधि | Rishi Panchami 2022 Pujan Vidhi

ऋषि पंचमी का व्रत (Rishi Panchami Vrat 2022) रखने वाले को गंगा में स्नान करना शुभ होता है. अगर किसी करणवश ऐसा संयोग नहीं बन रहा है तो घर नहाने वाले जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं. पहले सुबह 108 बार मिट्टी से हाथ धोएं, गोबर की मिट्टी, तुलसी की मिट्टी, पीपल की मिट्टी, गंगाजी की मिट्टी, गोपी चंदन, तिल, आंवला, गंगाजल, गोमूत्र इन चीजों को मिलाकर हाथ-पैर धोए जाते हैं. इसके बाद 108 बार कुल्ला किया जाता है. इसके बाद नहाकर गणेशजी की पूजा की जाती है. गणेश पूजन के बाद सप्तऋषिओं का पूजन और कथा पढ़ी जाती है. पूजन के बाद केला, घी, चीनी व दक्षिणा रखकर ब्राह्मण या ब्राह्मणी को दान किया जाता है. दिन में एक बार भोजन किया जाता है. इसमें दूध, दही, चीनी और अनाज कुछ भी नहीं खाए जाते हैं. फल और मेवे के सेवन किया जा सकता है.

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ऋषि पंचमी 2022 व्रत कथा | Rishi Panchami 2022 Vrat Katha

ब्रह्म पुराण के अनुसार राजा सिताश्व ने एक बार ब्रह्माजी से पूछा- पितामह, सब व्रतों में श्रेष्ठ और तुरंत फलदायक व्रत कौन सा है. उन्होंने बताया कि ऋषि पंचमी का व्रत सब व्रतों में श्रेष्ठ और पापों का विनाश करने वाला है. ब्रह्माजी ने कहा, हे राजन विदर्भ देश में एक उत्तंक नामक सदाचारी ब्राह्मण रहता था. उसकी पत्नी सुशीला पतिव्रता थी. उसके एक पुत्र और एक पुत्र थी। उसकी पुत्री विवाहोपरांत विधवा हो गई. दुखी ब्राह्मण दंपत्ति कन्या सहित गंगातट पर कुटिया बनाकर रहने लगे. कुछ समय बाद उंत्तक को मलूम हुआ कि उसकी पुत्री और जन्म में रजस्वला होने पर भी पूजा के बर्तनों को छू लेती थी. इससे इसके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं. धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी और तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है. वह चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है. यदि यह शुद्ध मन से ऋषि पंचमी का व्रत करें तो पापमुक्त हो सकती है. पिता की आज्ञा से उसकी पुत्री ने विधिपूर्वक ऋषि पचंमी का व्रत और पूजन किया. कहा जाता है कि व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई. साथ ही अगले जन्म में उसे अखंड सौभाग्य प्राप्त हुआ.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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